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- BJP Can Be Successful In Saving Khandwa Seat; Congress May Lose Jobat Seat, Likely To Be Compensated From Raigaon, Prithvipur May Remain In Possession
मध्य प्रदेश9 घंटे पहले
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मध्य प्रदेश में खंडवा लोकसभा सीट और तीन विधानसभा सीट जोबट, पृथ्वीपुर और रैगांव पर मतदान खत्म हो गया है। परिणाम 2 नवंबर को आएगा। इन चारों सीटों पर संभावित नतीजे क्या होंगे, इसके लिए भास्कर ने एग्जिट पोल किया। इसके मुताबिक खंडवा लोकसभा सीट बीजेपी के खाते में जाती दिख रही है। वहीं, विधानसभा की तीन सीटों में से दो कांग्रेस और एक भाजपा के खाते में जा सकती है। एग्जिट पोल मतदाताओं से बातचीत, भास्कर रिपोर्टर्स और खुफिया तंत्र से फीडबैक के आधार पर बना है।
खंडवा : OBC चेहरा उतारने का लाभ बीजेपी को मिलने की उम्मीद
बीजेपी ने खंडवा लोकससभा सीट पर 25 साल बाद ओबीसी उम्मीदवार ज्ञानेश्वर पाटिल को मैदान में उतारा। इसका बीजेपी को फायदा मिलता दिख रहा है। हालांकि कांग्रेस ने खंडवा लोकल से राजनारायण सिंह पुरनी को मैदान में उतार कर दांव खेला, लेकिन यह ज्यादा कारगर होता दिखाई नहीं दिया।
यहां मतदाताओं ने प्रत्याशी की बजाय पार्टी को वोट दिया है। हालांकि बुरहानपुर में कांग्रेस के पक्ष में मतदान ज्यादा होने के आसार हैं, लेकिन शेष 6 विधानसभा क्षेत्रों में बीजेपी की पकड़ मजबूत दिखाई दी। बड़वाह में कांग्रेस विधायक के अपने पाले में लाकर भाजपा ने गुर्जर वोटर्स को साधने का बड़ा दांव खेला।
कांग्रेस ने सचिन पायलट की सभा कराकर डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश की, लेकिन इसका मतदाताओं पर ज्यादा प्रभाव नहीं दिखा। मतदान का प्रतिशत देखें, तो 2019 की तुलना में 14% कम मतदान हुआ है। इसका फायदा बीजेपी को मिलेगा, ऐसा चुनावी विश्लेषकों का मानना है। यह सीट भाजपा के वरिष्ठ नेता नंदकुमार सिंह चौहान के निधन से खाली हुई थी।
जोबट : सुलोचना की छवि डैमेज करने में कामयाब नहीं हो पाई कांग्रेस
जोबट चुनाव में शुरू से ही एक-दूसरे की व्यक्तिगत छवि को डैमेज कर चुनाव पलटने की कोशिश चलती रही। कांग्रेस प्रचार के अंतिम दौर में भी जनता के मुख्य मुद्दों से ज्यादा सुलोचना को बागी बताकर उनकी व्यक्तिगत छवि पर वार करती रही, लेकिन उसे इसका फायदा मिलता दिखाई नहीं दिया। कांग्रेस इस सीट को गंवाती हुई दिख रही है। दूसरी तरफ भाजपा ने कांग्रेस उम्मीदवार महेश पटेल और उनके परिवार की दबंग (धनबल-बाहुबल) वाली छवि का प्रचार किया।
खास बात है कि यहां केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का फोकस ज्यादा रहा। शिवराज सिंह चौहान ने भी झाबुआ में 5 अक्टूबर को आदिवासी सम्मेलन कर ताकत दिखाने का प्रयास किया था। जोबट सीट पर 2018 में कांग्रेस जीती थी। यह सीट कलावति भूरिया के निधन की वजह से खाली हुई थी।
रैगांव : BSP के परंपरागत वोटर्स को साधने में सफल होते दिख रही कांग्रेस
