सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि सिखों के पगड़ी पहनने की तुलना हिजाब से नहीं की जा सकती है.
शैक्षणिक संस्थाओं के परिसर में हिजाब पहनने पर लगाए गए प्रतिबंध के फ़ैसले को कर्नाटक हाई कोर्ट द्वारा बरकरार रखने के ख़िलाफ़ दायर की गई याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ये बात कही.
जस्टिस हेमंत गुप्ता की अगुवाई वाली पांच जजों की सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि पगड़ी और कृपाण सिखों के लिए अनिवार्य हैं. इसलिए सिखों के पगड़ी पहनने की हिजाब से तुलना अनुचित है क्योंकि सिख धर्म में पंचक अनिवार्य है.
याचिकाकर्ताओं में से एक के वकील निज़ामुद्दीन पाशा ने अपनी दलीलों में कृपाण और पगड़ी की तुलना हिजाब से करने की कोशिश की थी.
एडवोकेट पाशा ने कहा कि हिजाब पहनना मुस्लिम लड़कियों की धार्मिक रीति रिवाजों का हिस्सा है. उन्होंने ये भी पूछा कि क्या हिजाब पहनने वाली लड़कियों को स्कूल आने से रोका जा सकता है? उन्होंने ये दलील भी दी कि सिख छात्रों को पगड़ी पहनने की इजाजत है.
निज़ामुद्दीन पाशा ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि सांस्कृतिक रीति रिवाज़ों का भी संरक्षण किया जाना चाहिए.
जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा कि कृपाण को संविधानिक संरक्षण मिला हुआ है इसलिए दोनों धर्मों के रीति-रिवाज़ों की तुलना न की जाए.
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
"अगर संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत कपड़े पहनना पूर्ण मौलिक अधिकार है तो फिर कपड़े न पहनना भी इस अनुच्छेद के तहत अधिकार बन जाता है."
कर्नाटक के स्कूल-कॉलेजों में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध बरकरार रखने वाले हाई कोर्ट के आदेश के ख़िलाफ़ अर्ज़ियों पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसी तरह के कई कड़े सवाल और टिप्पणियां कीं.
इस मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को ये भी कहा कि कर्नाटक हिजाब बैन मामले में सवाल सिर्फ़ स्कूलों में हिजाब पर प्रतिबंध का है क्योंकि इसके अलावा कहीं भी हिजाब पहनने की मनाही नहीं है.
इस साल जनवरी महीने में जब भारत के कई राज्यों में कड़ाके की ठंड थी, उस समय कर्नाटक में छिड़ा हिजाब विवाद पूरे देश में ताप बढ़ाने का काम कर रहा था. तबसे ये विवाद जारी है.
मार्च महीने में सरकारी शैक्षिक संस्थानों में हिजाब बैन को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए कर्नाटक हाई कोर्ट ने कहा था कि हिजाब इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है. इसी फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है.
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई गुरुवार को भी जारी रहेगी.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या-क्या कहा?
शीर्ष न्यायालय में जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की खंडपीठ ने इस मामले में सुनवाई की.
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील देवदत्त कामत ने न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ से अनुरोध किया कि इस मामले को पांच-सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेजा जाए.
उन्होंने दलील दी कि अगर कोई लड़की संविधान के अनुच्छेद 19, 21 या 25 के तहत अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए हिजाब पहनने का फैसला करती है, तो क्या सरकार उस पर ऐसा प्रतिबंध लगा सकती है जो उसके अधिकारों का उल्लंघन करे.
न्यायमूर्ति गुप्ता ने इसपर कहा, "हम इस बहस को अतार्किक अंत तक नहीं ले जा सकते...अगर आप कहते हैं कि कपड़े पहनने का अधिकार एक मौलिक अधिकार है तो कपड़े न पहनने का अधिकार भी मौलिक अधिकार बन जाता है." इस पर अधिवक्ता कामत ने कहा कि स्कूल में कोई भी कपड़े नहीं उतार रहा है.
