अमेरिका को पाकिस्तान के न्यूक्लियर प्रोग्राम के बारे में 1979 में ही पता था। उसे यह भी पता था कि उसने इसका ठिकाना कठुआ में बना रखा है। इस बात का खुलासा नए डिक्वॉलीफाइड डॉक्यूमेंट्स से हुआ था। यह डॉक्यूमेंट्स मंगलवार को नेशनल सिक्योरिटी आर्काइव ने पोस्ट किया। यह एक गैर-सरकारी संगठन है जो समय-समय पर सरकार के रहस्यों का पर्दाफाश करता रहता है। इसके मुताबिक पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रमों की जानकारी होने के बावजूद तत्कालीन जिमी कार्टर सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की थी।
भारत के खिलाफ चाहिए था पाक का समर्थन
असल में उसी दौरान अफगानिस्तान में सोवियत संघ का प्रभाव बढ़ रहा था और ईरानी क्रांति भी हो रही थी। इस बात ने कार्टर सरकार को इस्लामाबाद पर कार्रवाई से रोक दिया था। इन डॉक्यूमेंट्स में इस बात का जिक्र भी है कि कार्टर प्रशासन इसलिए भी पाकिस्तान के खिलाफ अधिक कड़ा कदम नहीं उठाना चाहता था क्योंकि वह उसे सोवियत के साथी भारत के खिलाफ बड़ा समर्थक मान रहा था। इन डॉक्यूमेंट्स में लिखा है कि पाकिस्तान तेजी से न्यूक्लियर ताकत बनने की ओर अग्रसर है। वह दो से चार साल में ऐसा करने में सक्षम हो जाएगा। तत्कालीन पूर्वी और दक्षिणी एशियाई मामलों के सचिव हैरॉल्ड सांडर्स और तत्कालीन सहायक सचिव, समुद्र, अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण और वैज्ञानिक मामले, थॉमस पिकरिंग ने जनवरी 1979 में यह रिपोर्ट लिखी है।
दुविधा में थे कार्टर
गौरतलब है कि पाकिस्तान ने इसके करीब 20 साल बाद 1998 में पहला परमाणु परीक्षण किया। उससे पहले भारत पोखरण में परमाणु परीक्षण कर चुका था। सांडर्स और पिकरिंग ने अमेरिका के लिए नीतिगत विकल्प भी तैयार किए थे। इसके मुताबिक पाकिस्तान को दी जाने वाली सहायता को रोका जा सकता था। हालांकि इसे सहमति नहीं मिली, क्योंकि इससे मामला पेचीदा हो सकता था। इन कागजातों में इस बात का भी जिक्र है कि राष्ट्रपति कार्टर पाकिस्तान पर कार्रवाई को लेकर बहुत ज्यादा दुविधा में थे।
अमेरिका को 1979 में पता चल गई थी पाकिस्तान की यह करतूत, खास कागजातों से हुआ खुलासा - Hindustan
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