बीते 31 वर्षों से रैगांव में कांग्रेस की जीत का सूखा इस बार खत्म हो सकता है। कांग्रेस के आशान्वित होने की बड़ी वजह उप चुनाव के मैदान में बसपा की गैर मौजूदगी भी है। बसपा के परंपरागत वोटर्स पर कांग्रेस हर वक्त निगाह लगाए रही। उसे अपनी तरफ लाने की कोशिश भी की है। बसपा से विधायक रह चुकीं ऊषा चौधरी भी इस बार कांग्रेस के ही पाले में हैं। रैगांव सीट भाजपा नेता जुगल किशोर बागरी के निधन की वजह से रिक्त हुई थी।
उधर, बीजेपी की सबसे बड़ी चिंता भी मतदाताओं का यही वर्ग है, जिस पर सेंध लगाने की हर कोशिश बीजेपी ने भी की। रैगांव आरक्षित सीट पर जातीय समीकरणों का भी अलग ट्रेंड है। यहां पूर्व के चुनावों में बीजेपी को सवर्ण मतदाताओं का सहयोग मिलता रहा है, लेकिन इस बार अधिकांश उन बूथों में मतदाताओं की भीड़ नजर नही आई, जहां से पहले बीजेपी बढ़त बनाती रही है। बीजेपी की बड़ी उम्मीद महिला मतदाताओं पर टिकी है। महिलाओं का मतदान प्रतिशत भी पुरुषों के मुकाबले थोड़ा ही सही, लेकिन ज्यादा रहा है।
पृथ्वीपुर : दलित वोट बैंक को साधने से कांग्रेस को मिल सकती है बढ़त
बीजेपी ने इस सीट को कांग्रेस से छीनने के लिए ताकत झोंक दी थी। शिवराज सिंह चौहान की सबसे ज्यादा 8 सभाएं भी पृथ्वीपुर में हुई। इस सीट पर बीजेपी ने सपा से आए शिशुपाल सिंह यादव पर दांव खेला। इस सीट पर जातीय समीकरण ही जीत-हार का फैसला करते दिखाई दे रहे हैं और इस समीकरण में बाजी कांग्रेस के हाथ में जाती नजर आ रही है।
मुख्य रूप से कांग्रेस को दलित वोटर्स काे साधे रखने का फायदा मिलता दिख रहा है। इस सीट पर कांग्रेस और बीजेपी के चुनाव लड़ने की रणनीति भी एक-दूसरे से उलट रही है। बीजेपी ने बड़ी सभाएं कर ताकत दिखाने की कोशिश की, जबकि कांग्रेस ने छोटी-छोटी नुक्कड़ सभाएं और डोर-टू-डोर संपर्क की रणनीति पर काम किया। इससे जातियों के समूहों से सीधे संवाद कर बीजेपी के पाले में जाने से रोका। इस सीट पर कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री बृजेंद्र सिंह राठौर के निधन की वजह से उपचुनाव हुए हैं।
पृथ्वीपुर में शिवराज की सबसे ज्यादा 8 सभाएं, कमलनाथ की सबसे कम 1
बीजेपी ने पृथ्वीपुर सीट को अपनी नाक का सवाल बनाकर चुनाव लड़ा है। यहां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सबसे ज्यादा 8 सभाएं हुई। हालांकि रैगांव सीट बचाने के लिए उन्होंने 7 सभाएं की। कमलनाथ ने उप चुनाव के दौरान सबसे कम 1 सभा पृथ्वीपुर में की। जानकारों का कहना है कि कांग्रेस ने इस चुनाव में सभाएं करने के बजाय घर-घर संपर्क की रणनीति पर काम किया है। जबकि भाजपा ने माहाैल बनाने के लिए सभाएं की।
शिवराज ने 39 व कमलनाथ ने 14 सभाएं की
उपचुनाव में आचार संहिता लागू होने के दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 39 सभाएं की, जबकि कमलनाथ ने 14 सभाएं की। शिवराज ने सभाओं के अलावा जोबट, रैगांव, खंडवा, बुरहानपुर व पृथ्वीपुर में रात्रि विश्राम भी किया, लेकिन कमलनाथ ने पूरे प्रचार के दौरान किसी भी चुनावी क्षेत्र में रात नहीं बिताई। खंडवा संसदीय क्षेत्र की बात करें तो इसके अंतर्गत आने वाली 8 विधानसभा क्षेत्रों में शिवराज सिंह चौहान ने 19 सभाएं की हैं, जबकि कमलनाथ ने यहां 8 सभाएं की।
MP उपचुनाव पर भास्कर EXIT POLL: खंडवा लोकसभा सीट भाजपा के खाते में जाने की संभावना, 3 में से 2 विधानसभा सीट... - दैनिक भास्कर
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