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Tuesday, October 11, 2022

Karwa Chauth 2022: करवा चौथ पर इस साल नव-विवाहिताएं नहीं रख पाएंगी व्रत? हकीकत या अफवाह - Aaj Tak

Karwa Chauth 2022: हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का व्रत रखा जाता है. इस साल करवा चौथ का व्रत 13 अक्टूबर दिन गुरुवार को पड़ रहा है. करवा चौथ के दिन सुहागिनें अपने पति की लंबी उम्र की कामना के लिए निर्जला उपवास रखती हैं और रात को चांद देखने के बाद ही व्रत खोलती हैं. हालांकि इस साल करवा चौथ को लेकर एक अफवाह बड़ी तेजी से लोगों के बीच फैल रही है. कुछ ज्योतिषविदों का दावा है कि इस साल करवा चौथ पर शुक्र ग्रह अस्त रहेगा, इसलिए नव-विवाहित महिलाएं अपने पहले करवा चौथ पर व्रत नहीं रख सकेंगी. आइए जानते हैं कि इस दावे में कितनी सच्चाई है.

ज्योतिषाचार्य डॉ. अरुणेश कुमार शर्मा ने बताया कि करवा चौथ पर नव-विवाहितों के व्रत न रखने का दावा महज एक अफवाह है. ज्योतिषविद ने कहा, 'करवा चौथ पर हर दो-तीन साल में शुक्र ग्रह अस्त रहता है, इसके बावजूद लाखों नव-विवाहिताएं यह व्रत रखती हैं. करवा चौथ के व्रत का संबंध चंद्रमा से है, इसलिए इस दिन शुक्र अस्त हो या उदयवान, कोई फर्क नहीं पड़ता.'

इस विषय पर हरिद्वार के ज्योतिषाचार्य पंडित मनोज त्रिपाठी का भी कुछ ऐसा ही कहना है. ज्योतिषविद ने कहा, 'करवा चौथ के व्रत को लेकर कुछ लोग बड़ी ही निराधार और भ्रामक बातें कर रहे हैं. ऐसी अफवाह है कि इस साल कर्क चतुर्थी यानी करवा चौथ पर शुक्र ग्रह अस्त रहेगा और इसलिए नव-विवाहिताएं अपना पहला करवा चौथ का व्रत न रखें. ऐसी महिलाएं अगले साल से इस व्रत की शुरुआत करें. इस प्रकार का दावा बिल्कुल गलत है.'

पंडित मनोज त्रिपाठी ने आगे कहा, 'कर्क चतुर्थी या अन्य चतुर्थियों पर अक्सर शुक्र ग्रह अस्त होता है. गौर करने वाली बात ये है कि विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश, व्रत उद्यापन आदि जैसे शुभ कार्यों में तो शुक्र की स्थिति पर विचार किया जाता है, लेकिन पितृ कार्य और व्रत रखने से इसका कोई संबंध नहीं है. नव-विवाहिताएं बिना किसी डर या संकोच के अपने पहले करवा चौथ का व्रत रख सकती हैं. आप विधिवत यह उपवास रखें और अपने पति की लंबी उम्र की कामना करें. आपके लिए यह व्रत मंगलमयी होगा.'

करवा चौथ की पूजन विधि
सुबह स्नान करने के बाद करवा चौथ व्रत का संकल्प लें. चौथ माता की पूजा का करें. फिर अखंड सौभाग्य के लिए निर्जला व्रत रखें. इस दिन पूजा के लिए 16 श्रृंगार करते हैं. इसके बाद पूजा के मुहूर्त में चौथ माता या मां गौरी और गणेश जी की विधि-विधान से पूजा करते हैं. पूजा के समय भगवान को गंगाजल, नैवेद्य, धूप-दीप, अक्षत्, रोली, फूल, पंचामृत आदि अर्पित करते हैं. दोनों को श्रद्धापूर्वक फल एवं हलवा-पूरी का भोग लगाते हैं. इसके बाद चंद्रमा के उदय होने पर अर्घ्य देते हैं और फिर बाद पति के हाथों जल ग्रहण करके व्रत का पारण करते हैं.

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