भारत ने कहा है कोविड वैक्सीन की दो डोज़ लगवा चुके लोगों को ब्रिटेन में वैक्सीनेटेड न माना जाना भेदभावपूर्ण है.
भारतीय विदेश सचिव हर्ष श्रृंगला ने मंगलवार को एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में यह बात कही.
उन्होंने कहा, "हम देख रहे हैं कि इस मामले का निबटारा कैसे होता है. अगर कोई संतोषजनक हल नहीं निकला तो भारत के पास भी ब्रिटेन के ख़िलाफ़ ऐसा ही कदम उठाने का अधिकार है."
हर्ष श्रृंगला ने कहा कि भारत ने ख़ुद ब्रिटेन को कोविशील्ड वैक्सीन की 50 लाख डोज़ दी है और ब्रिटेन ने उनका इस्तेमाल किया है. ऐसे में कोविशील्ड को मान्यता ना देना भेदभावपूर्ण है और इसका असर भारतीयों की ब्रिटेन यात्रा पर पड़ेगा.
श्रृंगला का बयान भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर की ब्रितानी विदेश मंत्री लिज़ ट्रूस से मुलाकात के बाद आया है. बताया गया है कि इस बातचीत में ब्रिटेन की वैक्सीन नीति पर भी चर्चा हुई.
कोविशील्ड वैक्सीन ब्रिटेन-स्वीडन की फ़ार्मी कंपनी एस्ट्राजेनेका और ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के सहयोग से बनी है जिसका भारत में पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट में उत्पादन हुआ है.
क्या है पूरा मामला?
दरअसल ब्रितानी सरकार के नए नियम के मुताबिक़ भारत, संयुक्त अरब अमीरात, तुर्की, थाईलैंड, जॉर्डन और रूस जैसे कुछ देशों से यात्रा करके ब्रिटेन पहुँचने वाले व्यक्ति को 10 दिन क्वारंटीन में बिताने ही होंगे और कोविड का टेस्ट भी कराना होगा.
विवाद का कारण यह है कि इन देशों से ब्रिटेन जाने वाले उन यात्रियों को भी क्वारंटीन नियमों का पालन करना होगा जिन्होंने कोरोना वैक्सीन की दो डोज़ ले ली है.
यानी अगर आप भारत, तुर्की, यूएई, थाईलैंड या रूस से हैं तो वैक्सीन लेने के बावजूद आपको 10 दिन क्वारंटीन में रहना होगा और सभी ज़रूरी टेस्ट कराने होंगे.
उड्डयन विशेषज्ञ एलेक्स मार्कियस ने सोमवार को इस मुद्दे पर एक ट्वीट किया और लिखा कि कई देश ब्रिटेन के इस फ़ैसले से नाख़ुश हैं.
उन्होंने लिखा था, "यह अजीब है कि ब्रिटेन ने उन देशों के लिए भी यह नियम लागू किया हैं जहाँ लोगों को वही वैक्सीन लगाई जा रही है जो ब्रितानी लोगों को. जैसे- फ़ाइज़र, एस्ट्राजेनेका, मॉडर्ना वगैरह."
एलेक्स ने लिखा कि ब्रिटेन की नई ट्रैवेल पॉलिसी ग़ैरज़रूरी ढंग से जटिल बना दी गई है.
भारतीय कर रहे हैं आलोचना
कांग्रेस नेता शशि थरूर ने इस ट्वीट को रिट्वीट करते हुए लिखा था, "यही वजह है कि मैंने अपनी किताब 'बैटल ऑफ़ बिलॉन्गिंग' के लॉन्च के दौरान कैंब्रिज यूनियन में बहस का यह मुद्दा उठाया था.''
उन्होंने लिखा, "वैक्सीन की दोनों डोज़ लेने के बाद भी भारतीयों को क्वारंटीन में रहने के लिए कहना आपत्तिजनक है. इसकी समीक्षा की जा रही है."
अब इस पूरे मसले पर ब्रिटेन की मुश्किलें बढ़ रही हैं.
ब्रिटिश उच्चायुक्त के एक प्रवक्ता ने कहा, "हम भारत सरकार से इस बारे में बात कर रहे हैं कि वैक्सीन सर्टिफ़िकेट को कैसे प्रमाणित किया जाए."
उन्होंने ब्रितानी सरकार के फ़ैसले का बचाव करते कहा, "ब्रिटेन जल्दी से जल्दी अंतरराष्ट्रीय यात्रा पूरी तरह बहाल करने पर प्रतिबद्ध है."
प्रवक्ता ने कहा कि यह लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिहाज़ से उठाया गया एक कदम है ताकि वो सुरक्षित माहौल में खुलकर एक-दूसरे से मिल सकें."
भारतीय सोशल मीडिया में ब्रिटेन के इस नियम की ख़ूब आलोचना हो रही है. लोग इसे 'अजीब' और 'भेदभाव' करने वाला बता रहे हैं.
कोरोना महामारी में नस्लभेद की बहस
कोरोना महामारी के दौरान नस्लभेद की बहस भी कई परतों में सामने आई है.
अमेरिका और यूरोपीय देशों में एशियाई मूल के लोगों को नस्लभेदी टिप्पणियों और हमलों का सामना करना पड़ा था.
ऑस्ट्रेलिया ने भी कोरोना के दूसरी लहर के दौरान कुछ समय के लिए भारत से लौटने वाले अपने नागरिकों के पहुँचने पर रोक लगा दी थी जिसे नस्लभेदी बताया गया था और इस पर ख़ूब विवाद हुआ था.
भारत में पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों को महामारी के दौरान नस्लभेद का सामना करना पड़ा.
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