समाजवादी पार्टी ने मुलायम सिंह यादव के निधन से खाली हुई मैनपुरी लोकसभा सीट से अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव को उतारने का फैसला किया है. कन्नौज से सांसद रहीं डिंपल यादव के नाम के ऐलान के साथ ही सभी अटकलों को भी विराम लग गया. पहले माना जा रहा था कि इस सीट से तेज प्रताप यादव को टिकट दिया जा सकता है. कारण, तेज प्रताप पहले भी इस सीट से सांसद रह चुके है. वह मुलायम सिंह यादव के बड़े भाई के रतन सिंह यादव पौत्र हैं. तेज प्रताप के पिता रणवीर सिंह यादव राजनीतिक रूप से काफी सक्रिय थे, लेकिन 36 साल की उम्र में उनका निधन हो गया था. तेज प्रताप के अलावा धर्मेंद्र यादव और फिर दबे स्वर शिवपाल यादव के नाम की भी चर्चा थी. लेकिन 24-48 घंटों में चर्चा सिर्फ दो नामों पर सिमट गई थी. ये थे तेज प्रताप यादव और डिंपल यादव. लेकिन बाद में डिंपल को मुलायम सिंह यादव की विरासत सौंपने का फैसला किया गया. ऐसे में सबके मन में ये सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर मैनपुरी सीट से डिंपल यादव ही क्यों? आईए इसके पीछे की वजह जानने की कोशिश करते हैं...
1- अखिलेश मुलायम यादव की विरासत अपने पास रखना चाहते हैं
अखिलेश यादव मुलायम सिंह की पूरी राजनीतिक विरासत सिर्फ अपने पास रखना चाहते हैं. फिर मुलायम सिंह यादव की सीट ही क्यों न हो. ऐसे में ये सीट किसी और को कैसे दी जा सकती थी, चाहें वह चाचा हो, चचेरे भाई हों, या फिर भतीजा. सबसे बड़ी वजह यही है कि मुलायम सिंह की खाली सीट पर पत्नी डिंपल यादव को उतारकर अखिलेश यादव ने यह मैसेज साफ कर दिया कि समाजवादी पार्टी की विरासत उनके पास ही रहेगी.
2- डिंपल के लिए सुरक्षित सीट की तलाश हुई पूरी
अखिलेश यादव काफी पहले से डिंपल यादव के लिए एक सुरक्षित सीट की तलाश में थे. कन्नौज सीट पर चुनावी हार के बाद से डिंपल यादव संसद में नहीं पहुंच पाईं. अखिलेश यादव उन्हें संसद में भेजना चाहते थे. पिछले दिनों इसके लिए तैयारी भी पूरी हो गई थी कि डिंपल को राज्यसभा चुनाव में उतारा जाए. लेकिन आखिरी वक्त पर जयंत चौधरी को सीट दिए जाने के चलते से डिंपल यादव राज्यसभा नहीं जा पाईं. ऐसे में मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद उनकी मैनपुरी सीट डिंपल के लिए अखिलेश को सबसे सुरक्षित और मुफीद सीट लगी.
मैनपुरी सीट से 1996 में मुलायम सिंह पहली बार जीतकर लोकसभा पहुंचे थे. तब से वे या उनके परिवार का कोई न कोई सदस्य मैनपुरी सीट से सांसद रहा है. ऐसे में यह सीट डिंपल यादव के भविष्य के लिए दुर्ग साबित हो सकती है, जिसे भेदना बीजेपी के लिए आसान नहीं होगा. यह सीट सियासी रूप से सपा की सबसे सुरक्षित सीटों में है
3- बहू के खिलाफ दावेदारी नहीं ठोक पाएंगे शिवपाल यादव
मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद से मैनपुरी सीट पर शिवपाल यादव भी धीमे स्वर में ही सही लेकिन अपनी दावेदारी ठोक रहे थे. अगर यह सीट किसी और को दी जाती तो शिवपाल यादव के लिए यहां चुनाव लड़ना आसान होता लेकिन अब बहू के खिलाफ उनकी किसी भी तरह की दावेदारी उनके ही खिलाफ जाएगी इसलिए इसे अखिलेश यादव का एक ट्रंप कार्ड माना जा रहा है.
4- भाई और भतीजे के बीच भी जंग को मिलेगा विराम
चचेरे भाई और भतीजे के बीच इस सीट को लेकर अनकही दावेदारी थी. मैनपुरी सीट पर धर्मेंद्र यादव भी लड़ना चाहते थे और भतीजे तेज प्रताप यादव भी. ऐसे में अब डिंपल यादव का नाम सामने आने के बाद पार्टी और परिवार में कोई कलह नहीं होगी. इसका भी ध्यान अखिलेश यादव ने रखा है.
5- कार्यकर्ताओं में लोकप्रिय हैं डिंपल यादव
डिंपल यादव कार्यकर्ताओं में भी लोकप्रिय हैं. वे भले ही 2019 में कन्नौज से लोकसभा चुनाव हार गई हों, लेकिन पार्टी के लिए चुनावों में प्रचार करती रही हैं. इतना ही नहीं वे चुनाव प्रबंधन को भी समझती हैं. इतना ही नहीं मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद से लोकसभा में यादव परिवार का कोई सदस्य नहीं है. अब अखिलेश यादव सबसे सुरक्षित सीट से डिंपल यादव को भेजकर इस अनचाहे रिकॉर्ड को भी तोड़ना चाहते हैं.
आखिर सपा ने मुलायम सिंह की मैनपुरी सीट पर डिंपल यादव को ही क्यों उतारा, जानिए वे 5 वजह - Aaj Tak
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