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Saturday, May 21, 2022

Rajiv Gandhi: श्रीपेरंबुदूर नहीं तो दिल्ली में होता राजीव गांधी पर हमला, तैयार था लिट्टे का प्लान B! - Aaj Tak

तारीख थी 12 मई 1991. देश में लोकसभा चुनाव की तैयारियां चल रही थीं. उस दिन तमिलनाडु के मद्रास (अभी चेन्नई) में पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह की रैली होनी थी. इस रैली में शिवरासन भी मौजूद था. शिवरासन जनवरी 1991 में ही श्रीलंका से चेन्नई लौटा था. उस रैली में शिवरासन अपने साथ धनु, शुभा और नलिनी को भी लेकर गया. मकसद था कि वो पूर्व प्रधानमंत्री के सुरक्षा घेरे में जाकर उन्हें माला पहनाने का अभ्यास कर सकें. वीपी सिंह के मंच में आने से पहले धनु और शुभा ने उन्हें माला पहनाई. ये प्रैक्टिस राजीव गांधी की हत्या करने के लिए की गई थी. 

7 दिन बाद 19 मई को अखबारों में राजीव गांधी का चुनावी कार्यक्रम छपा. इसी से शिवरासन को पता चला कि 21 मई को राजीव गांधी श्रीपेरंबुदूर आ रहे हैं. शिवरासन ने शुभा और धनु को अपने आखिरी मकसद के लिए तैयार रहने को कहा. 21 मई की सुबह-सुबह धनु ने अपने शरीर पर विस्फोटक लगा लिए. इसके बाद शिवरासन अपने साथ धनु और शुभा को ऑटो से लेकर नलिनी के घर पहुंचा. 

थोड़ी देर में सब श्रीपेरंबुदूर की रैली वाली जगह पर पहुंच गए. राजीव गांधी अभी पहुंचने ही वाले थे. कुछ देर में राजीव गांधी भी वहां पहुंच गए. तभी धनु ने शिवरासन और शुभा को वहां से हट जाने को कहा. माला पहनाने के बहाने धनु राजीव गांधी के पास पहुंची और तभी जोर का धमाका हुआ. कुछ देर बाद जब धुआं छटा तो चारों ओर लाशें, खून, चीख और आंसू थे. 

राजीव गांधी सबसे युवा प्रधानमंत्री थे. उनका जन्म 20 अगस्त 1944 को हुआ था. (फाइल फोटो-Getty Images)

इस धमाके में राजीव गांधी समेत कुल 18 लोगों की मौत हो गई थी. धनु के साथ ही इस षड्यंत्र में शामिल हरि बाबू की भी मौत हो गई. हरि बाबू यहां पत्रकार के रूप में मौजूद था और उसका काम था सारे घटनाक्रम की तस्वीरें लेना. इस पूरे हत्याकांड का मास्टरमाइंड था शिवरासन था.

राजीव गांधी हत्याकांड को आज 31 साल पूरे हो रहे हैं. ये एक ऐसा हत्याकांड था, जिसने देश ही नहीं, बल्कि दुनिया को हिलाकर रख दिया था. राजीव गांधी की हत्या के पीछे आतंकी संगठन लिट्टे यानी लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम था. 

ये भी पढ़ें-- राजीव गांधी की हत्या में क्या था पेरारिवलन का रोल, पहले फांसी फिर उम्रकैद और अब रिहाई

लिट्टे... क्यों?

इस पूरी कहानी की शुरुआत श्रीलंका की आजादी से शुरू होती है. श्रीलंका में बहुसंख्यक आबादी बौद्ध धर्म को मानने वाले सिंहली लोगों की थी. यहां बड़ी संख्या में तमिल भी थे, लेकिन वो लगातार उपेक्षा का शिकार हो रहे थे. 1972 में श्रीलंका का संविधान बना. इसमें बौद्ध को देश का प्राथमिक धर्म घोषित कर दिया. बहुसंख्यक होने के बावजूद बौद्ध धर्म के सिंहली लोगों को हर जगह वरीयता और आरक्षण दिया जाने लगा. तमिल हाशिये पर जाते गए.

