30 जनवरी 1948... बिरला हाउस में महात्मा गांधी अपने कमरे में सरदार पटेल से चर्चा कर रहे थे. बातचीत गंभीर थी. समय का पता नहीं चला. 5 बजकर 10 मिनट पर बातचीत खत्म हुई. ये वो दिन था जब गांधीजी को प्रार्थना सभा पहुंचने में देर हो गई थी.
आभाबेन और मनुबेन के कंधे पर हाथ रखकर नजर जमीन पर जमाए हुए गांधीजी चले आ रहे थे. उन्होंने उन्हें डांटा भी. बोले- 'मुझे देर हो गई है. मुझे ये अच्छा नहीं लगता.' मनुबेन ने जवाब दिया कि बातचीत को देखते हुए वो बीच में टोंकना नहीं चाहती थीं. इस पर गांधीजी ने कहा, 'नर्स का कर्तव्य है कि वो मरीज को सही वक्त पर दवाई दे. अगर देर होती है तो मरीज की जान जा सकती है.'
चुस्त चाल, सिर झुकाए और नजरें जमीन पर गड़ाए गांधीजी चले आ रहे थे. गांधीजी को आते देख इंतजार कर रही भीड़ अभिवादन करने लगी. भीड़ ने उन्हें रास्ता दिया ताकि वो प्रार्थना सभा में आसन तक पहुंच सकें. पर उसी भीड़ में रिवॉल्वर लिए नाथूराम गोडसे खड़ा था. गांधीजी को आता देख नाथूराम गोडसे भीड़ से बाहर आया, दोनों हथेलियों के बीच रिवॉल्वर छिपाए गांधीजी को प्रणाम किया और फिर एक के बाद एक तीन गोलियां सीने पर चला दीं.
गांधीजी नीचे गिर पड़े. उनके घाव से खून तेजी से बह रहा था. भगदड़ में उनका चश्मा और खड़ाऊ... न जाने कहां छिटक गए. गांधीजी को जल्दी से कमरे में लाया गया, लेकिन उनका निधन हो चुका था. उनका पार्थिव शरीर चटाई पर रखा था. आसपास भीड़ जमा थी. रात आंसुओं में बीती. गोली लगने के बाद गांधीजी जिस जगह गिरे थे, लोग वहां की मिट्टी उठाकर ले जाने लगे. वहां गड्ढा बन चुका था. कुछ देर बाद वहां गार्ड भी तैनात कर दिया गया.
गांधीजी की हत्या करने वाले नाथूराम गोडसे को पुलिस ने उसी समय पकड़ लिया था. भीड़ ने भी उसके सिर पर डंडे मारे. गोडसे कह रहा था, 'मुझे जो करना था, वो कर दिया.'
गांधीजी की हत्या 30 जनवरी 1948 को हुई थी. लेकिन इसकी साजिश आजादी के कुछ महीने बाद से ही शुरू हो गई थी. गांधीजी की हत्या की तारीख 20 जनवरी तय हुई थी. लेकिन उस दिन हत्यारे नाकाम हो गए थे. 10 फरवरी 1949 को लाल किले में चलने वाली अदालत ने गांधी हत्याकांड पर फैसला सुनाया था. उस फैसले से समझिए हत्यारों ने इस पूरे हत्याकांड को कैसे अंजाम दिया गया? कौन-कौन था इसमें शामिल? पढ़ें- गांधी हत्याकांड की साजिश की वो कहानी... जिसने देश ही नहीं पूरी दुनिया को हिलाकर रख किया था.
कैसे रची साजिश?
- नवंबर-दिसंबर 1947: 17 नवंबर को पूना में नारायण आप्टे और दिगंबर बड़गे की मुलाकात होती है. आप्टे ने बड़गे से हथियारों का बंदोबस्त करने को कहा. दिसंबर के आखिर में बड़गे शस्त्र भंडार जाकर हथियार देखता है और कहता है कि कुछ दिन में विष्णु करकरे आएगा.
- 9 जनवरी 1948: शाम 6 बजकर 30 मिनट पर नारायण आप्टे दिगंबर बड़गे के पास जाता है और बताता है कि शाम को विष्णु करकरे के साथ कुछ लोग आएंगे और हथियार देखेंगे.
- 9 जनवरी 1948: उसी दिन रात 8 बजकर 30 मिनट पर विष्णु करकरे तीन लोगों के साथ शस्त्र भंडार में जाता है. इन तीन लोगों में से एक मदनलाल पहवा था. बड़गे उसे हथियार दिखाता है, जिसमें गन कॉटन स्लैब और हैंड ग्रेनेड थे.