कामत की ओर से क्रॉस, रुद्राक्ष और जनेऊ धारण करने के उदाहरणों के जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये सब कपड़े के ऊपर नहीं पहने जाते, किसी को दिखाई नहीं देते. कोर्ट ने तर्क दिया कि कोई भी छात्रों की यूनिफ़ॉर्म उतरवाकर ये जांच करने नहीं जा रहा कि उन्होंने कौन सा धार्मिक प्रतीकचिह्न पहना है.
पीठ ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा, "सवाल यह है कि कोई भी आपको हिजाब पहनने से नहीं रोक रहा है. आप इसे जहां चाहें पहन सकते हैं. प्रतिबंध सिर्फ़ स्कूल में है. हमारी चिंता केवल इसको लेकर है."
"दक्षिण अफ़्रीका के बारे में भूलिए, भारत लौटिए"
बहस के दौरान, कामत ने दक्षिण भारत की एक हिंदू लड़की के मामले में दक्षिण अफ्रीका की संवैधानिक अदालत के एक फैसले का भी उल्लेख किया, जो स्कूल में नोज़ पिन पहनना चाहती थी.
वेबसाइट लाइव लॉ के अनुसार लड़की दक्षिण अफ़्रीका के स्कूल कोड के तहत नोज़ पिन को कुछ समय के लिए उतारने के लिए तैयार हो गई थी. उस समय दक्षिण अफ़्रीका की अदालत ने माना था कि लड़की को थोड़े समय के लिए भी नोज़ पिन निकालने के लिए कहने से ये संदेश जाएगा कि उसका और उसके धर्म का स्वागत नहीं किया जा रहा.
इस पर जस्टिस गुप्ता ने कहा कि नोज़ पिन पहनना धार्मिक प्रतीक नहीं है. जस्टिस गुप्ता ने तर्क दिया कि पूरी दुनिया में महिलाएं झुमके पहनती हैं, लेकिन यह कोई धार्मिक प्रथा नहीं है. हालांकि, कामत ने ज़ोर देकर कहा कि कुछ अनुष्ठानों के दौरान 'बिंदी' और 'नोज़ पिन' पहनने का धार्मिक महत्व है.
जस्टिस गुप्ता ने तब बताया कि ये फ़ैसला दक्षिण अफ़्रीका के संदर्भ में है, जिसकी आबादी भारत की तरह विविध नहीं है. उन्होंने कहा, "बाकी सभी देशों में अपने नाग़रिकों के लिए एक समान कानून है...दक्षिण अफ़्रीका के बारे में भूल जाएँ, भारत आएँ."
लाइव लॉ के अनुसार जस्टिस हेमंत गुप्ता ने इस मामले पर पिछली सुनवाई में मौखिक रूप से टिप्पणी की थी कि एक "पगड़ी" एक "हिजाब" के बराबर नहीं है और दोनों की तुलना नहीं की जा सकती.
जब कामत ने अमेरिका के फैसलों का हवाला दिया, तो पीठ ने कहा, "हम अपने देश के साथ अमेरिका और कनाडा की तुलना कैसे कर सकते हैं."
पीठ ने कहा, "हम बहुत रूढ़िवादी हैं…." पीठ ने कहा कि ये फैसले उनके समाज के संदर्भ में दिए गए हैं.
कर्नाटक हाई कोर्ट के 15 मार्च के उस फैसले के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई हैं, जिसमें कहा गया है कि हिजाब पहनना इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है.
क्या कहा था कर्नाटक हाई कोर्ट ने?
कर्नाटक हाई कोर्ट ने कहा था कि हिजाब इस्लाम के अनुसार अनिवार्य नहीं है.
हाइकोर्ट की फुल बेंच ने अपने 129 पन्ने के फ़ैसले में कुरआन की आयतों और कई इस्लामी ग्रंथों का हवाला दिया. अदालत ने 11 दिन की सुनवाई के बाद यह फ़ैसला दिया था.