इसका नतीजा ये हुआ कि तमिलों ने हथियार उठा लिए. तमिल युवा वेलुपिल्लई प्रभाकरण ने एक संगठन बनाया, जिसका नाम- लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम यानी लिट्टे रखा. 80 का दशक आते-आते लिट्टे की पहचान एक आतंकी संगठन के तौर पर होने लगी. 

23 जुलाई 1983 को को लिट्टे ने श्रीलंकाई सेना के 13 जवानों की हत्या कर दी. इसके बाद देश में गृहयुद्ध छिड़ गया. ये लड़ाई सिंहली और तमिलों के बीच हुई. श्रीलंकाई सरकार भी इसमें उतर गई. 1987 में भारत और श्रीलंका सरकार के बीच एक शांति समझौता हुआ. इसमें तय हुआ कि भारत लिट्टे से हथियार रखवा देगा.

समझौते वाले दिन ही भारत ने अपनी सेना श्रीलंका भेज दी. इसका नाम इंडियन पीस कीपिंग फोर्स यानी IPKF रखा गया. भारतीय सेना ने श्रीलंका के पलाली में जाफना के पास अपना बेस बनाया. लिट्टे भी हथियार डालने के लिए राजी हो गया. लिट्टे के कई आतंकी सरेंडर करने लगे. तभी अक्टूबर में श्रीलंकाई सेना ने लिट्टे के दो कमांडरों को पकड़ लिया. उन्हें पलाली में ही श्रीलंकाई सेना और IPKF की साझा हिरासत में रखा गया. 

IPKF लिट्टे के उन कमांडरों को श्रीलंका सरकार को सौंपने को राजी हो गया. उसके बाद उन कमांडरों ने साइनाइड खाकर अपनी जान दे दी. इससे लिट्टे और IPKF के रिश्ते बिगड़ गए. 13 अक्टूबर 1987 को IPKF ने 'ऑपरेशन पवन' चलाया. इस ऑपरेशन में भारतीय सेना के कई जवान शहीद हो गए. भारतीय सेना श्रीलंका में तीन साल तक रही. 24 मार्च 1990 को IPKF का आखिरी बेड़ा श्रीलंका से लौट आया. 

माना जाता है कि श्रीलंका में भारतीय सेना का ये ऑपरेशन ही राजीव गांधी की हत्या का कारण बना. लिट्टे के आतंकियों का मकसद बदला लेना था. 

राजीव गांधी का अंतिम संस्कार. (फाइल फोटो-Getty Images)

बदला... कैसा बदला?

श्रीलंका में भारतीय सेना राजीव गांधी की सरकार में ही भेजी गई थी. श्रीलंका में जब गृह युद्ध चल रहा था, तभी बीच में लिट्टे प्रमुख प्रभाकरण को दिल्ली बुलाया गया. उसने राजीव गांधी से मुलाकात की. ये मुलाकात अच्छी नहीं रही. तभी प्रभाकरण ने सोच लिया कि इसका बदला लिया जाएगा. 

1989 में राजीव गांधी की सरकार गिर गई. बाद में राजनीतिक अस्थिरता बनी रही. इसी बीच अगस्त 1990 में राजीव गांधी ने एक इंटरव्यू में श्रीलंका के साथ हुए शांति समझौते का समर्थन किया. उन्होंने अखंड श्रीलंका की बात कही. इससे लिट्टे का अलग ईलम का सपना टूट गया. 

लिट्टे को डर था कि राजीव गांधी का प्रधानमंत्री बनना उसके लिए घातक हो सकता है. लिहाजा लिट्टे ने उनकी हत्या की साजिश रची. इस साजिश के मुख्य पात्र थे- लिट्टे का मुखिया वेलुपिल्लई प्रभाकरण, लिट्टे की खुफिया इकाई का मुखिया पोट्टू ओम्मान, महिला इकाई की मुखिया अकीला और शिवरासन. राजीव गांधी की हत्या का मास्टरमाइंड शिवरासन ही था.

