मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ को अंतरिम राहत देने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच एकमत नहीं हो सकी.
इसके बाद ये मामला चीफ़ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के समक्ष इस गुज़ारिश के साथ भेजा गया है कि इसकी सुनवाई के लिए एक बड़ी बेंच (तीन जजों की) गठित की जाए.
तीस्ता सीतलवाड़ की ज़मानत याचिका पर सुनवाई करते हुए शनिवार को गुजरात हाई कोर्ट ने इसे ख़ारिज कर दिया था. कोर्ट ने उन्हें तुरंत सरेंडर करने का आदेश दिया था.
इसके बाद तीस्ता सीतलवाड़ ने सुप्रीम कोर्ट का रुख़ किया.
क़ानूनी मामलों की ख़बर देने वाली वेबसाइट लाइव लॉ के मुताबिक़ सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस पीके मिश्रा की बेंच मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ को अंतरिम राहत देने को लेकर एकमत नहीं हो सकी जिसके बाद ये मामला चीफ़ जस्टिस के पास भेज दिया गया.
गुजरात हाई कोर्ट ने खारिज की थीी ज़मानत याचिका
इससे पहले शनवार को गुजरात हाई कोर्ट ने शनिवार को तीस्ता सीतलवाड़ की ज़मानत याचिका खारिज कर दी है और उन्हें 'तत्काल आत्मसमर्पण' करने को कहा है.
तीस्ता सीतलवाड़ ने पिछले साल गुजरात हाई कोर्ट में जमानत याचिका दायर की थी.
तीस्ता सीतवाड़ को बीते साल जून में गुजरात पुलिस ने गिरफ़्तार किया था. उन पर साल 2002 के गुजरात दंगों से जुड़े मामलों में 'निर्दोष लोगों' को फंसाने के लिए फर्जी सबूत गढ़ने का आरोप लगाया गया.
सितंबर, 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अंतरिम जमानत दी थी.
मामले से जुड़े वकीलों ने क्या बताया?
शनिवार को हाई कोर्ट ने जज निरज़ार देसाई के फ़ैसला सुनाने के बाद वरिष्ठ वकील मिहिर ठाकोर ने अदालत से गुज़ारिश की कि अदालत अपने फ़ैसले पर अमल के लिए 30 दिन की रोक लगाए. अदालत ने उनकी इस गुज़ारिश को मानने से इनकार कर दिया.
इस मामले में अभी तक कोर्ट ने लिखित आदेश जारी नहीं किए हैं.
बचाव पक्ष के वकील सोमनाथ वत्स ने कहा कि लिखित आदेश मिलने के बाद वो इस मामले पर टिप्पणी कर सकेंगे. हालांकि उन्होंने बीबीसी संवाददाता रॉक्सी गागडेकर छारा को बताया, "हमने अदालत को बताया कि तीस्ता सीतलवाड़ के ख़िलाफ़ कोई अपराध नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अंतरिम ज़मानत दी हुई है. लेकिन ज़मानत देने के बाद जांच अधिकारियों ने उन्हें किसी भी पूछताछ के लिए नहीं बुलाया."
वहीं सरकारी वकील मीतेश अमीन ने रॉक्सी गागडेकर छारा से कहा, "हमने अदालत में दलील दी कि तीस्ता सीतलवाड़ ने 2002 से 2022 तक सरकार के ख़िलाफ़ लगातार आरोप लगाए और सरकार को बदनाम करने की कोशिश की. इसके लिए उन्हें राजनीतिक लाभ भी मिला है. हमने अदालत में इस बात के सबूत भी पेश किए हैं."
अमीन ने यह भी कहा कि उन्होंने पंचमहल के पांडरवाड़ा में कब्र खोदने की घटना से जुड़ी दलील कोर्ट में दी थी.
उन्होंने कहा, "हमने अदालत को बताया कि सीतलवाड़ ने सबूतों के साथ छेड़छाड़ की थी. उन्होंने पुंडरवाड की कब्र खोदते समय कोई अनुमति नहीं ली थी. हमने तर्क दिया कि उनकी ज़मानत रद्द कर दी जानी चाहिए."
- 25 जून 2022 - तीस्ता सीतलवाड़ को पुलिस ने कस्टडी में लिया गया.
- 30 जुलाई 2022 - अहमदाबाद की एक कोर्ट ने तीस्ता की ज़मानय याचिका खारिज कर दी.
- 03 अगस्त 2022 - ज़मानत मामले में हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को नोटिस भेजा. सुनवाई की तारीख 19 सितंबर तय की गई.
- तीस्ता ने सुप्रीम कोर्ट का रुख़ किया.
- 02 सितंबर 2022 - सुप्रीम कोर्ट ने तीस्ता को अंतरिम ज़मानत दी. प्रीम कोर्ट ने कहा कि जब तक गुजरात हाई कोर्ट तीस्ता सीतलवाड़ की ज़मानत याचिका पर फ़ैसला न सुना दे, वे अपना पासपोर्ट ट्रायल कोर्ट में सरेंडर करेंगी.
2022 में गिरफ्तारी के वक्त तीस्ता ने कहा था कि उनकी "गिरफ़्तारी अवैध" है और उनकी जान को ख़तरा है. उन्होंने मुंबई के सांताक्रूज़ पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज करवायी कि उन्हें हिरासत में लिया जाना ग़ैर-क़ानूनी था.
