जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू होने से एक दिन पहले केंद्र ने कहा कि उसके फैसले से क्षेत्र में "अभूतपूर्व स्थिरता और प्रगति" आई है. सोमवार को दायर एक नए हलफनामे में, केंद्र ने 2019 में जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के अपने फैसले का बचाव किया. अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं का विरोध करते हुए, केंद्र ने तर्क दिया कि पथराव की घटनाएं, जो 2018 में 1767 तक पहुंच गईं थीं, अब 2023 में पूरी तरह से बंद हो गई हैं.
20 पेज के हलफनामे में केंद्र ने क्षेत्र में शांति और विकास को बढ़ावा देने के लिए उठाए गए विभिन्न कदमों का जिक्र करते हुए कहा कि इस "ऐतिहासिक कदम से क्षेत्र में स्थिरता, शांति, विकास और सुरक्षा आई है". हलफनामे में आगे बताया गया है कि आतंकवाद विरोधी कड़ी कार्रवाइयों से आतंकवादियों के लिए बने उनके पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट कर दिया गया है, जिसके परिणामस्वरूप आतंकवादी भर्ती में 2018 में 199 से महत्वपूर्ण गिरावट आई है और 2023 में यह अब 12 हो गई है.
जम्मू-कश्मीर में हुए व्यापक विकास
जम्मू-कश्मीर में जीवन के सभी क्षेत्रों में व्यापक वृद्धि, विकास और प्रगति हुई है और लद्दाख संसदीय कौशल के प्रमाण के तौर पर सामने है. हलफनामे में कहा गया है कि लोकतांत्रिक तरीके से संवैधानिक बदलाव किए जाने के बाद, जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए बड़े कदम उठाए गए. केंद्र के कदम को सही ठहराते हुए हलफनामे में कहा गया, 'क्षेत्र के सभी निवासी देश के अन्य हिस्सों में नागरिकों के लिए उपलब्ध अधिकारों का आनंद ले रहे हैं.'क्षेत्र में पर्यटकों की बढ़ती संख्या का हवाला देते हुए, केंद्र ने कहा, 'फैसले के बाद घाटी में पर्यटकों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. दिसंबर 2022 तक, 1.88 करोड़ पर्यटक आए हैं. घाटी में पर्यटन के इतिहास में वहां आयोजित जी20 बैठक एक महत्वपूर्ण घटना थी.'
केंद्र ने दी ये दलील
केंद्र ने आगे कहा, 'तीन दशकों की उथल-पुथल के बाद क्षेत्र में जीवन सामान्य स्थिति में लौट आया है. लोगों ने बदलावों को अपना लिया है और शांति, समृद्धि और स्थिरता का आनंद ले रहे हैं.' भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ मामले की सुनवाई करेगी और मंगलवार को सुनवाई का कार्यक्रम तय करेगी. 2019 में दायर याचिकाओं के बैच को दिसंबर 2019 में भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एन वी रमना की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ को भेजा गया था.
याचिकाएं 5 अगस्त, 2019 के राष्ट्रपति के आदेश को चुनौती देती हैं, जिसने अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया था. अनुच्छेद 370 के तहत, 1954 से विलय पत्र के अनुसार जम्मू और कश्मीर के लोगों को विशेष अधिकार और विशेषाधिकार दिए गए हैं. इसके बाद, 2019 का जम्मू और कश्मीर (पुनर्गठन) अधिनियम लागू हुआ, जिसने राज्य को जम्मू और कश्मीर और लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया.
'केंद्र द्वारा दायर हलफनामे का कोई कानूनी आधार नहीं'
पीडीपी और सीपीआई-मार्क्सवादी ने सोमवार को कहा कि सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 370 याचिकाओं के जवाब में केंद्र द्वारा दायर हलफनामे का कोई कानूनी आधार नहीं है और यह सच्चाई से बहुत दूर है. पीडीपी के वरिष्ठ नेता नईम अख्तर ने कहा, 'मुझे नहीं लगता कि आतंकवाद पर कोई संवैधानिक प्रावधान है. केंद्र के पास जम्मू-कश्मीर में अपने असंवैधानिक कार्यों के लिए कोई संवैधानिक या कानूनी बचाव उपलब्ध नहीं है. इसलिए उन्होंने आतंकवाद का सहारा लिया है.'
सीपीआई-एम नेता एम वाई तारिगामी ने कहा कि केंद्र के सुप्रीम कोर्ट के हलफनामे पर सरसरी नजर डालने से भी पता चल जाएगा कि यह तथ्यों के विपरीत है. तारिगामी ने कहा कि 'सच्चाई को भ्रमित किया जा रहा है. क्या हम नहीं जानते कि 1990 से पहले जम्मू-कश्मीर कितना शांतिपूर्ण था?
चीफ जस्टिस करेंगे संविधान पीठ की अगुआई
संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर के स्पेशल स्टेटस को खत्म किए जाने के केंद्र सरकार के सवा तीन साल पुराने फैसले को चुनौती देने के लिए दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संविधान पीठ 11 जुलाई य़ानी आज से सुनवाई करेगी. संविधान पीठ की अगुआई खुद चीफ जस्टिस करेंगे. पीठ में CJI डी वाई चंद्रचूड़ के साथ जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस सूर्यकांत होंगे.
खत्म किया गया था स्पेशल स्टेटस
बता दें कि सवा तीन साल पहले जम्मू कश्मीर का पुनर्गठन किया गया था. इस पुनर्गठन की प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर संविधान पीठ अगले हफ्ते सुनवाई करेगी. संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर के स्पेशल स्टेटस को खत्म कर दिया गया था. सरकार के फैसले को चुनौती देने के लिए कई याचिकाएं दायर कई गई थीं. इन याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संवैधानिक पीठ 11 जुलाई से सुनवाई करेगी. खास बात ये है कि संवैधानिक पीठ की अगुआई खुद चीफ जस्टिस करेंगे.
पीठ में ये पांच जज होंगे शामिल
पीठ में CJI डी वाई चंद्रचूड़ के साथ जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस सूर्यकांत शामिल रहेंगे. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के कुछ प्रावधानों को निरस्त करने के केंद्र सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली 20 से अधिक याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई हैं. इन पर तीन साल तीन महीने पहले मार्च 2020 में सुनवाई करना तय किया गया था, लेकिन तब कुछ याचिकाकर्ताओं की मांग के बावजूद सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ ने इन याचिकाओं को सात जजों की संवैधानिक पीठ के समक्ष नहीं भेजने का फैसला किया था.
'अनुच्छेद 370 हटने से घाटी में आई स्थिरता, हुआ विकास...' सुनवाई से पहले केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में दिया हलफनामा - Aaj Tak
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