महायोगी श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव इस बार दुर्लभ संयोग के बीच हो रहा है। अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के बीच जयंती योग में कान्हा आज रात 12 बजे जन्म लेंगे। इसी योग में कान्हा का जन्म द्वापर युग में हुआ था। ऐसा संयोग 27 वर्ष बाद हो रहा है। यही नहीं कान्हा के जन्म के वक्त सर्वार्थ सिद्ध योग तो होगा ही, चन्द्रमा भी वृषभ (उच्च) राशि में होंगे।
Happy Janmashtami 2021: आज जन्माष्टमी पर शेयर करें ये बेस्ट 5 मैसेज
सोमवार को व्रत रखना विशेष पुण्यकारी है। रविवार को रात 11:25 पर अष्टमी तिथि प्रारंभ होगी। ऐसे में सूर्य उदयनी तिथि के अनुसार सोमवार को व्रत रखें। रोहिणी नक्षत्र भी सोमवार को सुबह 6:39 बजे से लगेगा।
इस बार स्मार्त एवं वैष्णव एक साथ मनाएंगे जन्माष्टमी
साहित्याचार्य शरद चतुर्वेदी ने बताया कि इस वर्ष दृश्य गणित एवं प्राचीन गणित के पंचांगों के आधार पर स्मार्त एवं वैष्णव एक साथ 30 अगस्त को श्री कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव मनाएंगे। इसके पहले 5 सितंबर 2015 को एक साथ जन्माष्टमी मनाई गई थी।
सर्वार्थ सिद्धि योग का महत्व
जन्माष्टमी के दिन रोहिणी नक्षत्र और चंद्रमा वृष राशि में रहने के साथ ही जन्माष्टमी पर सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन रहा है। ज्योतिषविद विभोर इंदुसुत कहते हैं कि अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र, चंद्रमा वृष राशि में होने से श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर्व का व्रत करना इसी दिन उत्तम धर्म शास्त्र सम्मत है।
ऐसे करें जन्माष्टमी का पूजन
जन्माष्टमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप की विशेष रूप से पूजा आराधना करनी चाहिए।
- इस दिन बाल गोपाल का शंख से पंचामृत अभिषेक करना चाहिए।
-साथ ही केसर मिले हुए दूध और गंगाजल से स्नान कराएं।
-बाल गोपाल का अभिषेक करने के दौरान लगातार ऊं नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करें। -अभिषेक के बाद बाल गोपाल को नया वस्त्र पहनाएं। फिर उनकी माला, बांसुरी, मोरपंख, चंदन का टीका और तुलसी की माला से शृंगार करें।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी मुहूर्त
- अष्टमी तिथि प्रारंभ- रविवार को रात 11 बजकर 25 मिनट से
- अष्टमी तिथि समाप्त- सोमवार को देर रात 01 बजकर 59 मिनट पर होगा।
- रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ- सोमवार सुबह 06 बजकर 39 मिनट से
- रोहिणी नक्षत्र समापन- 31 अगस्त को सुबह 09 बजकर 44 मिनट पर।
जन्माष्टमी के पूजन का मुहूर्त
30 अगस्त- रात्रि 11.59 से 12.44 बजे तक
आरती श्री कृष्ण भगवान-
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
गले में बैजंती माला,
बजावै मुरली मधुर बाला ।
श्रवण में कुण्डल झलकाला,
नंद के आनंद नंदलाला ।
गगन सम अंग कांति काली,
राधिका चमक रही आली ।
लतन में ठाढ़े बनमाली
भ्रमर सी अलक,
कस्तूरी तिलक,
चंद्र सी झलक,
ललित छवि श्यामा प्यारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की...॥
कनकमय मोर मुकुट बिलसै,
देवता दरसन को तरसैं ।
गगन सों सुमन रासि बरसै ।
बजे मुरचंग,
मधुर मिरदंग,
ग्वालिन संग,
अतुल रति गोप कुमारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की...॥
जहां ते प्रकट भई गंगा,
सकल मन हारिणि श्री गंगा ।
स्मरन ते होत मोह भंगा
बसी शिव सीस,
जटा के बीच,
हरै अघ कीच,
चरन छवि श्रीबनवारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की...॥
Janmashtami 2021: द्वापर जैसे संयोग में आज जन्मेंगे कान्हा, यहां पढ़ें पूजन विधि, रोहिणी नक्षत्र मुहूर्त और आरती - Hindustan
Read More
No comments:
Post a Comment