राजीव गांधी के इंटरव्यू के कुछ महीनों बाद लिट्टे के आतंकी अलग-अलग टुकड़ियों में शरणार्थी के तौर पर भारत आने लगे. 1 मई 1991 को सिवरासन अपने साथ धनु, उसकी सहेली शुभा समेत 9 लोगों को भारत लेकर आया. 12 मई को सभी ने वीपी सिंह की रैली में प्रैक्टिस की और 21 मई को राजीव गांधी की हत्या कर दी. 

धनु के हाव-भाव देखकर सुरक्षा घेरे में तैनात अनुसूइया को शक हुआ. उसने उसे रोक दिया. लेकिन तभी राजीव गांधी ने कहा, 'सभी को आने दीजिए.' धनु उनके पास गई. चंदन की माला पहनाई. पैर छूने के लिए झुकी. राजीव गांधी धनु को ऊपर उठा ही रहे थे कि तभी जोर का धमाका हुआ. धमाके में राजीव गांधी समेत 18 लोगों की मौत हो चुकी थी. 

प्लान-बी भी तैयार था

लिट्टे ने मानव बम के लिए तीन महिलाओं को तैयार किया. पहली धनु थी, दूसरी थी शुभा और तीसरी थी अतिरै. प्लान था कि अगर धनु नाकाम हुई तो शुभा इसे अंजाम देगी और अगर शुभा भी नाकाम हुई तो अतिरै दिल्ली में इस वारदात को अंजाम देगी. अतिरै दिल्ली के मोतीबाग इलाके में सोनिया के नाम से रह रही थी.

अतिरै दिल्ली में कहां रहेगी, इसका काम शिवरासन ने श्रीलंका सरकार के रिटायर्ड अफसर कनगासाबापति को लगाया. कनगासाबापति ने मोतीबाग के मकान नंबर ए-233 को किराये पर लिया. ये घर राजीव गांधी के घर 10 जनपथ से 8 किलोमीटर दूर था. 

पोट्टू ओम्मान इस पूरी वारदात को दिल्ली में अंजाम देना चाहता था, लेकिन शिवरासन को पूरा यकीन था कि वो इसे श्रीपेरंबुदूर में ही अंजाम दे देगा. मई 1991 में एक संदेश में पोट्टू ओम्मान ने शिवरासन से पूछा, 'दिल्ली में क्यों नहीं?' तब शिवरासन ने जवाब दिया, 'मुझे यकीन है कि मैं इसे यहीं (तमिलनाडु) अंजाम दे सकता हूं.'

श्रीपेरंबुदूर में प्लान सफल हो गया. जून 1991 में कनगासाबापति और अतिरै को दिल्ली के पहाड़गंज से गिरफ्तार कर लिया गया. आठ साल जेल में काटने के बाद 1999 में दोनों को रिहा कर दिया गया, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में श्रीपेरंबुदूर की योजना से उनका कोई संबंध स्थापित नहीं किया जा सका.

कुल 41 आरोपी बनाए गए, 26 पकड़े गए

राजीव गांधी की हत्या के तीन दिन बाद ही इसकी जांच सीबीआई को सौंप दी गई. इसके बाद गिरफ्तारियों का सिलसिला शुरू हो गया. एक महीने के भीतर ही नलिनी और मुरुगन को गिरफ्तार कर लिया गया. सिवरासन और शुभा समेत कई आरोपियों ने गिरफ्तारी से पहले ही आत्महत्या कर ली. 

इस मामले में कुल 41 लोगों को आरोपी बनाया गया. 12 लोगों की मौत हो चुकी थी और तीन फरार हो गए थे. बाकी 26 पकड़े गए थे. इसमें श्रीलंकाई और भारतीय नागरिक थे. फरार आरोपियों में प्रभाकरण, पोट्टू ओम्मान और अकीला थे. आरोपियों पर टाडा कानून के तहत कार्रवाई की गई. 

