कर्नाटक हिजाब विवाद कहने को एक राज्य से शुरू हुआ, लेकिन जिस कदर बवाल बढ़ा, जिस तरह से सड़कों पर विरोध प्रदर्शन देखने को मिले, ये पूरा विवाद राज्य से बाहर निकलकर एक राष्ट्रीय मुद्दा बन गया. सुप्रीम कोर्ट ने भी लगातार 10 दिन तक इस पूरे मामले पर सुनवाई की, मुस्लिमों का पक्ष जाना, स्कूल का पक्ष समझा, शिक्षकों से बात हुई और भी कई तरह के विचारों को बाहर आने का मौका दिया गया. अब उन तमाम दलीलों को सुनने के बाद फैसले की घड़ी आ गई है. कर्नाटक में हिजाब पर जो बैन लगा वो ठीक या गलत, इसका निर्णय होने वाला है. जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच फैसला सुनाएगी.
कैसा हो सकता है सुप्रीम कोर्ट का फैसला?
अब सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला क्या आने वाला है, ये तो कुछ घंटों बाद ही स्पष्ट हो पाएगा, लेकिन कुछ संभावनाएं जरूर सामने रखी जा सकती हैं. इस पूरे विवाद पर क्योंकि दो जजों की बेंच फैसला सुनाने जा रही है, ऐसे में पहली संभावना तो ये है कि दोनों जजों की मामले को लेकर अलग राय रहे, यानी कि अलग फैसले. अगर ऐसा होता है तो हिजाब विवाद का ये पूरा केस बड़ी बेंच को सौंप दिया जाएगा और सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का दौर फिर शुरू हो जाएगा. लेकिन अगर इस मामले में दोनों जजों ने समान फैसला सुनाया तो ऐसी स्थिति में कोर्ट का वो अंतिम निर्णय माना जाएगा.
SC की कॉज लिस्ट के मुताबिक दोनों जजों जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया ने अपना अलग अलग फैसला लिखा है. अब दोनों जजों की हिजाब बैन पर क्या राय ये तो फैसला सुनाए जाने के बाद ही साफ होगा.
अब बात उन तर्कों की भी की जानी चाहिए, जिस पर हिजाब बैन वाला ये पूरा विवाद टिका हुआ है. इस पूरे विवाद को लेकर सिर्फ दो पक्ष हैं- एक वो जो हिजाब पहनना अधिकार मानता है, तो दूसरा पक्ष वो है जिसकी नजर में स्कूल में हिजाब पहनना गलत है. इन्हीं दो पक्षों पर सुप्रीम कोर्ट में कुल 10 दिन की सुनवाई हुई थी. दोनों तरफ से क्या दलीलें रहीं, एक नजर उस पर डालते हैं.
हिजाब के पक्ष में क्या दलीलें रहीं?
सुप्रीम कोर्ट में जब इस मामले की सुनवाई शुरू हुई थी, तब सबसे पहले कर्नाटक सरकार के उस सर्कुलर पर बहस छिड़ी जिसमें हिजाब पर बैन लगाने की बात हुई थी. अब याचिकाकर्ताओं के वकील ने कोर्ट में जोर देकर कहा कि राज्य सरकार ने क्या सोचकर आजादी के 75 साल बाद यूं हिजाब पर प्रतिबंध लगाने की सोची? ऐसे में किस आधार पर राज्य सरकार वो सर्कुलर लेकर आई थी, ये स्पष्ट नहीं हो पाया.
दुनिया के दूसरे देशों के कुछ उदाहरण देकर भी हिजाब पहनने को सही ठहराया गया था. सुप्रीम कोर्ट के सामने अमेरिकी सेना के कुछ नियम बताए गए थे तो पश्चिम के दूसरे देशों में दिए गए अधिकारों का भी जिक्र हुआ था. कोर्ट को बताया गया कि अमेरिका में सेना में भर्ती लोगों को पगड़ी पहनने की इजाजत रहती है.
