- आलोक जोशी
- वरिष्ठ पत्रकार, बीबीसी हिंदी के लिए
लोकसभा में महंगाई पर बहस का जवाब देने वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने विपक्ष पर पहला ही तीर दागा यह कहकर कि विपक्ष की तरफ से उठाई गई बातों में महंगाई के आंकड़ों के साथ चिंता के बजाय उसके राजनीतिक पक्ष की चर्चा ज्यादा थी. और ' इसीलिए मेरा जवाब भी मैं पॉलिटिकली देने की कोशिश कर रही हूं …राजनीतिक भाषण सुनना ही पड़ेगा.'
विपक्ष को जो सुनना पड़ा वो तो बाद में, लेकिन उत्तर प्रदेश में कन्नौज के एक स्कूल में पहली क्लास में पढ़नेवाली बच्ची ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जो पत्र लिखा है उसमें सिर्फ एक आंकड़ा और दो चिंताएं थीं.
छह साल की कृति दुबे ने बताया कि दुकानदार ने उसे मैगी का छोटा पैकेट नहीं दिया क्योंकि उसके पास सिर्फ पांच रुपए थे और यह पैकेट अब सात रुपए का हो गया है. उसने यह भी लिखा कि आपने पेंसिल और रबर भी महंगे कर दिए हैं. मेरी मां पेंसिल मांगने पर मारती है, मैं क्या करूं, दूसरे बच्चे मेरी पेंसिल चोरी कर लेते हैं.
पता नहीं वित्तमंत्री को इसकी खबर मिली या नहीं, मगर कृति के सवाल का जवाब तो नहीं मिला है.
कृति की तरह लाखों बच्चे और करोड़ों बड़े भी शायद ऐसे ही सवालों के साथ जवाब का इंतज़ार कर रहे हैं.
मगर वित्त मंत्री को लगा कि विपक्ष महंगाई पर राजनीति कर रहा है तो उन्हें क्यों नहीं करनी चाहिए. उन्होंने बात की शुरुआत में ही इसका साफ एलान भी कर दिया.
हालांकि इसके पहले कॉग्रेस के सांसद मनीष तिवारी भी चावल, दही और पनीर के साथ ही बच्चों के पेंसिल और शार्पनर पर जीएसटी बढ़ाने पर सवाल उठा चुके थे.
साथ में उन्होंने यह आंकड़ा भी गिनाया कि पिछले चौदह महीनों से देश में महंगाई की दर दो अंकों में है जो पिछले 30 साल में सबसे ज्यादा है.
ज़ाहिर है, राजनीति के साथ आंकड़े भी थे. राजनीति के दावे के बावजूद वित्तमंत्री अपने जवाब में भी आंकड़े लाईं.
उन्होंने दावा किया कि तमाम मुसीबतों के बावजूद देश में महंगाई का आंकड़ा 7% से नीचे रखने में सरकार कामयाब रही है.
यही नहीं उन्होंने याद दिलाया कि यूपीए सरकार के दौरान पूरे 22 महीने महंगाई का आंकड़ा 9% से ऊपर रहा औऱ नौ महीने तो ऐसे रहे जब महंगाई 10% से ऊपर यानी दो अंकों में पहुंच चुकी थी.
यहां शायद वो यह बताना भूल गईं कि जिस दौरान महंगाई इस ऊंचाई पर थी तब देश की तरक्की की रफ्तार क्या थी.
2020 से और खासकर कोरोना के बाद तरक्की की रफ्तार पर जिस तरह से ब्रेक लगा है उसे देखकर बहुत से लोग यह चिंता जताने लगे हैं कि कहीं भारत स्टैगफ्लेशन की चपेट में तो नहीं जा रहा है. यानी ऐसी स्थिति जहां आर्थिक गतिविधियां धीमी हो जाती हैं या रुक जाती हैं और महंगाई काफी तेज़ी से बढ़ती है.
आम आदमी की नज़र से देखें तो यह कंगाली में आटा गीला वाली स्थिति है. एक तरफ कारोबार कमज़ोर, कमाई बढ़ने के बजाय घटने का डर और दूसरी तरफ सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती महंगाई.
