Rechercher dans ce blog

Thursday, May 18, 2023

जातिगत जनगणना के मामले में नीतीश सरकार को SC से राहत नहीं, कहा- पहले हाईकोर्ट आ फैसला आने दें - Aaj Tak

बिहार में जातिगत जनगणना पर रोक के पटना हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची नीतीश सरकार को राहत नहीं मिली है. सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिए हैं कि पटना हाईकोर्ट के फैसले पर रोक नहीं लगाई जाएगी. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस राजेश बिंदल की बेंच ने कहा, पहले 3 जुलाई को हाईकोर्ट को मामले को सुनने दीजिए, अगर वहां से आपको राहत नहीं मिलती तो आप यहां आ सकते हैं. 

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान बिहार सरकार ने कहा, हाईकोर्ट ने मामले में हमारा पूरा पक्ष नहीं सुना और तत्काल रोक लगा दी. सरकार की ओर से कोर्ट में बताया गया कि सर्वे का 80 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है. हमें सर्वे का काम पूरा करने दीजिए. हमें सिर्फ 10 दिन का समय दिया जाए, ताकि हमारा सर्वे पूरा हो जाए. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, मामला हाईकोर्ट में लंबित है. उन्हें सुनवाई करने दीजिए. अगर वहां से आपको राहत नहीं मिलती तो आप यहां आ सकते हैं. 

बिहार सरकार ने पिछले साल जातिगत जनगणना कराने का फैसला किया था. इसका काम जनवरी 2023 से शुरू हुआ था. इसे मई तक पूरा किया जाना था. लेकिन अब हाईकोर्ट ने इस पर 3 जुलाई तक रोक लगा दी है.

हाईकोर्ट में दाखिल की गई थीं 6 याचिकाएं

नीतीश सरकार के जातिगत जनगणना कराने के फैसले के खिलाफ पटना हाईकोर्ट में 6 याचिकाएं दाखिल की गई थीं. इन याचिकाओं में जातिगत जनगणना पर रोक लगाने की मांग की गई थी. हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस मधुरेश प्रसाद की बेंच ने इस पर 3 जुलाई तक रोक लगा दी थी.

जातिगत जनगणना की जरूरत क्यों?

बिहार सरकार का जातिगत जनगणना कराने के पक्ष में तर्क ये है कि 1951 से एससी और एसटी जातियों का डेटा पब्लिश होता है, लेकिन ओबीसी और दूसरी जातियों का डेटा नहीं आता है. इससे ओबीसी की सही आबादी का अनुमान लगाना मुश्किल होता है.

1990 में केंद्र की तब की वीपी सिंह की सरकार ने दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिश को लागू किया. इसे मंडल आयोग के नाम से जानते हैं. इसने 1931 की जनगणना के आधार पर देश में ओबीसी की 52% आबादी होने का अनुमान लगाया था.

मंडल आयोग की सिफारिश के आधार पर ही ओबीसी को 27% आरक्षण दिया जाता है. जानकारों का मानना है कि एससी और एसटी को जो आरक्षण मिलता है, उसका आधार उनकी आबादी है, लेकिन ओबीसी के आरक्षण का कोई आधार नहीं है.

जातिगत जनगणना के पीछे सियासी गणित क्या है? 

1990 के दशक में मंडल आयोग के बाद जिन क्षेत्रीय पार्टियों का उदय हुआ, उसमें लालू यादव की RJD से लेकर नीतीश कुमार की JDU तक शामिल है. बिहार की राजनीति ओबीसी के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. बीजेपी से लेकर तमाम पार्टियां ओबीसी को ध्यान में रखकर अपनी सियासत कर रहीं हैं. ओबीसी वर्ग को लगता है कि उनका दायरा बढ़ा है, ऐसे में अगर जातिगत जनगणना होती है तो आरक्षण की 50% की सीमा टूट सकती है, जिसका फायदा उन्हें मिलेगा. 

ऐसे में बिहार के सियासी समीकरण को ध्यान में रखते हुए जातिगत जनगणना की मांग लंबे समय से हो रही है. शायद यही वजह है कि केंद्र में बीजेपी जातिगत जनगणना का भले ही विरोध कर रही हो, लेकिन बिहार में वो समर्थन में खड़ी हुई है.

Adblock test (Why?)


जातिगत जनगणना के मामले में नीतीश सरकार को SC से राहत नहीं, कहा- पहले हाईकोर्ट आ फैसला आने दें - Aaj Tak
Read More

No comments:

Post a Comment

'हां, ये सही है लेकिन क्या मुल्क में यही चलता रहेगा...', ASI रिपोर्ट पर बोले प्रोफेसर इरफान हबीब - Aaj Tak

ज्ञानवापी परिसर की ASI सर्वे रिपोर्ट को लेकर हिंदू पक्ष ने कई दावे किए हैं. गुरुवार को वकील विष्णु शंकर जैन ने रिपोर्ट सार्वजनिक की. उन्हों...