अदालत ने अपने फ़ैसले में कहा, "इस्लामी धर्म ग्रंथों के आधार पर कहा जा सकता है कि हिजाब पहनना अधिक से अधिक एक सुझाव हो सकता है. जो चीज़ धार्मिक आधार पर अनिवार्य नहीं है, उसे विरोध प्रदर्शनों या अदालत में भावनात्मक दलीलों से धर्म का हिस्सा नहीं बनाया जा सकता."
मुंबई हाइकोर्ट की डिविज़न बेंच के एक पुराने फ़ैसले का हवाला देते हुए कर्नाटक हाइकोर्ट ने कहा था, "यह मानना ठीक नहीं होगा कि किसी को स्कूल में हिजाब पहनने से मना किया जाना इस्लाम की मान्यताओं में हस्तक्षेप करना है."
उस समय उच्च न्यायालय ने तर्क दिया था कि यह नहीं कहा जा सकता कि हिजाब पहनने के चलन को न मानने पर व्यक्ति पाप का भागी होगा.
एक याचिकाकर्ता की दलील थी कि केंद्रीय विद्यालय में हिजाब पहनने की अनुमति है तो फिर इस मामले में क्यों नहीं. इस पर अदालत ने कहा था, "अगर इस दलील को मान लिया जाए तो स्कूली यूनिफ़ॉर्म, यूनिफॉर्म ही नहीं रह जाएगी. छात्राओं की दो श्रेणियां बन जाएंगी, एक वो जिसमें लड़कियां हिजाब के साथ यूनिफ़ॉर्म पहनेंगी, और दूसरी वो जो बिना हिजाब के. इससे सामाजिक अलगाव का माहौल तैयार होगा, जो हम नहीं चाहते हैं. इसके अलावा ऐसा करना यूनिफॉर्म की मूल भावना के खिलाफ़ होगा जिसका उद्देश्य एकरूपता स्थापित करना है, ऐसी एकरूपता जिसमें छात्र के धर्म की कोई भूमिका न हो."
कैसे बढ़ा था विवाद
इस विवाद की शुरुआत कर्नाटक के उडुपि से हुई थी जहाँ एक कॉलेज में कुछ मुसलमान लड़कियों के हिजाब पहनने पर हंगामा हुआ था और सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल हुए थे जिनमें केसरिया पटका पहनकर हिजाब के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करने वाले लोगों को दिखाया गया था.
इसके बाद हिंदू और मुसलमान, दोनों तरफ़ से छात्रों के बीच सोशल मीडिया पर अपने धार्मिक चिन्हों को दिखाने की होड़ लग गई थी, इसकी वजह से तनाव पैदा हुआ और कुछ स्थानों पर हिंसा की घटनाएँ भी हुईं.
हिजाब पहनने से रोके जाने पर छात्राओं ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी. उनका कहना है कि हिजाब पहनना उनका संवैधानिक अधिकार है. लिहाज़ा उन्हें इससे रोका नहीं जा सकता.
पहले इस मामले की हाईकोर्ट की सिंगल बेंच सुनवाई कर रही थी लेकिन फिर इसे तीन सदस्यीय बेंच के पास भेज दिया गया.
इस बीच हिजाब विवाद का मामला उडुपी से निकलकर दूसरे स्कूलों तक भी पहुंच गया. यहां भी छात्राएं हिजाब पहनकर कॉलेज आने लगीं.
देश में कई जगहों पर स्कूल-कॉलेज में हिजाब पहनने के समर्थन और विरोध में प्रदर्शन होने लगे. कर्नाटक में पथराव और तोड़फोड़ की घटनाएं भी हुईं.
हिजाब की तुलना सिखों की पगड़ी और कृपाण से नहीं की जा सकती है: सुप्रीम कोर्ट - BBC हिंदी
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