चुनाव आयोग ने शिवसेना के नाम और सिंबल पर अगले आदेश तक के लिए रोक लगा दी है. जिसके मद्देनजर 3 नवंबर को होने वाले अंधेरी पूर्व उपचुनाव के लिए उद्धव ठाकरे और शिंदे गुट में से किसी को भी "शिवसेना" के लिए आरक्षित "धनुष और तीर" के चिन्ह का उपयोग करने की अनुमति नहीं दी जाएगी. वहीं दोनों गुटों को 10 अक्टूबर दोपहर 1 बजे तक अपने-अपने चुनाव चिन्ह आयोग में पेश करने होंगे. दोनों पक्ष फ्री सिंबल्स में से अपनी पसंद प्राथमिकता के आधार पर बता सकेंगे. आयोग ने अपने फरमान में दोनो धड़ों को ये छूट जरूर दी है कि दोनों अपने नाम के साथ चाहे तो सेना शब्द इस्तेमाल कर सकते हैं. बहरहाल आयोग के पास नाम और फ्री सिंबल्स में से तीन विकल्प प्राथमिकता के आधार पर बताने ही होंगे.
8 अक्टूबर को जारी किए गए अपने आदेश में चुनाव आयोग ने कहा है कि शिवसेना धनुष और तीर'चुनाव चिन्ह के साथ महाराष्ट्र में एक मान्यता प्राप्त राज्य पार्टी है. शिवसेना के संविधान के प्रावधानों के अनुसार, शीर्ष पर स्तर पर पार्टी में एक प्रमुख और एक राष्ट्रीय कार्यकारिणी है. आगे आयोग ने कहा, 25 जून, 2022 को उद्धव ठाकरे की तरफ से अनिल देसाई ने आयोग को एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में कुछ विधायकों द्वारा पार्टी विरोधी गतिविधियों के बारे में सूचित किया था. उन्होंने 'शिवसेना या बालासाहेब' के नामों का उपयोग कर किसी भी राजनीतिक दल की स्थापना के लिए अग्रिम आपत्ति जताई थी.
आयोग ने कहा कि इसके बाद अनिल देसाई ने 01.07.2022 को भेजे गए ईमेल 30.06.2022 को जारी 3 पत्र अटैच किए थे, जिनमें यह उल्लेख किया गया था कि पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल रहने वाले चार सदस्यों ने स्वेच्छा से पार्टी की सदस्यता छोड़ दी है. इसलिए सदस्यों को शिवसेना नेता के उपनेता के पद से हटा दिया जाता है. इनमें एकनाथ शिंदे, गुलाबराव पाटिल, तांजी सावंत और उदय सामंत शामिल थे. साथ ही कहा गया था कि उद्धव ठाकरे शिवसेना के प्रमुख हैं. इसके बाद एकनाथ शिंदे गुट की तरफ से भी शिवसेना के सिंबल पर दावा किया गया था. दोनों की तरफ से समय-समय पर आयोग में अपने दावे पेश किए गए. मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा. लेकिन कोर्ट ने भी सुनवाई करते हुए अंतिम फैसला चुनाव आयोग पर छोड़ दिया था.
शिंदे ने फूंका था बगावत का बिगुल
बता दें कि एकनाथ शिंदे ने कांग्रेस और एनसीपी के साथ गठबंधन करने के लिए ठाकरे के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया था. शिवसेना के 55 में से 40 से अधिक विधायकों ने शिंदे का समर्थन किया था, जिसके कारण ठाकरे को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था. शिवसेना के 18 लोकसभा सदस्यों में से 12 भी शिंदे के समर्थन में सामने आए हैं, जिन्होंने बाद में खुद को मूल शिवसेना का नेता होने का दावा किया है.
महाराष्ट्र में आमने-सामने हैं उद्धव और सीएम शिंदे
एकनाथ शिंदे ने ठाकरे गुट से अलग होने के बाद बागी विधायकों की मदद से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के साथ मिलकर सरकार बना ली थी. इस सरकार में एकनाथ शिंदे को सीएम और देवेंद्र फडणवीस को डिप्टी सीएम बनाया गया था. महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन के बाद भी राजनीतिक गतिरोध खत्म नहीं हुआ था. शिंदे गुट खुद को असली शिवसेना बताता है और पार्टी सिंबल धनुष-तीर पर अपना दावा कर रहा है.
कैसे होता है फैसला, पार्टी किसके पास जाएगी?
पार्टी का असली मालिक कौन होगा? इसका फैसला मुख्य रूप से तीन चीजों पर होता है. पहला- चुने हुए प्रतिनिधि किस गुट के पास ज्यादा हैं? दूसरा- ऑफिस के पदाधिकारी किस ओर हैं? और तीसरा- संपत्तियां किस तरफ हैं? लेकिन, किस धड़े को पार्टी माना जाएगा? इसका फैसला चुने हुए प्रतिनिधियों के बहुमत के आधार पर होता है. मसलन, जिस धड़े के पास ज्यादा चुने हुए सांसद-विधायक होंगे, उसे पार्टी माना जाएगा. इसे इस उदाहरण से समझ सकते हैं. 2017 में समाजवादी पार्टी में टूट पड़ गई थी. तब अखिलेश यादव ने मुलायम सिंह यादव को हटा दिया था और खुद अध्यक्ष बन गए थे. बाद में शिवपाल यादव भी इस जंग में कूद गए थे. मामला चुनाव आयोग के पास पहुंचा था. चूंकि, ज्यादातर चुने हुए प्रतिनिधि अखिलेश यादव के साथ थे, इसलिए आयोग ने चुनाव चिन्ह उन्हें ही सौंपा. बाद में शिवपाल यादव ने अलग पार्टी बना ली थी.
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