- 10 जनवरी 1948: सुबह 10 बजे नारायण आप्टे फिर से शस्त्र भंडार आता है और दिगंबर बड़गे को हिंदू राष्ट्र के दफ्तर लेकर जाता है. यहां उससे कहता है कि वो दो रिवॉल्वर, दो गन कॉटन स्लैब और पांच हैंड ग्रेनेड का इंतजाम करे. बड़गे बताता है कि उसके पास रिवॉल्वर नहीं है, लेकिन गन कॉटन स्लैब और हैंड ग्रेनेड की व्यवस्था कर देगा.
- 14 जनवरी 1948: शाम की ट्रेन से नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे पूना से बॉम्बे आ गए. उसी दिन दिगंबर बड़गे और उसका नौकर शंकर किस्तैया भी बॉम्बे पहुंचे. वो अपने साथ दो गन कॉटन स्लैब और पांच हैंड ग्रेनेड लेकर आए थे. चारों सावरकर सदन में मिलते हैं. यहां से हथियार लेकर दीक्षितजी महाराज के घर जाते हैं और सामान रखकर वापस सावरकर सदन लौटते हैं.
- 15 जनवरी 1948: सुबह सवा सात बजे नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे ने 17 तारीख की बॉम्बे से दिल्ली की फ्लाइट की टिकट बुक करवाई. गोडसे ने 'डीएन करमरकर' और आप्टे ने 'एस. मराठे' नाम से टिकट ली. उसी दिन नारायण आप्टे, नाथूराम गोडसे, विष्णु करकरे, मदनलाल पहवा और दिगंबर बड़गे कार से दीक्षितजी महाराज के घर पहुंचे. यहां नारायण आप्टे ने सामान लेकर विष्णु करकरे को दिया और उससे कहा कि वो शाम की ट्रेन से मदनलाल को साथ लेकर दिल्ली पहुंचे.
- 16 जनवरी 1948: दिगंबर बड़गे और शंकर किस्तैया पूना आ गए. नाथूराम गोडसे भी पूना आ गया. बड़गे और किस्तैया हिंदू राष्ट्र के दफ्तर में गोडसे से मिलने पहुंचे. गोडसे ने बड़गे को छोटी पिस्टल दी और कहा कि इसके बदले में रिवॉल्वर दे.
- 17 जनवरी 1948: दिगंबर बड़गे और शंकर किस्तैया सुबह-सुबह बॉम्बे पहुंचे. दोनों अलग-अलग स्टेशन पर उतरे. बड़गे जाकर नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे से मिला. तीनों ने तीन अलग-अलग लोगों से 2100 रुपये जुटाए. इसके बाद तीनों ने शंकर किस्तैया को हिंदू महासभा के दफ्तर से उठाया और चारों सावरकर सदन पहुंचे. उसी शाम विष्णु करकरे और मदनलाल पहवा दिल्ली पहुंचे. शाम को अलग-अलग फ्लाइट से नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे भी दिल्ली के लिए निकल गए. दिगंबर बड़गे और शंकर किस्तैया भी ट्रेन से दिल्ली के लिए रवाना हो गए.
- 17 से 19 जनवरी 1948: दिल्ली पहुंचने के बाद विष्णु करकरे और मदनलाल पहवा शरीफ होटल में रुके. नाथूराम गोडसे ने 'एस. देशपांडे' और नारायण आप्टे ने 'एम. देशपांडे' के नाम से मरीना होटल में कमरा लिया. ट्रेन लेट होने की वजह से दिगंबर बड़गे और शंकर किस्तैया 19 जनवरी की रात दिल्ली पहुंचे. दोनों हिंदू महासभा के दफ्तर में रुके. वहां उनकी मुलाकात नाथूराम गोडसे के भाई गोपाल गोडसे से हुई.
20 जनवरी 1948 को क्या-क्या हुआ?
पहले बिरला हाउस की रेकी
- सुबह-सुबह नारायण आप्टे, विष्णु करकरे, दिगंबर बड़गे और शंकर किस्तैया बिरला हाउस पहुंचे. चारों ने बिरला हाउस की रेकी की और थोड़ी देर बाद बाहर आ गए.
- फिर पिछले गेट से अंदर घुसे. नारायण आप्टे ने उन्हें वो प्रार्थना स्थल दिखाया, जहां गांधीजी प्रार्थना करते थे. इसके अलावा खिड़की से वो जगह भी दिखाई जहां गांधीजी बैठा करते थे.
