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Tuesday, January 3, 2023

SC का बोलने की आजादी पर ज्यादा पाबंदी से इनकार: कहा- किसी मंत्री के बयान पर सरकार नहीं, खुद मंत्री ही जिम्म... - Dainik Bhaskar

नई दिल्लीएक घंटा पहले

सुप्रीम कोर्ट ने मंत्रियों, सांसदों और विधायकों की बोलने की आजादी पर ज्यादा पाबंदी लगाने से इनकार कर दिया है। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की बेंच ने कहा कि इसके लिए पहले ही संविधान के आर्टिकल 19(2) में जरूरी प्रावधान मौजूद हैं। कोर्ट ने कहा कि किसी भी आपत्तिजनक बयान के लिए उसे जारी करने वाले मंत्री को ही जिम्मेदार माना जाना चाहिए। इसके लिए सरकार जिम्मेदार नहीं होनी चाहिए।

इस मामले की सुनवाई करने वाली बेंच की अगुआई जस्टिस एसए नजीर ने की। वहीं इसमें जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम और जस्टिस बीवी नागरत्ना भी शामिल रहीं।

इस मामले की सुनवाई करने वाली बेंच की अगुआई जस्टिस एसए नजीर ने की। वहीं इसमें जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम और जस्टिस बीवी नागरत्ना भी शामिल रहीं।

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एक याचिका में सार्वजनिक पदों पर बैठे लोगों के लिए बोलने की आजादी पर गाइडलाइन बनाने की मांग की गई थी। दरअसल, नेताओं के लिए बयानबाजी की सीमा तय करने का मामला 2016 में बुलंदशहर गैंग रेप केस में उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रहे आजम खान की बयानबाजी से शुरू हुआ था। आजम ने जुलाई 2016 के बुलंदशहर गैंग रेप को राजनीतिक साजिश कह दिया था। इसके बाद ही यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था।

कोर्ट ने कहा- अपने बयान के लिए मंत्री ही जिम्मेदार
पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा कि किसी मंत्री के बयान पर सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। इसके लिए मंत्री ही जिम्मेदार है। हालांकि जस्टिस नागरत्ना की राय संविधान पीठ से अलग रही।

जस्टिस नागरत्ना की राय चार जजों से अलग
जस्टिस नागरत्ना ने कहा- अनुच्छेद 19(2) के अलावा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर ज्यादा प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता। हालांकि कोई व्यक्ति बतौर मंत्री अपमानजनक बयान देता है, तो ऐसे बयानों के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, लेकिन अगर मंत्रियों के बयान छिटपुट हैं, जो सरकार के रुख के अनुरूप नहीं हैं, तो इसे व्यक्तिगत टिप्पणी माना जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने 15 नवंबर को फैसला सुरक्षित रखा था
सुप्रीम कोर्ट ने 15 नवंबर को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रखा था। इस दौरान अदालत ने कहा था कि सार्वजनिक पदों पर बैठे लोगों को ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए, जो देशवासियों के लिए अपमानजनक हों। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि यह व्यवहार हमारी संवैधानिक संस्कृति का हिस्सा है और इसके लिए सार्वजनिक पद पर बैठे लोगों के लिहाज से आचार संहिता बनाना जरूरी नहीं है।

बुलंदशहर गैंगरेप केस से शुरू हुआ मामला
29 जुलाई 2016 में बुलंदशहर में गैंग रेप का मामला सामने आया था। इस पर उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रहे आजम खान ने बेतुकी बयानबाजी की थी, जिसके बाद सार्वजनिक पदों पर बैठे लोगों के लिए बोलने की आजादी पर गाइडलाइन बनाने की मांग की गई थी। बुलंदशहर गैंगरेप केस को ग्राफिक के जरिए समझिए...

एक दिन पहले नोटबंदी को लेकर भी संविधान पीठ ने फैसला दिया था, इस पर भास्कर की खास खबर यहां पढ़ें...

SC ने 4:1 के बहुमत से नोटबंदी को सही ठहराया:एक जज बोलीं- जिस तरह इसे लागू किया, वो कानूनन सही नहीं

केंद्र सरकार के नोटबंदी के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया है। पांच जजों की संविधान पीठ ने सोमवार को यह फैसला सुनाया। बेंच ने कहा कि 500 और 1000 के नोट बंद करने की प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी नहीं हुई है। बेंच ने यह भी कहा कि आर्थिक फैसले को पलटा नहीं जा सकता। संविधान पीठ ने यह फैसला चार-एक के बहुमत से सुनाया। इनमें से जस्टिस बीवी नागरत्ना ने बाकी चार जजों की राय से अलग फैसला लिखा। उन्होंने कहा कि नोटबंदी का फैसला गैरकानूनी था। पूरी खबर यहां पढ़ें...

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