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Monday, December 26, 2022

वीर बाल दिवस: औरंगबेज पर क्या बोले पीएम मोदी? - BBC हिंदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वीर बाल दिवस पर बोलते हुए

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गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबज़ादों, बाबा ज़ोरावर सिंह और बाबा फ़तेह सिंह और माता गुजरी के असाधारण साहस और बलिदान को याद करते हुए भारत सरकार 26 दिसंबर को दिल्ली सहित देश-विदेश में 'वीर बाल दिवस' मना रही है.

इस कार्यक्रम में ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मौजूद रहे. कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री मोदी लगभग तीन सौ बाल कीर्तनियों द्वारा प्रस्तुत किए गए 'शबद कीर्तन' में भी शामिल हुए.

'वीर बाल दिवस' कार्यक्रम में बोलते हुए पीएम मोदी ने कहा, "वीर बाल दिवस हमें याद दिलाएगा कि शौर्य की परकाष्ठा के समय कम आयु मायने नहीं रखती. वीर बाल दिवस हमें याद दिलाएगा कि दस गुरुओं का योगदान क्या है? देश के स्वाभिमान के लिए सिख परंपरा का बलिदान क्या है? वीर बलिदान दिवस हमें बताएगा कि भारत क्या है? भारत की पहचान क्या है?"

उन्होंने कहा, "औरंगजेब के आतंक के खिलाफ गुरु गोबिंद सिंह जी पहाड़ की तरह खड़े थे, लेकिन ज़ोरावर सिंह साहब और फ़तेह सिंह साहब, जैसे कम उम्र के बालकों से औरंगबेज और उसकी सल्लतन की क्या दुश्मनी हो सकती थी. दो निर्दोष बालकों को दीवार में जिंदा चुनवाने जैसी दरिंदगी क्यों की गई."

"वो इसलिए क्योंकि औरंगबेज और उसके लोग गुरु गोबिंद सिंह के बच्चों का धर्म तलवार के दम पर बदलना चाहते थे. जिस राष्ट्र में उसकी नई पीढ़ी जोर जुर्म के आगे घुटने टेक देती है उसका आत्मविश्वास और उसका भविष्य अपने आप मर जाता है."

इसके अलावा संस्कृति मंत्रालय की ओर से एक विशेष डिजिटल प्रदर्शनी भी लगाई जाएगी.

'वीर बाल दिवस' नाम पर एतराज़

लेकिन शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने एक बार फिर से 'वीर बाल दिवस' के नाम को लेकर एतराज़ जताया है.

शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के सदस्य गुरबचन सिंह ग्रेवाल ने 25 दिसंबर की शाम को मीडिया से कहा, "मोदी सरकार ने 26 दिसंबर को 'वीर बाल दिवस' मनाने का एलान किया है, जबकि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी ने पत्राचार के ज़रिए इस नाम पर एतराज़ जताया था."

नरेंद्र मोदी

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"शिरोमणि कमेटी ने कहा था कि जब 'वीर बाल दिवस' नाम लिया जाता है तो साहिबज़ादों का नाम और उनके बलिदान का ज़िक्र नहीं आता. इस नाम में साहिबज़ादों और शहादत शब्द जोड़ने की मांग की गई थी. सरकार द्वारा ऐसा करने के संकेत भी दिए गए थे, लेकिन ऐसा नहीं किया गया."

ग्रेवाल ने कहा, "शिरोमणि कमेटी तो एतराज़ ज़ाहिर कर चुकी है, लेकिन दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के सदस्यों जो इन दिनों भाजपा के साथ चल रहे हैं, उन्होंने सब कुछ जानते हुए भी इस मसले पर स्टैंड नहीं लिया, जो बहुत दु:खद है."

'सिख धर्म के आंतरिक मामले में दख़ल'

पिछले साल केंद्र सरकार ने छोटे साहेबज़ादों के शहीदी दिवस को 'वीर बाल दिवस' घोषित किया था जिसके बाद कुछ विवाद शुरू हो गया था. कुछ सिख विद्वानों ने इसे सिख धर्म के आंतरिक मामलों में दख़ल बताया और इस फ़ैसले को तत्काल वापस लेने की मांग की थी.

लेकिन कई धार्मिक और राजनीतिक नेताओं ने भी प्रधानमंत्री के इस फ़ैसले की तारीफ़ भी की थी. प्रधानमंत्री के इस एलान के बाद तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आई थीं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 9 जनवरी को श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के प्रकाश पर्व के अवसर पर युवा साहिबज़ादों की शहादत को याद करने के लिए 26 दिसंबर को 'वीर बाल दिवस' घोषित किया था.

इस जानकारी को एक ट्वीट के माध्यम से साझा करते हुए, प्रधानमंत्री ने लिखा था, "आज, श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के प्रकाश पर्व के शुभ अवसर पर, मुझे यह घोषणा करते हुए गर्व हो रहा है कि इस वर्ष से 26 दिसंबर 'वीर बाल दिवस' के रूप में मनाया जाएगा. यह साहिबज़ादों के साहस और न्याय के प्रति उनकी निष्ठा के लिए एक उपयुक्त श्रद्धांजलि है."

उन्होंने लिखा, "वीर बाल दिवस उसी दिन मनाया जाएगा जिस दिन साहिबज़ादा ज़ोरावर सिंह जी और साहिबज़ादा फ़तेह सिंह जी ने शहादत दी थी. इन दोनों महापुरुषों ने धर्म के महान सिद्धांतों से विचलित होने की बजाय मृत्यु को प्राथमिकता दी."

