Rechercher dans ce blog

Monday, February 7, 2022

उत्तराखंड हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: कोर्ट ने कहा-16 साल की रेप पीड़िता को 28 हफ्ते का गर्भ गिराने का अधिकार, 48... - Dainik Bhaskar

  • Hindi News
  • National
  • Uttarakhand High Court On Rape Victim Terminate Pregnancy | All You Need To Know

देहरादून3 घंटे पहले

  • कॉपी लिंक

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने 16 साल की रेप पीड़िता को 28 सप्ताह 5 दिन के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति दी है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि दुष्कर्म के आधार पर पीड़िता को गर्भपात का अधिकार है। गर्भ में पल रहे भ्रूण के बजाय दुष्कर्म पीड़िता की जिंदगी ज्यादा मायने रखती है। यह फैसला जस्टिस आलोक कुमार वर्मा की सिंगल बेंच ने सुनाया।

कोर्ट ने निर्देश है दिया कि पीड़िता का गर्भपात मेडिकल टर्मिनेशन बोर्ड के मार्गदर्शन और चमोली के CMHO की निगरानी में होगा। यह प्रक्रिया 48 घंटे के भीतर होनी चाहिए। इस दौरान यदि पीड़िता के जीवन पर कोई जोखिम आता है तो इसे तुरंत रोक दिया जाए।

यह आदेश इसलिए अहम है, क्योंकि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत सिर्फ 24 हफ्ते की प्रेग्नेंसी को ही नष्ट किया जा सकता है।

यह है पूरा मामला
गढ़वाल की 16 साल रेप पीड़िता ने पिता के जरिए 12 जनवरी को चमोली में IPC की धारा 376 और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम 2012 की धारा 6 के तहत FIR दर्ज कराई थी। पीड़िता की सोनोग्राफी के बाद 28 हफ्तों से ज्यादा की प्रेग्नेंसी सामने आई। जांच के बाद कहा गया कि मां की जान का जोखिम है इसलिए इस स्टेज में अबॉर्शन करना सही नहीं है। मेडिकल बोर्ड ने कहा था कि 8 महीने का गर्भ अबॉर्ट करते हैं तो पीड़िता की जान जा सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि प्रेग्नेंसी की इस स्टेज में बच्चा असामान्य हो सकता है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का दिया हवाला
पीड़िता की वकील ने प्रेग्नेंसी टर्मिनेशन के पक्ष में दलील देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में ऐसे मामले में गर्भ समाप्ति की अनुमति दी थी जहां प्रेग्नेंसी का समय 25-26 हफ्ते थी। इसी साल शर्मिष्ठा चक्रवर्ती के केस में भी सुप्रीम कोर्ट ने 26 हफ्ते की प्रेग्नेंसी को खत्म करने का आदेश दिया था। 2007 के एक केस में भी सुप्रीम कोर्ट ने 13 साल की पीड़िता को गर्भपात की अनुमति दी थी।

जीने के अधिकार का मतलब सिर्फ जिंदा रहना नहीं
कोर्ट ने कहा कि जीने के अधिकार का मतलब जिंदा रहने या इंसान के अस्तित्व से कहीं ज्यादा है। इसमें मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार शामिल है। नाबालिग के पिता का कहना है कि उनकी बेटी प्रेग्नेंसी को कंटीन्यू करने की हालत में नहीं है। अगर गर्भपात की अनुमति मिली तो उसके शरीर और मन पर बेहद बुरा असर पड़ेगा।

बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि प्रजनन को विकल्प बनाने का अधिकार भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का एक पहलू है। साथ ही महिला खुद के जीवन को होने वाले खतरों से बचाने के लिए सभी जरूरी कदम उठा सकती है।

मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा
कोर्ट ने कहा कि गर्भ के कारण होने वाली पीड़ा महिला की मेंटल हेल्थ पर चोट मानी जाएगी। ऐसे में यदि पीड़िता को प्रेग्नेंसी जारी रखने के लिए मजबूर करते हैं, तो यह संविधान के अनुसार यह उसके मानवीय गरिमा के साथ जीने के अधिकार का उल्लंघन होगा।

अगर बच्चा जिंदा पैदा होता है तो वह उसे क्या नाम देगी, उसका पालन पोषण कैसे करेगी, जबकि वह खुद नाबालिग है। वो अपने साथ हुए दुष्कर्म को कभी भी याद नहीं रखना चाहती। इसलिए प्रेग्नेंसी टर्मिनेशन की इजाजत देना ही न्याय होगा।

खबरें और भी हैं...

Adblock test (Why?)


उत्तराखंड हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: कोर्ट ने कहा-16 साल की रेप पीड़िता को 28 हफ्ते का गर्भ गिराने का अधिकार, 48... - Dainik Bhaskar
Read More

No comments:

Post a Comment

'हां, ये सही है लेकिन क्या मुल्क में यही चलता रहेगा...', ASI रिपोर्ट पर बोले प्रोफेसर इरफान हबीब - Aaj Tak

ज्ञानवापी परिसर की ASI सर्वे रिपोर्ट को लेकर हिंदू पक्ष ने कई दावे किए हैं. गुरुवार को वकील विष्णु शंकर जैन ने रिपोर्ट सार्वजनिक की. उन्हों...