सात साल तक चली कानूनी कार्यवाही के बाद 28 जनवरी 1998 को टाडा कोर्ट ने हजार पन्नों का फैसला सुनाया. इसमें सभी 26 आरोपियों को मौत की सजा सुनाई गई. 

अदालतों में उलझा रहा मामला!

चूंकि फैसला टाडा कोर्ट का था, इसलिए इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. टाडा कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती थी. एक साल बाद सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने इस पूरे फैसले को ही पलट दिया. सुप्रीम कोर्ट ने 26 में से 19 दोषियों को रिहा कर दिया. कोर्ट ने कहा कि इन्होंने जो अपराध किया था, उसकी सजा वो जेल में काट चुके हैं. 

इस मामले में बाकी 7 दोषी- नलिनी श्रीहरन, मुरुगन, संतान, एजी पेरारिवलन, जयकुमार, रॉबर्ट पयास और पी. रविचंद्रन बचे. इन सात दोषियों में तीन की फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया. बाकी बचे चार दोषियों- नलिनी, मुरुगन, संतान और एजी पेरारिवलन की फांसी की सजा को बरकरार रखा गया. साल 2000 में नलिनी की फांसी की सजा भी माफ कर दी गई. 

राजीव गांधी के हत्या के 7 दोषी. (फाइल फोटो)

सब रिहा, तो ये 7 दोषी क्यों?

- नलिनीः मुरुगन की पत्नी थी. श्रीपेरंबुदूर तक हमलावर दस्ते के साथ रही. 

- मुरुगनः लिट्टे का खुफिया भेदिया, जो शिवरासन के लिए काम करता था. इसी ने नलिनी के परिवार को भर्ती किया.

- संतानः हमलावर दस्ते का प्रमुख सदस्य था. श्रीपेरंबुदूर में कांग्रेस कार्यकर्ता बनकर छिपा रहा.

- एजी पेरारिवलनः लिट्टे के लिए काम करने वाला भारतीय. बेल्ट बम के लिए बैटरी इसी ने खरीदी थी.

- जयकुमार और रॉबर्ट पयासः लिट्टे के लड़ाके, जिन्हें साजिश में मदद करने के लिए तमिलनाडु भेजा गया था.

- पी. रविचंद्रनः भारतीय था. लिट्टे ने इसे प्रशिक्षित किया था. साजिश में मदद के लिए भारत लौटा था.

पहले फांसी हुई, फिर उम्रकैद में बदली

फांसी की सजा को बदलने के लिए तीनों दोषियों ने राष्ट्रपति के सामने दया याचिका लगाई. ये दया याचिका खारिज हो गई. तीनों की फांसी की सजा तारीख 9 सितंबर 2011 तय हुई. इसके बाद मद्रास हाईकोर्ट ने तीनों दोषियों की फांसी की सजा पर रोक लगा दी. मामला फिर सुप्रीम कोर्ट में चला गया.

फरवरी 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अब तीनों को फांसी देना सही नहीं है, क्योंकि तीनों की दया याचिका 11 साल तक लंबित रही. आखिरकार तीनों की फांसी की सजा को भी आजीवन कारावास में बदल दिया गया. 

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अगले ही दिन तमिलनाडु सरकार ने सभी सातों दोषियों को रिहा करने का आदेश दिया. इससे ये मामला एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट चला गया. सुप्रीम कोर्ट ने रिहा करने के आदेश को रद्द कर दिया और कहा कि जिस मामले की जांच केंद्रीय एजेंसियों से जुड़ी हों और जिन्हें केंद्रीय कानून के तहत सजा मिली हो, उनकी सजा माफी पर फैसला केंद्र सरकार ही कर सकती है. 

राजीव गांधी की हत्या की 31वीं बरसी से तीन दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने एजी पेरारिवलन को रिहा करने का आदेश दिया है. पेरारिवलन रिहा होकर घर जा चुका है. बाकी 6 दोषी अब भी जेल में सजा काट रहे हैं.

 

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