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Thursday, January 12, 2023

Joshimath Subsidence: एक साथ धंस सकता है जोशीमठ का इतना बड़ा इलाका, ISRO की सैटेलाइट इमेज से खुलासा - Aaj Tak

ISRO ने अपने सैटेलाइट से जोशीमठ की आपदा का जायजा लिया. इतना डरावना परिणाम सामने आया है कि आपके भी रोंगटे खड़े हो जाएंगे. सैटेलाइट ने जो स्थिति दिखाई है, उसके अनुसार पूरा जोशीमठ शहर धंस जाएगा. आप ऊपर दिख रही फोटो में देख सकते हैं कि पीले घेरे के अंदर मौजूद जोशीमठ का पूरा शहर है. इसमें आर्मी का हेलीपैड और नरसिंह मंदिर को मार्क किया गया है. 

ISRO के हैदराबाद स्थित नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर (NRSC) ने यह रिपोर्ट जारी की है. शायद इसी के आधार पर राज्य सरकार लोगों को डेंजर जोन से बाहर निकाल रही है. आइए जानते हैं कि यह रिपोर्ट क्या कहती है. रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले कुछ दिनों से जोशीमठ में जमीन धंसने और दरारों की जानकारी मिल रही है. 700 से ज्यादा घरों में दरारें आई हैं. सड़कों, अस्पतालों, होटल्स भी दरक रहे हैं. 

ये है जोशीमठ का थ्रीडी इमेज जो इसरो ने बनाया है. लाल घेरे में दिख रहा है जोशीमठ शहर. (फोटोः ISRO/NRSC)
ये है जोशीमठ का थ्रीडी इमेज जो इसरो ने बनाया है. लाल घेरे में दिख रहा है जोशीमठ शहर. (फोटोः ISRO/NRSC)

इसरो ने सेंटीनल-1 SAR इमेजरी को प्रोसेस किया है. इसे DInSAR तकनीक कहते हैं. इससे पता चलता है कि जोशीमठ का कौन सा और कितना बड़ा इलाका धंस सकता है. जल्दी या आने वाले भविष्य में. इसरो ने कार्टोसैट-2एस (Cartosat-2S) सैटेलाइट से 7 से 10 जनवरी 2023 तक जोशीमठ की तस्वीरें लीं. उसके बाद ऊपर बताई गई तकनीक से प्रोसेस किया. तब जाकर पता चला कि कौन सा इलाका धंस सकता है. या धंसने की कगार पर है. 

इस तस्वीर में बताया गया है कि अप्रैल से नवंबर 2022 तक जोशीमठ कितना धंसा. (फोटोः ISRO/NRSC)
इस तस्वीर में बताया गया है कि अप्रैल से नवंबर 2022 तक जोशीमठ कितना धंसा. (फोटोः ISRO/NRSC)

इसरो ने बताया कि अप्रैल से नवंबर 2022 तक जमीन धंसने का मामला धीमा था. इन सात महीनों में जोशीमठ -8.9 सेंटीमीटर धंसा है. लेकिन 27 दिसंबर 2022 से लेकर 8 जनवरी 2023 तक के 12 दिनों में जमीन धंसने की तीव्रता -5.4 सेंटीमीटर हो गई. यानी यह काफी तेज गति से बढ़ रहा है. 

लाल रंग की धारियां जोशीमठ की सड़के हैं. नीले रंग का बैकग्राउंड यानी जमीन के अंदर हो रहा ड्रेनेज. (फोटोः ISRO/NRSC)
लाल रंग की धारियां जोशीमठ की सड़के हैं. नीले रंग का बैकग्राउंड यानी जमीन के अंदर हो रहा ड्रेनेज. (फोटोः ISRO/NRSC)

आप इस तस्वीर में देखेंगे कि लाल रंग की धारियां सड़के हैं और नीले रंग का जो बैकग्राउंड है, वह जोशीमठ शहर के नीचे का ड्रेनेज सिस्टम है. यह प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों हो सकता है. आप ही सोचिए कि जहां पर इतना ज्यादा ड्रेनेज होगा, वहां की मिट्टी तो धंसेगी ही. इसे कम करने के लिए वैज्ञानिकों ने चेताया था कि ढलान की मजबूती को बनाए रखने के लिए पोर प्रेशर (Pore Pressure) कम करना था. यानी पानी का रिसना कम करना चाहिए था. अगर पानी ढलान के अंदर कम जाएगा तो वह खोखला नहीं होगा. 

इस तस्वीर में सबसे ऊपर जोशीमठ-औली रोड है. नीचे अलकनंदा बह रही हैं. पीले घेरे वाला इलाका धंसने की कगार पर है. (फोटोः ISRO/NRSC)
इस तस्वीर में सबसे ऊपर जोशीमठ-औली रोड है. नीचे अलकनंदा बह रही हैं. पीले घेरे वाला इलाका धंसने की कगार पर है. (फोटोः ISRO/NRSC)

जोशीमठ का मध्य हिस्सा यानी सेंट्रल इलाका सबसे ज्यादा धंसाव से प्रभावित है. इस धंसाव का ऊपरी हिस्सा जोशीमठ-औली रोड पर मौजूद है. वैज्ञानिक भाषा में इसे धंसाव का क्राउन कहा जाता है. यानी औली रोड भी धंसने वाला है. बाकी जोशीमठ का निचला हिस्सा यानी बेस जो कि अलकनंदा नदी के ठीक ऊपर है, वह भी धंसेगा. हालांकि यह इसरो की प्राइमरी रिपोर्ट है. फिलहाल InSAR रिपोर्ट की स्टडी अभी जारी है. लैंडस्लाइड काइनेमेटिक्स की स्टडी की जा रही है. 

