नई दिल्ली. लद्दाख में 17 महीने पहले शुरू हुए भारत-चीन (India-China) के बीच विवाद (LAC Dispute) ने पूरे इलाके के समीकरण को बदल दिया है. जितने साजोसामान, सैनिक और हथियारों को तैनात किया गया, उतना कभी इस इलाके में नहीं हुआ. अब जब जंग का मैदान ऊंची पहाड़ियां और ठंडे इलाके हों तो दूर तक मार करने वाले हथियारों की तैनाती करनी ही पड़ेगी. लिहाजा भारतीय सेना ने भी कम समय में अपनी लंबी दूरी तक मार करने वाली तोपों को तैनात कर दिया. सिर्फ लद्दाख के LAC के इलाकों में नहीं बल्कि पूरी LAC पर ऐसी ही तैनाती की गई.
हाल ही में अमेरिका से ली गई अल्ट्रा लाइट हॉवित्ज़र तोप M-777 की तैनाती एलएसी के कई इलाकों में की गई. ये तोप वजन में हल्की होने के कारण ली गई थी जिससे हेलिकॉप्टर के जरिए इन्हें ऊंचे इलाकों में आसानी से कम समय में पहुंचाया जा सके. भारत ने अमेरिका से कुल 145 तोप का सौदा किया जिनमें में पचास फीसदी तोप भारत को मिल चुकी हैं.
चिनुक हेलिकॉप्टर के कारण हुई सहूलियत
इसकी कुल 7 रेजिमेंट बनाई जानी हैं, जिसमें से 3 अब तक स्थापित की जा चुकी हैं. इन तीन रेजिमेंट को एलएसी पर भारत और चीन के बीच तनाव के दौरान तैनात किया गया. चूंकि भारतीय वायुसेना के पास हैविलिफ्ट चिनूक हेलिकॉप्टर मौजूद है इसलिए तोपों को आसानी से उन इलाकों में तैनात किया जा सका. हालांकि 17 किलोमीटर मार करने वाली 105 मिलिमीटर तोप की तैनाती सबसे ज्यादा है क्योंकि उन दुर्गम इलाकों में वो पहले से ही तैनात थी और सबसे मुफीद भी है.
इन तोपों को आसानी से किसी भी ऊंची पोस्ट तक पहुंचाया जा सकता है. चीन को अगर भारतीय सेना ने हथियारों का मिरर डिप्लायमेट करके चौंकाया तो उसकी एक वजह है इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट.
बीआरओ का सरानीय काम
भारतीय आर्टिलरी के डीजी लेफ्टिनेंट जनरल टी. के. चावला ने इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में बॉर्डर रोड ऑर्गनाइज़ेशन की तारीफ करते हुए कहा कि ‘बीआरओ दूरदराज के इलाके में सड़कों का जाल बिछाने के लिए बहुत काम कर रहा है. उनका यह प्रयास जारी रहेगा और हम ज्यादा से ज्यादा एरिया में आर्टिलरी गन पहुंचा सकेंगे. दरअसल पहले सड़क के जरिए बड़ी तोपों को पहाड़ी इलाकों में पहुंचाना मुश्किल होता था. लेकिन बीआरओ ने सड़कों को भारतीय सेना के भारी भरकम टैंक और तोपों के मूवमेंट के लिए बेहतरीन तरीके से तैयार किया.
आधुनिकीकरण का दौर
भारतीय आर्टिलरी अपने आधुनिकरण के दौर से गुजर रही है. ऐसे में नई तोपें तों विदेशों से खरीदी ही जा रही हैं लेकिन देश में भी स्वदेशी तोपों के विकास और निर्माण का काम तेज हुआ है. पुरानी तोपों के बारे में लेफ्टिनेंट जनरल टी. के. चावला ने बताया कि 105 Mm और बोफोर्स तोप पुरानी जरूर हैं पर काम जबरदस्त कर रही हैं.
वहीं भारतीय स्वदेशी तोंपे भी सेना में शामिल होने के लिए तैयार हो रही हैं. स्वदेशी कंपनियां को भी मौका दिया जा रहा है. ले. जन. चावला के मुताबिक स्वदेशी निजी कंपनियों के द्वारा बनाई तोपों ATAGS यानी एडवांस्ड टोड आर्टेलरी गन सिस्टम कुछ मानको पर खरी नहीं उतर रहीं तो वहीं हल्की तोपों की जरूरत पूरी करने के लिए ओएफबी ने जो धनुष गन बनाई है अभी इनमें कुछ दिक्कतें आ रही हैं.
लेफ्टिनेंट जन. चावला मुताबिक संबंधित विभाग और अधिकारियों को इस बाबत बताया भी जा चुका है और उस दिशा में काम भी जारी है. चावला के मुताबिक भारतीय सेना हर तरह की तोप का एक पूरा बुके तैयार कर रही है जिससे हर मैदान में उनका इस्तेमाल किया जा सके. भारतीय सेना ने आर्टिलरी के आधुनिकीकरण के लिए जो प्लान बनाया था उसके मुताबिक 2025 से 2027 तक 3000 से 3600 तोपों को रेजिमेंट में शामिल करना था.
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तोपों की तैनाती से चिनुक हेलिकॉप्टर तक, LAC विवाद में भारत ने कैसे बदला समीकरण - News18 हिंदी
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