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Friday, June 4, 2021

कोरोना के बीच अच्छी खबर: AIIMS का दावा- दूसरी लहर के पीक पर पहुंचने पर भी वैक्सीन लगवाने वालों में से किसी ... - Dainik Bhaskar

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नई दिल्ली4 घंटे पहले

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ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (AIIMS) दिल्ली ने कोरोना के बीच एक स्टडी की, जिसमें एक अच्छी खबर सामने आई है। AIIMS की स्टडी में दावा किया गया है कि वैक्सीन लगाने के बाद कोरोना से एक भी व्यक्ति की मौत नहीं हुई है। उन्होंने यह स्टडी अप्रैल-मई के दौरान की थी, जब कोरोना की दूसरी लहर पीक पर थी और हजारों लोग जान गंवा चुके थे।

वैक्सीन लगवाने के बाद यदि कोरोना होता है, तो इसे ब्रेकथ्रू इन्फेक्शन कहा जाता है। AIIMS दिल्ली की स्टडी उन लोगों के लिए भी राहत भरी खबर है, जो वैक्सीन लगवाने से डरते हैं। ऐसे मामले खासकर गांवों में देखने को मिलते हैं। शहर में भी कई लोग हैं, जो वैक्सीन लगवाने से डर रहे। स्टडी के बाद उन्हें समझना चाहिए कि कोरोना से बचने का वैक्सीन ही एकमात्र उपाय है।

63 ब्रेकथ्रू इन्फेक्टेड लोगों पर रिसर्च की गई
AIIMS दिल्ली ने अपनी स्टडी में 63 ब्रेकथ्रू इन्फेक्टेड लोगों पर रिसर्च की। इसमें 36 मरीज ऐसे थे, जिन्होंने वैक्सीन की दोनों डोज ली थी, जबकि 27 ने सिर्फ एक ही डोज लगवाई थी। इनमें से 10 लोगों ने कोवीशील्ड और 53 लोगों ने कोवैक्सिन लगवाई थी। इस स्टडी में 21 से 92 साल तक के मरीजों को शामिल किया गया। सभी की औसत उम्र 37 थी। 63 मरीज में से 41 पुरुष और 22 महिलाएं थीं।

एक अमेरिकी रिसर्च में पाया गया कि वैक्सीन लगवाने के बाद संक्रमित होने वाले ज्यादातर मरीज घर पर ही ठीक हो गए। जबकि बहुत ही कम ऐसे भी मरीज रहे हैं, जिन्हें गंभीर लक्षण के चलते अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा है। हालांकि, दोनों ही स्थिति में किसी की मौत नहीं हुई है।

भारत में कोरोना के डेल्टा वैरियंट से 1.80 लोगों की मौत
भारत में दूसरी लहर 11 फरवरी से शुरू हुई थी और अप्रैल में भयावह हो गई थी। एक स्टडी में देश में कोरोना का वैरिएंट डेल्टा सुपर इन्फेक्शियस मिला है, जो दूसरी लहर के दौरान काफी तेजी से फैला। इसने ही भारत में 1.80 लाख से ज्यादा लोगों की जान ली है। इस वैरियंट पर एंटीबॉडी या वैक्सीन कारगर है या नहीं? यह पक्के तौर पर नहीं पता।

WHO का कहना है कि डेल्टा वैरिएंट पर वैक्सीन की इफेक्टिवनेस, दवाएं कितनी प्रभावी हैं, इस पर कुछ नहीं कह सकते। यह भी नहीं पता कि इसकी वजह से रीइन्फेक्शन का खतरा कितना है। शुरुआती नतीजे कहते हैं कि कोविड-19 के ट्रीटमेंट में इस्तेमाल होने वाली एक मोनोक्लोनल एंटीबॉडी की इफेक्टिवनेस कम हुई है।

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