जोशीमठ उत्तराखंड के चमोली जिले का कस्बा है. 6150 फीट की ऊंचाई पर बसा हुआ. ज्योर्तिमठ के नाम से भी जाना जाता है.  जोशीमठ कस्बा 2013 में आई आपदा से प्रभावित हुआ था. जोशीमठ भूकंप से ज्यादा भूस्खलन के प्रति संवेदनशील है. क्योंकि यह प्राचीन भूस्खलन से आई मिट्टी पर बसा कस्बा है. असल में जोशीमठ की ऊंचाई यानी 6150 फीट ऊंचाई पर कोई पहाड़ नहीं है. वह एक भूस्खलन का मलबा है, जिसपर कस्बा बसा है.

Joshimath Subsidence

अंदर से खोखला है जोशीमठ  

मलबे की मिट्टी मजबूत नहीं होती. पानी के रिसाव से अंदर गुफाएं बन जाती हैं. ऊपर पहाड़ दिखता है लेकिन खोखला हो चुका होता है. चमोली जिला पूरा टेक्टोनिक प्लेटों में होने वाली अनियमितताओं के ऊपर मौजूद जमीन पर बसा है. यानी तेज बारिश और भूकंप दोनों से होने वाले भूस्खलन से जोशीमठ और पूरा चमोली जिला तहस-नहस हो सकता है. 

नदियां काट रही हैं शहर का बेस 

पिछले साल 16 से 19 अगस्त के बीच वैज्ञानिकों ने जोशीमठ की ग्राउंड स्टडी की थी. 7 फरवरी 2021 ऋषिगंगा हादसे के बाद जोशीमठ का रविग्राम नाला और नौ गंगा नाला में टो इरोशन (Toe Erosion) और स्लाइडिंग (Sliding) बढ़ गया था. टो इरोशन यानी पहाड़ के निचले हिस्से का कटना जहां पर नदी या नाला बहता हो. स्लाइडिंग यानी मिट्टी का खिसकना. मॉनसूनी बारिश की वजह से सबसे ज्यादा दरारें रविग्राम इलाके में देखने को मिली थीं. 

Joshimath Subsidence

जोशीमठ नीचे और ऊपर दोनों से कमजोर

अलकनंदा नदी में जहां से धौलीगंगा मिलती है, वहीं से टो इरोशन हो रहा है. यानी जोशीमठ के नीचे की जमीन को अलकनंदा-धौलीगंगा मिलकर काट रही हैं. वह भी डाउनस्ट्रीम में. रविग्राम नाला और नौ गंगा नाला से लगातार मलबा नदी में जाता रहता है, जिसकी वजह से नदी का बहाव कई जगहों पर बाधित होता देखा गया है. अगर ऊपर के हिस्से की बात करें, तो जोशीमठ-औली रोड पर कई जगहों पर दरारें और गुफाएं बनते हुए देखी गई हैं. इस इलाके में कई नाले हैं, जो खुद को धीरे-धीरे फैलाते जा रहे हैं. यानी अपनी शाखाएं निकाल रहे हैं. इससे धंसाव का मामला और बढ़ेगा.

इन वजहों से धंस रहा है जोशीमठ  

प्राचीन भूस्खलन के मलबे पर बसा जोशीमठ का ज्यादातर हिस्सा ढलानों पर है. ढलानों की मिट्टी की ऊपरी परत कमजोर है. साथ ही इसके ऊपर वजन बहुत ज्यादा. जिसकी वजह से ये खिसक रही है. बारिश का पानी और घरों-होटलों से निकलने वाले गंदे पानी के निकासी की सही व्यवस्था नहीं थी. ये जमीन के अंदर रिसते रहे. इससे मिट्टी की ऊपरी परत कमजोर होती चली गई. लगातार पानी के रिसने की वजह से मिट्टी की परतों में मौजूद चिकने खनिज बह गए. जिससे जमीन कमजोर होती चली गई. ऊपर से लगातार हो रहे निर्माण का वजन यह प्राचीन मलबा सह नहीं पाया. 

2021 में हुई धौलीगंगा-ऋषिगंगा हादसे की वजह से आए मलबे से जोशीमठ के निचले हिस्से में अलकनंदा नदी के बाएं तट पर टो इरोशन बहुत ज्यादा हुआ. जिससे शहर की नींव हिल गई. इसने जोशीमठ के ढलानों को हिला दिया. सतह में पानी का रिसना, प्राकृतिक ड्रेनेज से मिट्टी का अंदर ही अंदर कटना, तेज मॉनसूनी बारिश, भूकंपीय झटके, बेतरतीब और अवैज्ञानिक तरीके से होता निर्माण कार्य ही इस जोशीमठ के नाजुक ढलान को बर्बाद करने के लिए जिम्मेदार हैं. आप किसी बाल्टी में उसकी सीमा से ज्यादा पानी नहीं भर सकते. पहाड़ों के साथ भी यही है. 

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