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दिल्ली10 घंटे पहले
यूक्रेन में रूसी हमले में मारे गए मेडिकल स्टूडेंट नवीन शेखरप्पा का पार्थिव शरीर सोमवार को बेंगलुरु पहुंचेगा। जानकारी कर्नाटक के मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई ने शेयर की है। हालांकि पहले उन्होंने गलत ट्वीट कर दिया था। बाद में उसे सुधारते हुए उन्होंने कहा कि नवीन का शव रविवार नहीं बल्कि सोमवार 21 मार्च की दोपहर 3 बजे बेंगलुरु पहुंचेगा।
21 साल के नवीन का घर कर्नाटक में हावेरी जिले में है। वे खारकीव नेशनल यूनिवर्सिटी में मेडिकल स्टूडेंट थे। मौत के बाद से नवीन की बॉडी खारकीव मेडिकल यूनिवर्सिटी की मॉर्चुरी में ही रखी हुई थी।
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नवीन के साथ क्या हुआ था उस दिन
नवीन के साथ होस्टल में रहने वाले श्रीधरन गोपालकृष्णन ने बताया था- यूक्रेन के समय के मुताबिक, सुबह 10.30 बजे नवीन राशन की दुकान के सामने लाइन में लगा था। उसी समय रूसी सेना ने लोगों पर फायरिंग शुरू कर दी। हमारे पास उसकी बॉडी के बारे में कोई जानकारी नहीं। हम में से किसी को अस्पताल जाने की इजाजत भी नहीं दी गई, ताकि हम पता लगा सकें कि उसकी बॉडी कहां रखी गई।
नवीन के साथ पढ़ रहे अमित वैश्यर ने बताया था कि स्टूडेंट्स का ग्रुप सोमवार को रवाना हुआ, लेकिन नवीन ने कहा कि थोड़ा इंतजार करते हैं, ताकि जूनियर्स को भी साथ ले जा सकें। नवीन का कहना था कि उन्हें यूक्रेन आए बहुत कम वक्त हुआ है। वे सभी बुधवार की सुबह खारकीव छोड़ने वाले थे। मंगलवार जब वो खाना लेने गया, तब उसकी मौत हो गई।
यूक्रेनी ने फोन उठाकर बताया नवीन नहीं रहा
अमित ने आगे कहा कि जब भी कर्फ्यू हटता, वे सामान खरीदने जाते थे। मंगलवार 1 मार्च को नवीन सुबह 6 बजे ही खाना लेने के लिए निकल गया था। बंकर से बाजार 50 मीटर की दूरी पर ही था। 7.58 बजे उसने मैसेज भेजा कि उसके पास पैसे कम पड़ रहे हैं। इसके बाद जब अमित ने उसके फोन पर 8.10 बजे कॉल किया तो पहले उठा नहीं इसके बाद एक यूक्रेनी ने कॉल का जवाब दिया और कहा कि वह अब नहीं रहा।
नवीन के पिता के मुताबिक नवीन ने प्री-यूनिवर्सिटी कोर्स (PUC) में 97% स्कोर किया था। बावजूद इसके वह स्टेट में मेडिकल सीट हासिल नहीं कर सका।
पिता का आरोप- खार्किव यूनिवर्सिटी ने जोखिम में डाली जान
नवीन अपने पिता से रोजाना कई बार फोन पर बात करता था। युद्ध की संभावना के बीच उसने बताया था कि स्टूडेंट्स ने यूनिवर्सिटी से रिक्वेस्ट की थी कि वह छुट्टियां दे दे ताकि वे सभी देश वापसी की प्लानिंग कर सकें। लेकिन यूनिवर्सिटी ने उनकी अपील खारिज कर दी और कहा कि कोई युद्ध नहीं होने वाला। इसलिए उन्हें जबरन रोका गया। उनके पास खाना और पानी भी लिमिटेड था। हमारे बच्चे 2000 किमी दूर थे बॉर्डर से, हमने दूतावास में बात की। पैरेंट्स भी अपनी तरफ से कोशिशें कर रहे थे, लेकिन कुछ नहीं हुआ और मैंने अपना बेटा खो दिया।
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