- फिर सब बाहर आ गए. नारायण आप्टे ने बिरला हाउस के दूसरे गेट की ओर इशारा कर कहा कि भीड़ का ध्यान भटकाने के लिए यहां पर गन कॉटन स्लैब से धमाका किया जाएगा. कुछ देर बाद चारों हिंदू महासभा भवन चले गए.
फिर रिवॉल्वर की टेस्टिंग
- हिंदू महासभा भवन पहुंचने के बाद नारायण आप्टे ने रिवॉल्वर की टेस्टिंग करने को कहा. ये दो रिवॉल्वर थीं. एक रिवॉल्वर गोपाल गोडसे से मिली थी और दूसरी का इंतजाम दिगंबर बड़गे ने किया था.
- इसके बाद नारायण आप्टे, गोपाल गोडसे, दिगंबर बड़गे और शंकर किस्तैया भवन के पीछे बने जंगल में गए. चारों ने बंदूक चलाकर देखी, लेकिन एक में दिक्कत आ रही थी.
- फिर चारों के साथ-साथ विष्णु करकरे और मदनलाल पहवा उस मरीना होटल पहुंचे, जहां नाथूराम गोडसे रुका था. यहां गोडसे ने कहा- 'ये आखिरी मौका है. काम पूरा होना चाहिए.' नाथूराम गोडसे के पास जाने से पहले उन्होंने गन कॉटन स्लैब और हैंड ग्रेनेड को फिट कर दिया था.
हथियारों का बंटवारा
- सारी प्लानिंग होने के बाद हथियारों का बंटवारा किया गया. दिगंबर बड़गे ने सुझाव दिया मदनलाल पहवा को एक गन कॉटन स्लैब और एक हैंड ग्रेनेड देना चाहिए.
- गोपाल गोडसे और विष्णु करकरे अपने पास एक-एक हैंड ग्रेनेड रखें. वहीं, उसने खुद और शंकर किस्तैया ने एक-एक रिवॉल्वर और हैंड ग्रेनेड रखा.
- बड़गे ने सुझाव दिया कि नारायण आप्टे और नाथूराम गोडसे सिग्नल दें. बड़गे के सुझाव को मान लिया गया.
- आप्टे ने सुझाव दिया कि सब एक-दूसरे को गलत नाम से पुकारेंगे. इस पर नाथूराम गोडसे ने 'देशपांडे', विष्णु करकरे ने 'ब्यास', नारायण आप्टे ने 'करमरकर', शंकर किस्तैया ने 'तुकाराम' और दिगंबर बड़गे ने 'बंडोपंत' नाम रखा.
हमले की वो नाकाम कोशिश...
- मरीना होटल से सबसे पहले विष्णु करकरे और मदनलाल पहवा निकले. थोड़ी देर बाद नारायण आप्टे, गोपाल गोडसे, शंकर किस्तैया और दिगंबर बड़गे निकले. आखिर में नाथूराम गोडसे निकला.
- विष्णु और मदनलाल बिरला हाउस पहुंच चुके थे. कुछ देर बाद वहां नारायण आप्टे, गोपाल गोडसे, दिगंबर बड़गे और शंकर किस्तैया भी पहुंच गए. वहां उन्हें पहले मदनलाल मिला. नारायण आप्टे ने मदनलाल से पूछा- 'तैयार है क्या?' इस पर उसने जवाब दिया कि वो तैयार है. मदनलाल ने बताया कि गन कॉटन स्लैब रख दिया गया है, बस उसे जलाना है. विष्णु करकरे प्रार्थना स्थल का जायजा ले रहा था. थोड़ी देर में नाथूराम गोडसे भी बिरला हाउस पहुंच गया.
- बाद में नारायण आप्टे ने बड़गे से पूछा कि वो तैयार है? तो उसने कहा- हां वो तैयार है. आप्टे ने मदनलाल पहवा को कहा 'चलो' और वो वहां जाकर खड़ा हो गया जहां गन कॉटन स्लैब रखा था. विष्णु करकरे, दिगंबर बड़गे और शंकर किस्तैया प्रार्थना स्थल की ओर जाने लगे.
- बड़गे महात्मा गांधी के ठीक बगल में खड़ा हो गया. और उसके बगल में विष्णु और शंकर खड़े हो गए. तीन से चार मिनट बाद बिरला हाउस के पीछे जोरदार धमाका हुआ. धमाका होते ही नाथूराम गोडसे टैक्सी में बैठा और कहा- 'कार चालू करो.'