सिख समुदाय के एतराज़ की वजह

शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष एडवोकेट हरजिंदर सिंह धामी ने प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि, ''वे प्रधानमंत्री की भावनाओं की क़द्र करते हैं, लेकिन छोटे साहिबज़ादों की शहादत को बाल दिवस तक सीमित करना सिख भावनाओं और परंपराओं के अनुरूप नहीं है.''

शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की सदस्य किरणजोत कौर ने शहीद दिवस को दिन का नाम देने की जगह स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल कराने की मांग की थी.

प्रधानमंत्री की घोषणा को लेकर उन्होंने कहा, "साहिबज़ादों की शहादत को नज़रअंदाज़ करते हुए ग़ैर सिख सरकार ने छोटे साहिबज़ादों के शहादत दिवस का नाम 'वीर बाल दिवस' रखा है. मोदी सरकार ने इसे बच्चों का खेल बना लिया है. धार्मिक शब्दावली में छोटे साहिबज़ादों के लिए बाबा शब्द का इस्तेमाल होता है और किसी ग़ैर सिख को यह अधिकार नहीं है कि वह धार्मिक शब्दावली से छेड़छाड़ करे."

बीती नौ जनवरी को अंग्रेज़ी में ट्वीट करने के क़रीब दो घंटे बाद प्रधानमंत्री ने पंजाबी में भी ट्वीट किया जिसमें साहिबज़ादों के लिए बाबा शब्द का इस्तेमाल किया गया था.

हरजिंदर धामी

'फ़ैसला ख़ारिज होना चाहिए'

सिखों के समूह दल खालसा के प्रवक्ता कंवरपाल सिंह ने इस घोषणा पर नाराज़गी जताते हुए कहा था कि सरकार को सिखों के धार्मिक मामलों में दख़ल देने का कोई अधिकार नहीं है.

दल खालसा के अनुसार, छोटे साहिबज़ादों के शहादत दिवस को 'वीर बाल दिवस' के रूप में मनाना सही नहीं होगा, इसलिए इस फ़ैसले को ख़ारिज किया जाना चाहिए.

वहीं दूसरी ओर, दमदमी टकसाल के प्रधान हरनाम सिंह खालसा ने 26 दिसंबर को साहिबज़ादों के साहस और शौर्य का जश्न मनाने के लिए देश भर में सार्वजनिक अवकाश घोषित कर 'वीर बाल दिवस' मनाने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फ़ैसले की सराहना की थी.

उन्होंने इसके लिए प्रधानमंत्री को धन्यवाद भी दिया था. दमदमी टकसाल प्रमुख के मुताबिक़, प्रधानमंत्री के इस क़दम से देश का सिर ऊंचा हुआ है.

हरनाम सिंह खालसा

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'फ़ैसले का स्वागत है, लेकिन नामकरण उचित नहीं'

शिरोमणि अकाली दल (दिल्ली) के नेता परमजीत सिंह सरना ने बाबा ज़ोरावर सिंह और बाबा फ़तेह सिंह की शहादत को आधिकारिक मान्यता दिए जाने का स्वागत तो किया था, लेकिन इस महान शहादत दिवस को 'वीर बाल दिवस' का नाम नहीं देने का भी आग्रह किया था.

वहीं दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंध कमेटी के पूर्व अध्यक्ष और भाजपा नेता मनजिंदर सिंह सिरसा ने प्रधानमंत्री की घोषणा का स्वागत करते हुए कहा था कि देश और दुनिया साहिबज़ादों की शहादत के इतिहास को जानेगी.

'यह एक सराहनीय क़दम है'

पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी इस घोषणा का स्वागत करते हुए ट्वीट किया था, ''26 दिसंबर को 'वीर बाल दिवस' के रूप में मनाने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फ़ैसले का मैं स्वागत करता हूं.''

वहीं गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी में श्री गुरु ग्रंथ साहिब स्टडी सेंटर के निदेशक डॉक्टर अमरजीत सिंह ने कहा, "मैं भारत सरकार के इस फ़ैसले की सराहना करता हूं. इस तरह की घोषणा से सिख इतिहास के बारे में ज्ञान बढ़ेगा. उस बलिदान ने इतिहास बदल दिया और अगर भारत सरकार इसे पहचान रही है तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए."

हालांकि डॉक्टर अमरजीत सिंह ने उम्मीद जताई थी कि लोगों के सुझाव पर सरकार के लिए इस दिन का नाम बदलना बड़ी बात नहीं होगी, हालांकि ऐसा हुआ नहीं. उन्होंने यह भी कहा था, "मैं सुझाव दूंगा कि अगर इसमें साहिबज़ादा शब्द जोड़ दिया जाए तो कुछ लोगों की आपत्तियां दूर हो जाएंगी."

सिख

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साहेबज़ादों की शहादत

सिख इतिहास में पौष या पूस का महीना (दिसंबर के मध्य से शुरू) बहुत दुखद होता है. दसवें गुरु साहिब श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के परिवार का बिछड़ना, साहिबज़ादों और माता गुजरी जी की शहादत, ये सारी त्रासदी इसी महीने में हुई थी.

17वीं शताब्दी में पंजाब के सरहिंद सूबे में नवाब वज़ीर ख़ान ने माता गुजरी और छोटे साहिबज़ादे बाबा ज़ोरावर सिंह और बाबा फ़तेह सिंह जी को फ़तेहगढ़ साहिब की ठंडी मीनार में कै़द कर दिया था और बाद में छोटे साहिबज़ादे बाबा ज़ोरावर सिंह जी और बाबा फ़तेह सिंह जी को दीवार में ज़िंदा दफ़्न कर दिया था.

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