अलग धर्म...अलग मान्यताएं, देश की खूबसूरती
सुनवाई के दौरान तीसरा तर्क ये भी रहा कि भारत में अलग-अलग धर्म के लोग रहते हैं, सभी की अपनी मान्यताएं होती हैं, लेकिन फिर भी सभी एकता के साथ एक दूसरे के साथ रहते हैं. साफ कहा गया कि हिजाब किसी भी कीमत पर देश की एकता या अखंडता पर कोई खतरा नहीं बनता है. अगर कोई तिलक लगाना चाहता है, कोई क्रॉस पहनता है, तो वो उसका धर्म है, उसकी मान्यता है, उसे ऐसा करने का अधिकार है. इसी तरह मुस्लिम महिलाओं को भी हिजाब पहनने का हक है.
सुप्रीम कोर्ट में एक दलील ये भी पेश की गई थी कि मुस्लिम लड़कियों को जब से हिजाब पहनने से रोका गया है, स्कूल में उनका ड्रॉप आउट लेवल बढ़ा है. इस वजह से शिक्षा का अधिकार जो सभी को दिया गया है, मुस्लिम छात्राएं उससे वंचित रह जाएंगी. अब ये तमाम दलीलें तो याचिकाकर्ताओं के वकील ने सुप्रीम कोर्ट के सामने रखीं, लेकिन इन्हीं दलीलों के जवाब में राज्य सरकार और शिक्षकों के वकीलों द्वारा भी तर्क दिए गए. उनकी तरफ से यूनिफॉर्म की अहमियत, स्कूल में धार्मिक पहनावे से बचाव जैसे मुद्दों पर विस्तार से बात की गई.
राज्य सरकार की दलील
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान क्योंकि सबसे पहले बहस राज्य सरकार के सर्कुलर पर रही, ऐसे में सरकार की तरफ से जो वकील पेश हुए, उन्होंने इस मुद्दे पर अपनी राय रखी. जोर देकर कहा गया कि सर्कुलर में किसी भी तरह के धार्मिक पहलू को नहीं छुआ गया. जो प्रतिबंध भी लगा वो सिर्फ क्लास तक सीमित रखा गया. ये भी जानकारी दी गई कि कर्नाटक सरकार 10वीं तक सभी छात्रों को मुफ्त यूनिफॉर्म देती है, उसका कारण भी ये है कि बच्चों को पढ़ाई का बेहतर वातावरण मिल सके.
पूरी सुनवाई के दौरान राज्य सरकार के वकील ने PFI की भूमिका को लेकर भी कई सवाल दागे थे. आरोप लगाया गया था कि इस पूरे मामले में छात्राओं को भड़काने का काम PFI ने किया. उसी की तरफ से सोशल मीडिया के जरिए छात्राओं से हिजाब पहनने की अपील की गई थी. स्कूलों में हिजाब पहनकर जाने की बात कही गई थी. इससे पहले तक कर्नाटक के स्कूलों में हिजाब को लेकर कोई विवाद नहीं था.
एक तर्क ये भी रखा गया कि हिजाब पहनने या ना पहनने से कोई महिला कम इस्लामी नहीं हो जाती है. सुनवाई के दौरान फ्रांस का उदाहरण देते हुए कहा गया था कि वहां पर हिजाब पर प्रतिबंध लगाया गया है, लेकिन उस प्रतिबंध से वहां की महिलाएं कम इस्लामी नहीं हो जाती हैं. इसी तरह ईरान में महिलाएं इस समय हिजाब के खिलाफ प्रदर्शन कर रही हैं, वे हिजाब नहीं पहनना चाहती हैं. इसी वजह से स्कूलों में यूनिफॉर्म की संस्कृति चलती है, ये समानता और एकरूपता के लिए बनाई गई है.
हिजाब बैन पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आज, 10 दिनों तक दोनों पक्षों ने रखीं ये दलीलें - Aaj Tak
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