- कुछ देर बाद वहां भीड़ जमा हो गई, जहां धमाका हुआ था. एक व्यक्ति ने मदनलाल को पहचान लिया और पुलिस को बता दिया कि बम इसने ही लगाया था. मदनलाल पकड़ा गया. गांधीजी की हत्या की ये साजिश नाकाम हो गई.
20 से 30 जनवरी के बीच क्या-क्या हुआ?
- 21 जनवरी की सुबह नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे कानपुर पहुंचे. दोनों 22 तारीख तक रेलवे स्टेशन के रिटायरिंग रूम में ही ठहरे.
- 22 जनवरी को ही गोपाल गोडसे पूना पहुंचा और अपने दोस्त पांडुरंग गोडबोले को रिवॉल्वर और कारतूस छिपाने को दिए.
- 23 जनवरी को नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे बॉम्बे पहुंचे. यहां आर्यपथिक आश्रम में दोनों ने अलग-अलग कमरे लिए और अगले दिन तक रुके. 24 तारीख को दोनों एल्फिंस्टन होटल में शिफ्ट हो गए और 27 तक यहीं ठहरे.
- 25 जनवरी की सुबह गोडसे और आप्टे ने 27 तारीख की बॉम्बे से दिल्ली तक की फ्लाइट में टिकट बुक करवाई. इस बार भी गलत नाम बताए. गोडसे ने 'डी. नारायण' और आप्टे ने 'एन. विनायकराव' नाम से टिकट ली. 25 तारीख को ही किसी जीएम जोशी नाम के व्यक्ति के घर पर नारायण आप्टे, नाथूराम गोडसे, विष्णु करकरे और गोपाल गोडसे की मुलाकात हुई.
- 26 जनवरी की सुबह-सुबह नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे दादाजी महाराज और दीक्षितजी महाराज के घर पहुंचे. उन्होंने दोनों से रिवॉल्वर मांगी. हालांकि दादाजी महाराज और दीक्षितजी महाराज, दोनों ने उन्हें रिवॉल्वर देने से मना कर दिया.
- 27 जनवरी की सुबह नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे बॉम्बे से दिल्ली पहुंचे. उसी रात ट्रेन से ग्वालियर आए. 28 जनवरी की सुबह दोनों हिंदू महासभा के नेता डॉ. दत्तात्रेय परचुरे के घर गए. परचुरे के घर ही उनकी मुलाकात गंगाधर दंडवते से मुलाकात हुई, जिसने उन्हें रिवॉल्वर दिलाने में मदद की.
- 29 जनवरी की दोपहर को नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे दिल्ली पहुंचे. 30 जनवरी तक दोनों यही रुके रहे.
'गांधी हत्याकांड'
- 30 जनवरी 1948 को शाम पांच बज चुके थे. महात्मा गांधी अपने कमरे से निकलकर प्रार्थना स्थल जाने लगे. महात्मा गांधी हमेशा प्रार्थना स्थल पर समय से पहुंच जाते थे. लेकिन उस दिन थोड़ी देर हो गई थी.
- महात्मा गांधी आभाबेन और मनुबेन के कंधे पर हाथ रखकर तेजी से प्रार्थना स्थल की ओर बढ़ रहे थे. उनके साथ गुरबचन सिंह भी थे. रास्ते में गुरबचन सिंह किसी से बात करने में उलझ गए, लेकिन गांधीजी बढ़ते रहे.
- उस दिन एक और अजीब चीज हुई थी. आमतौर पर जब गांधीजी प्रार्थना स्थल जाते थे, तो एक-दो आदमी उनके आगे और एक-दो पीछे चलते थे. लेकिन उस दिन गांधीजी के आगे-पीछे कोई गार्ड नहीं था. गांधीजी जब प्रार्थना स्थल से थोड़ी दूरी पर थे तो भीड़ ने रास्ता दिया, ताकि वो वहां तक पहुंच सकें.
- गांधीजी आभाबेन और मनुबेन के कंधे पर हाथ रखकर चल ही रहे थे, तभी भीड़ से नाथूराम गोडसे निकला. उसने अपने दोनों हाथों में पिस्टल छिपा रखी थी. वो पैर छूने के बहाने गांधीजी के आगे झुका और फिर उठकर ताबड़तोड़ तीन गोलियां चला दीं. गांधीजी के मुंह से 'हे राम...' निकला और वो जमीन पर गिर पड़े.
- नाथूराम गोडसे को तुरंत पकड़ लिया गया. उसके पास से पिस्टल और कारतूस बरामद हुई. गंभीर रूप से घायल हो चुके गांधीजी को बिरला हाउस के एक कमरे में ले जाया गया, लेकिन वहां उनकी मौत हो गई.
