बिलकिस बानो वाले मामले में गुजरात सरकार ने 11 आरोपियों को रीमिशन पॉलिसी के तहत रिहा कर दिया था. इस पर विवाद तो काफी हुआ लेकिन कई साल बाद सभी आरोपी जेल से बाहर आ गए. लेकिन एक बार फिर ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. कोर्ट ने गुजरात सरकार से वो तमाम नोटिस मांगे हैं जिसके आधार पर आरोपियों को इतनी बड़ी राहत दी गई है.
असल में बिलकिस बानों को न्याय दिलवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दो याचिकाएं दायर की गई थीं. उसमें सवाल उठाया गया था कि किस आधार पर 11 आरोपियों को रिहा किया गया. उन याचिकाओं पर ही कोर्ट ने गुजरात सरकार को नोटिस जारी किया है. नोटिस तो उन 11 आरोपियों को भी दे दिया गया है. उन्हें भी कोर्ट में याचिका में उठाए गए सवालों पर जवाब देना होगा. लेकिन एक आरोपी के वकील ऋषि मल्होत्रा ने उन याचिकों को ही गलत बता दिया है.
वे कहते हैं कि मुझे यकीन नहीं होता कि ये लोग ऐसी याचिका कैसे दायर कर सकते हैं. किस आधार पर इन्हें दायर किया गया है. वैसे जानकारी के लिए बता दें कि कोर्ट में याचिका CPIM नेता सुभाषिनी अली, टीएमसी नेता महुआ मोइत्रा और दूसरे एक्टिविस्ट द्वारा दायर की गई हैं. वैसे बिलकिस मामले में सभी 11 आरोपियों को Law of Remission वाला कानून की वजह से इतनी बड़ी राहत मिली है. इस बारे में ऋषि मल्होत्रा ने कहा था कि गुजरात सरकार की जो रीमिशन पॉलिसी थी, वहीं लागू होनी थी, बॉम्बे में तो इस मामले को लेकर कुछ दूसरे पहलुओं पर जांच थी. ऋषि मल्होत्रा के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ही गुजरात सरकार ने उस वक्त वाली रीमिशन पॉलिसी (1992) को तरजीह दी जो इन दोषियों को सजा सुनाने के दौरान राज्य में चल रही थी. ऐसे में उस पॉलिसी के नियमों के मुताबिक ही सभी दोषियों को रिहाई दे दी गई.
यहां ये जानना भी जरूरी है कि रीमिशन पॉलिसी में देश के राष्ट्रपति और राज्यों के राज्यपाल का भी एक अहम रोल रहता है. कई मामलों में दोषियों की सजा कम करने की ताकत राष्ट्रपति या फिर राज्यपाल के पास भी रहती है. संविधान का अनुच्छेद 72 देश के राष्ट्रपति को किसी भी दोषी की सजा को कम करने का अधिकार देता है, वहीं अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल भी वहीं काम कर सकता है.
किस आधार पर बिलकिस के आरोपियों को छोड़ा गया, गुजरात सरकार पेश करे रिकॉर्ड: SC - Aaj Tak
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