भारत के विदेश मंत्रालय ने तालिबान के प्रतिनिधि से मुलाक़ात की आधिकारिक जानकारी दी है. ये मुलाक़ात क़तर की राजधानी दोहा में 'तालिबान की गुज़ारिश पर हुई है.'
विदेश मंत्रालय के मुताबिक़ इस मुलाक़ात में भारत ने अफ़ग़ानिस्तान में फँसे 'भारतीय नागरिकों की सुरक्षित और जल्दी वापसी के साथ आतंकवाद से जुड़ी चिंताओं को उठाया. तालिबान के प्रतिनिधि ने भरोसा दिया कि भारत की चिंताओं का समाधान किया जाएगा.'
विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर बताया कि क़तर में भारत राजदूत दीपक मित्तल ने तालिबान राजनीतिक ऑफ़िस के प्रमुख शेर मोहम्मद अब्बास स्टानिकज़ई से मुलाक़ात की. इस मुलाक़ात के लिए तालिबान की ओर से गुज़ारिश की गई थी.
दोहा में अमेरिका और तालिबान के बीच हुई बातचीत का अहम हिस्सा रहे शेर मोहम्मद स्टानिकज़ई ने सार्वजनिक तौर पर भी भारत के साथ 'दोस्ताना संबंध' बनाए रखने की गुज़ारिश की थी. उनका ये सार्वजनिक बयान इसी हफ़्ते सामने आया था.
विदेश मंत्रालय ने क्या बताया?
भारतीय राजदूत दीपक मित्तल और उनकी मुलाक़ात इसी बयान के बाद हुई है. इसके पहले, बीते हफ़्ते अफ़ग़ानिस्तान के मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक हुई थी. तब विदेश मंत्री एस जयशंकर ने तालिबान के साथ संबंध के सवाल पर कहा था, "वेट एंड वॉच. यानी इंतज़ार करें और देखें."
लेकिन, बीते गुरुवार को हुई उस बैठक के बाद से स्थितियाँ काफ़ी बदलती हुई दिख रही हैं. अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिका और दूसरे देशों की सेनाएँ लौट चुकी हैं और काबुल पर तालिबान का नियंत्रण हो चुका है. तालिबान सरकार बनाने की कोशिश में जुटे हैं और बता चुके हैं कि ये सरकार 'समावेशी' होगी. इसे लेकर अलग-अलग पक्षों से बातचीत जारी है.
विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में बताया गया है, "आज क़तर में भारत के राजदूत दीपक मित्तल ने तालिबान के दोहा स्थित राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख शेर मोहम्मद अब्बास स्टानिकज़ई से मुलाक़ात की. ये मुलाक़ात तालिबान की गुज़ारिश पर भारतीय दूतावास में हुई. "
विदेश मंत्रालय के बयान में आगे बताया गया है, "बातचीत का फ़ोकस अफ़ग़ानिस्तान में फँसे भारतीयों की सुरक्षित और जल्दी वापसी पर था. अफ़ग़ानिस्तान के नागरिकों ख़ासकर अल्पसंख्यकों की भारत यात्रा को लेकर भी बातचीत हुई. "
भारत की चिंता
विदेश मंत्रालय ने बताया है कि भारतीय राजदूत मित्तल ने 'आतंकवाद' से जुड़ी चिंता को भी उठाया और कहा, "अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन का इस्तेमाल किसी भी भारत विरोधी गतिविधि या आतंकवाद के लिए नहीं होना चाहिए."
बयान के मुताबिक, "तालिबान के प्रतिनिधि ने भरोसा दिया कि भारतीय राजदूत ने जो मुद्दे उठाए हैं उन पर सकारात्मक तरीक़े से अमल होगा. "
इसके पहले भारत और तालिबान के बीच बैकचैनल बातचीत की अटकलें लगाई जा रही थीं. हालाँकि भारत ने आधिकारिक तौर पर ऐसी किसी बातचीत की जानकारी नहीं दी थी.
तालिबान के काबुल पर क़ब्ज़े के पहले अफ़ग़ानिस्तान में जो सरकार थी, उसके भारत के साथ बेहतर रिश्ते थे.
तालिबान के प्रतिनिधि अफ़ग़ानिस्तान पर क़ब्ज़े की कोशिश के दौरान भारत के दूसरे पड़ोसी मसलन रूस, चीन और पाकिस्तान के साथ बैठकें कर रहे थे, लेकिन भारत के साथ ऐसी की बैठक की कोशिश नहीं दिखी थी.
काबुल पर तालिबान का नियंत्रण स्थापित होने के चार दिन पहले 11 अगस्त को अफ़ग़ानिस्तान के मुद्दे पर रूस, चीन, पाकिस्तान और अमेरिका के प्रतिनिधि क़तर की राजधानी दोहा में मिले.
भारत को इस वार्ता में जगह नहीं मिली और ये बात अफ़ग़ानिस्तान में राष्ट्रपति पुतिन के विशेष दूत ज़ामिर काबुलोव के बयान से स्पष्ट भी हुआ. 20 जुलाई को रूसी समाचार एजेंसी तास ने ज़ामिर काबुलोव के हवाले से कहा कि भारत इस वार्ता में इसलिए शामिल नहीं हो पाया क्योंकि तालिबान पर उसका कोई प्रभाव नहीं है.
भारत का योगदान
अफ़ग़ानिस्तान के पुनर्निर्माण में भारत ने बड़ी भूमिका निभाई है. 2020 के नवंबर में ही भारत ने अफ़ग़ानिस्तान में 150 नई परियोजनाओं की घोषणा की है.
इससे पहले 2015 में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अफ़ग़ानिस्तान की संसद की नई इमारत का उद्घाटन किया था. ये भवन भी भारत के सहयोग से बनाया गया है. अगले ही साल अफ़ग़ानिस्तान के हेरात प्रांत में 42 मेगावाट वाली बिजली और सिंचाई की परियोजना का उद्घाटन मोदी और अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी ने साझा रूप से किया था.
कई परियोजनाएँ ऐसी हैं, जिन्हें भारत ने शुरू किया और संचालित भी किया. भारत के रक्षा मंत्रालय के अधीन सीमा सड़क संगठन यानी बॉर्डर रोड्स ऑर्गनाइजेशन (बीआरओ) ने भी अफ़ग़ानिस्तान में कई महत्वपूर्ण सड़कों को बनाने का काम किया. अफ़ग़ानिस्तान की फ़ौज, पुलिस और लोकसेवा से जुड़े अधिकारियों को भारत में प्रशिक्षण भी मिलता रहा है.
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