नाथूराम गोडसे ने क्या कहा था?
'हां. ये सही है कि मैंने ही महात्मा गांधी पर पिस्टल से गोलियां चलाईं. मैं महात्मा गांधी के सामने खड़ा था. मैं उन पर दो गोलियां चलाना चाहता था, ताकि कोई और जख्मी न हो. मैंने अपनी हथेलियों में पिस्टल रखी थी और उन्हें प्रणाम किया. मैंने अपनी जैकेट के अंदर से ही पिस्टल का सेफ्टी कैच निकाल दिया था. मुझे लगता है कि मैंने दो गोलियां चलाईं. हालांकि, पता चला है कि मैंने तीन गोलियां चलाई थीं. जैसे ही मैंने गोली चलाई, कुछ देर के लिए वहां सन्नाटा छा गया. मैं भी एक्साइटेड हो गया था. मैंने चिल्लाया- 'पुलिस, पुलिस, आओ.' अमरनाथ आया और उसने मुझे पीछे से पकड़ लिया. कुछ कॉन्स्टेबल ने भी मुझे पकड़ लिया. भीड़ से कुछ लोगों ने मेरे हाथ से पिस्टल छीन ली थी. कोई था जिसने मुझे पीछे से सिर पर लाठी मारी थी. उसने मुझे दो-तीन बार लाठी मारी. मेरे सिर से खून बह रहा था. मैंने उनसे कहा कि मैं कहीं नहीं भागने वाला, भले ही वो मेरी खोपड़ी फोड़ दें. मुझे जो करना था, वो कर चुका था.'
'पुलिस ने मुझे भीड़ से दूर ले जाने की कोशिश की. तभी मैंने देखा कि किसी के पास मेरी पिस्टल है. मैंने उससे कहा कि सेफ्टी कैच लगा लो, वरना उससे उसे खुद गोली लग सकती है या वो दूसरों को घायल कर सकता है. तब उसने मुझसे कहा कि वो मुझे उसी पिस्टल से मार डालेगा. मैंने उससे कहा कि अगर वो मुझे मार भी डालेगा, तो भी मुझे बुरा नहीं लगेगा. पुलिस ने उससे पिस्टल ले ली. महात्मा गांधी की मौत इसलिए हुई क्योंकि वो मेरी पिस्टल से चली गोली से घायल हुए.'
फिर आया फैसले का दिन...
तारीख- 10 फरवरी 1949. दिन- गुरुवार. जगह- दिल्ली का लाल किला. सुबह से ही भारी भीड़ थी. सुरक्षा भी तगड़ी थी. इसी दिन महात्मा गांधी की हत्या पर फैसला आना था. लाल किले के अंदर ही स्पेशल कोर्ट बनाई गई थी.
11 बजकर 20 मिनट पर नाथूराम गोडसे और बाकी आरोपी कोर्ट रूम पहुंचे. दस मिनट पर बाद जज आत्माचरण भी पहुंच गए. जज ने सबसे पहले नाथूराम गोडसे का नाम पुकारा, वो खड़े हो गए. फिर बारी-बारी से सभी आरोपियों का नाम लिया.
गांधी हत्याकांड में कुल 9 लोगों को आरोपी बनाया गया था. इनमें नाथूराम गोडसे, नारायण आप्टे, गोपाल गोडसे, विष्णु करकरे, मदनलाल पहवा, दत्तात्रेय परचुरे, दिगंबर बड़गे और उसका नौकर शंकर किस्तैया थे. विनायक दामोदर सावरकर भी आरोपी थे.
जज आत्माचरण ने आठ आरोपियों को दोषी करार दिया. नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को फांसी की सजा हुई. गोपाल गोडसे, विष्णु करकरे, मदनलाल पहवा, दत्तात्रेय परचुरे, दिगंबर बड़गे और शंकर किस्तैया को उम्रकैद की सजा मिली. सावरकर को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया.
स्पेशल कोर्ट के इस फैसले को पंजाब हाईकोर्ट में चुनौती दी गई. 21 जून 1949 में हाईकोर्ट ने अपना फैसला दिया. हाईकोर्ट ने शंकर किस्तैया और दत्तात्रेय परचुरे को रिहा कर दिया. नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे की फांसी की सजा बरकरार रखी. बाकी आरोपियों की उम्रकैद की सजा भी बरकरार रही.
नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को 15 नवंबर 1949 को अम्बाला की सेंट्रल जेल में फांसी दी गई. ये आजाद भारत की पहली फांसी थी.
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