अच्छी बात है कि वित्तमंत्री ने इस आशंका को पूरी तरह बेबुनियाद बताया और कहा कि भारत में ऐसा होने या मंदी आने का कोई डर नहीं है.
वित्तीय कारोबार से जुड़े लोग इस बात की पुष्टि भी कर रहे हैं कि बाज़ार में मांग लौटती दिख रही है और कंपनियां बड़े पैमाने पर नई फैक्टरियां या नई मशीनरी लगाने की तैयारी में हैं.
लेकिन जब वित्तमंत्री भारत की तुलना दूसरे देशों से करती हैं और उनके मुकाबले भारत के हालात को बेहतर बताती हैं तो फिर सवाल उठना लाजमी है कि आखिर तस्वीर पूरी क्यों नहीं दिखाई जा रही.
खुदरा महंगाई का आंकड़ा 7% से नीचे होने का दावा तो ठीक है लेकिन पिछले तीन महीनों में लगातार यह आंकड़ा 7% से ऊपर ही रहा है. और थोक महंगाई का हाल देखें तो आगे का हाल भी बेहतर नहीं दिख रहा है.
खाने के तेल पर ड्यूटी खत्म करके उसे तो आसमान से कुछ नीचे लाने में सरकार सफल रही है लेकिन महंगाई बढ़ाने में सबसे बड़ी भूमिका निभानेवाले पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज कम करने के मामले में नौ दिन चले अढ़ाई कोस वाला ही हाल है.
इस वक्त तो अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में भी कच्चा तेल खास सस्ता नहीं है, लेकिन जब था तब भी वर्षों सरकार ने उसका इस्तेमाल बस अपना खजाना भरने के लिए ही किया.
और जब महंगाई का हाल अच्छा बताने के लिए यह कहा जाए कि अमेरिका में महंगाई का आंकड़ा इस वक्त नौ परसेंट के ऊपर है जबकि भारत में बस 7%, और इसके साथ यह भी बताया जाए कि दस साल पहले पिछली सरकार के वक्त तो अमेरिका में यह आंकड़ा पौने दो परसेंट ही था जबकि भारत में दस के ऊपर.
लेकिन पूरी तस्वीर एक साथ देखें तो पिछले दस सालों में अमेरिका में महंगाई बढ़ने की रफ्तार का औसत सालाना 2.6% ही रहा है जबकि भारत में यही औसत 5.6% रहा है.
यानी बागों में बहार जैसा हाल तो नहीं ही है. आगे का हाल भी चिंताजनक है इसीलिए बाज़ार में ज्यादातर जानकार अनुमान लगा रहे हैं कि रिजर्व बैंक एक बार फिर 0.35 से 0.50% तक की बढ़ोत्तरी ब्याज दरों में कर सकता है.
साफ है कि उसे अभी महंगाई काबू में नहीं दिख रही है, और आगे भी इसे रोकने के लिए कदम उठाने ज़रूरी लग रहे हैं.
एक औऱ आंकड़ा जो वित्तमंत्री ने उत्साह जगाने के लिए गिनाया वो दरअसल चिंता बढ़ाने का कारण बन सकता है.
उन्होंने कहा कि जुलाई में जीएसटी वसूली में 28% की बढ़ोत्तरी हुई और 1.49 लाख करोड़ रुपए जीएसटी में जमा हुए जो अभी तक की दूसरी सबसे बड़ी रकम है.
लेकिन अगर सिर्फ कृति दुबे के मैगी के पैकेट का ही दाम देख लें तो इसका कारण आसानी से समझ में आ जाएगा.
अगर पैकेट का दाम 40% बढ़ गया तो उसपर जीएसटी भी 40% ज्यादा ही आएगा.यानी जीएसटी वसूली में उछाल बिक्री बढ़ने या अर्थव्यवस्था में रफ्तार आने का नहीं महंगाई बढ़ने का सबूत भी है सकता है.
अब देखना यह है कि मंगलवार को राज्यसभा मैं इसी मसले पर वित्तमंत्री क्या कोई नई बात सामने लाएँगी जिससे लोगों की चिंता बढ़ने के बजाय कम होने की तरफ बढ़ेगी.
महंगाई पर वित्त मंत्री सीतारमण की दलीलें चिंता बढ़ाती हैं या कम करती हैं - BBC हिंदी
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