तीस्ता के साथ-साथ राज्य के पूर्व डीजीपी आरबी श्रीकुमार और बर्ख़ास्त किए गए आईपीएस संजीव भट्ट पर भी गुजरात पुलिस ने 'निर्दोष लोगों को ऐसे मामलों में फंसाने' का आरोप लगाया. आरोप साबित होने पर ऐसे मामले में अधिकतम मौत की सज़ा हो सकती है.
क्या हैं आरोप?
तीस्ता सीतलवाड़, आरबी श्रीकुमार और संजीव भट्ट पर जाली दस्तावेज और आपराधिक साज़िश समेत भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था.
दर्ज शिकायत के मुताबिक, "तीनों अभियुक्तों ने क़ानूनी प्रक्रिया का फ़ायदा उठाने के लिए निर्दोष लोगों के ख़िलाफ़ झूठे सबूत गढ़ने की साज़िश रची. तीनों अभियुक्तों ने निर्दोष व्यक्तियों को नुकसान पहुंचाने के इरादे से आधारहीन कानूनी कार्रवाई करने की कोशिश की."
क्या है पूरा मामला
बीते साल गुजरात दंगों से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में सुप्रीम कोर्ट के एक याचिका को ख़ारिज करने के एक दिन बाद तीस्ता सीतलवाड़ को गिरफ्तार किया गया.
सुप्रीम कोर्ट ने 2002 में हुए गुजरात दंगे में पीएम मोदी और अन्य 59 को एसआईटी से मिली क्लीनचिट को चुनौती देने वाली याचिका को ख़ारिज कर दिया था.
एक दशक से अधिक समय तक चली इस क़ानूनी लड़ाई में तीस्ता सीतलवाड़ के संगठन ने याचिकाकर्ता जकिया जाफ़री का साथ दिया था.
जकिया जाफ़री के पति एहसान जाफ़री (जो कांग्रेस के पूर्व सांसद भी थे) साल 2002 में गुजरात में हुए दंगे के दौरान मारे गए थे. ज़ाकिया जाफ़री ने कोर्ट में दायर अपनी याचिका में 2002 के गुजरात दंगे के मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी समेत 59 लोगों को एसआईटी से मिली क्लीन चिट को चुनौती दी थी.
गुजरात दंगों की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) ने 8 फरवरी 2012 को तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को 'मुक़दमा चलाने योग्य कोई साक्ष्य' क्लीन चिट दे दी थी. इस रिपोर्ट के आधार पर कोर्ट ने नरेंद्र मोदी समेत 59 लोगों को क्लीनचिट दे दी थी.
इसके बाद ज़किया जाफ़री ने सुप्रीम कोर्ट में 9 दिसंबर 2021 को याचिका दाख़िल की थी.
कौन है तीस्ता सितलवाड़?
गुजरात में 2002 के दंगों के अभियुक्तों को अदालत तक ले जाने वाले लोगों में जिनका नाम सबसे ऊपर आता है, वो हैं मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़.
तीस्ता सीतलवाड़ और उनकी संस्था 'सिटीज़न्स फॉर जस्टिस एंड पीस' ने गुजरात दंगा पीड़ितों को 'इंसाफ़' दिलवाने के लिए 68 मुक़दमे लड़े हैं और 170 से अधिक लोगों को सजा दिलवाई है जिनमें 1000 से अधिक लोग मारे गए थे.
तीस्ता का जन्म 1962 में मुंबई के एक वरिष्ठ वकील परिवार में हुआ था. उनके दादा एमसी सीतलवाड़ भारत के पहले अटॉर्नी-जनरल थे. वो इस पद पर 1950 से 1963 तक रहे.
2002 में क्या हुआ था?
- 2002 में गुजरात में हुए दंगों के दौरान 28 फरवरी को सवेरे दंगाइयों ने गुलबर्ग सोसायटी को घेर लिया.
- यहां कई लोगों को ज़िंदा जला दिया गया. मारे जाने वालों में कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफ़री समेत कुल 69 लोग शामिल थे.
- एहसान जाफ़री की पत्नी ज़किया जाफ़री ने आरोप लगाया था कि उनके पति ने पुलिस और उस वक्त मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन किसी ने उनकी मदद नहीं की.
- 2006 में उन्होंने गुजरात पुलिस के महानिदेशक से नरेंद्र मोदी समेत कुल 63 लोगों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज करने की अपील की. ये अपील ठुकरा दी गई.
- इसके बाद ज़किया ने गुजरात हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया. 2007 में हाईकोर्ट ने भी उनकी अपील ख़ारिज कर दी.
- 2008 में ज़किया जाफ़री और ग़ैर-सरकारी संगठन 'सिटिज़न्स फ़ॉर जस्टिस एंड पीस' संयुक्त रूप से सुप्रीम कोर्ट पहुंचे.
- 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने दंगों की जांच के लिए पहले से गठित एसआईटी को मामले की जांच के आदेश दिए.
- 2012 में एसआईटी ने अहमदाबाद की निचली अदालत में अपनी रिपोर्ट सौंप दी. एसआईटी ने नरेंद्र मोदी को ये कहते हुए क्लीन चिट दे दी कि एसआईटी के पास मोदी के ख़िलाफ़ मुक़दमा चलाने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं.
तीस्ता सीतलवाड़ की ज़मानत याचिका खारिज, गुजरात हाई कोर्ट का आदेश- तुरंत सरेंडर करें - BBC हिंदी
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