गैंगस्टर से नेता बने अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की शनिवार रात को प्रयागराज मेडिकल कॉलेज के पास गोली मार कर हत्या कर दी गई. अतीक की हत्या के बाद अब उससे जुड़े कई किस्से सामने आ रहे हैं. 2008 में जब अमेरिका के साथ परमाणु समझौते को लेकर मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था, तो उस वक्त अतीक अहमद ने जेल से बाहर निकलकर वोट डाला और सरकार बचाने में अहम भूमिका अदा की.
जब जेल से छोड़े गए थे 6 बाहुबली
यह दावा बाहुबलियों पर लिखी गई किताब में किया गया है. 2008 में एक दौर ऐसा आया जब जब अतीक समेत 6 आपराधिक राजनेताओं को महज 48 घंटों के अंदर अलग-अलग जेलों से फर्लो पर रिहा किया गया था. 'बाहुबली' नामक एक किताब में दावा किया गया है कि, 2008 में जब मनमोहन सिंह सरकार अमेरिका के साथ परमाणु समझौते को लेकर अविश्वास प्रस्ताव का संकट झेल रही थी तब अतीक अहमद ने सरकार बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी.
अतीक ने निभाई थी अहम भूमिका
राजेश सिंह द्वारा लिखित और रूपा पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक - "बाहुबलिस ऑफ इंडियन पॉलिटिक्स: फ्रॉम बुलेट टू बैलट" में दावा किया गया है कि इन छह बाहुबली सांसदों, जिन पर 100 से अधिक आपराधिक मामले थे, उन्हें अविविश्वास प्रस्ताव पर मतदान से 48 घंटे पहले फर्लो पर जेल से बाहर निकाल दिया गया. अतीक अहमद भी इन सांसदों में से एक था और तब वह फूलपुर से समाजवादी पार्टी के लोकसभा सांसद था. इन सभी सांसदों ने यूपीए सरकार को बचाने में अहम भूमिका निभाई थी.
तब लेफ्ट पार्टियों का कहना था कि ये परमाणु समझौता भारत की ऊर्जा सुरक्षा की ज़रूरतों पर ख़रा नहीं उतरता. इस समझौते पर अमल करने से देश की स्वतंत्र विदेश नीति पर असर पड़ेगा तथा देश की कूटनीतिक स्वायत्तता पर अमेरिका की छाप पड़ेगी.
यूपीए सरकार को चाहिए थे 44 वोट
दरअसल 2008 में असैन्य परमाणु समझौते पर अडिग रहने के मनमोहन सरकार के फैसले के खिलाफ वाम दलों ने सरकार से अपना बाहरी समर्थन वापस ले लिया था. राजेश सिंह लिखते हैं, 'लोकसभा में यूपीए के 228 सदस्य थे और अविश्वास प्रस्ताव के संकट से उबरने तथा साधारण बहुमत के लिए 44 मतों की कमी थी. हालांकि, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को विश्वास था कि सरकार बच जाएगी. बाद में साफ हो गया कि वह विश्वास कहां से आया था.'
किताब में लिखा है कि तब समाजवादी पार्टी, अजीत सिंह के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) और एच डी देवेगौड़ा की जनता दल (सेक्युलर) ने यूपीए सरकार को अपना समर्थन दिया था और बाहुबली नेताओं ने सरकार बचाने में अहम भूमिका अदा की. मतदान से 48 घंटे पहले सरकार ने देश के कानून तोड़ने वालों 6 बाहुबलियों को जेल से बाहर निकाला जिन पर अपहरण, हत्या, जबरन वसूली, आगजनी जैसे 100 से अधिक मामले दर्ज थे. सरकार का तर्क था कि उन्हें अपने संवैधानिक दायित्व का निर्वहन करने के लिए बाहर निकाला गया.'
किताब में दावा किया गया है, 'उनमें से एक उत्तर प्रदेश से समाजवादी पार्टी के सांसद अतीक अहमद थे, जिन्हें रौबदार मूंछें और सफारी सूट के प्रति जूनून था. उन्होंने पूरी निष्ठा दिखाते हुए संकट में दिख रही यूपीए सरकार के पक्ष में अपना कीमती वोट डाला. तब तक डॉन खुद को राजनीति और अपराध जगत दोनों में स्थापित कर चुका था.'
सपा ने पार्टी से निकाला
वह 2004 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर लोकसभा सांसद चुने गए अतीक को पांच साल के अंदर ही सपा ने उनके आपराधिक रिकॉर्ड के आधार पर निष्कासित कर दिया. अहमद (60) ने खुद को एक राजनेता, ठेकेदार, बिल्डर, प्रॉपर्टी डीलर और किसान के रूप के रूप में पहचान दिलाई, लेकिन उसके खिलाफ अपहरण, जबरन वसूली और हत्या सहित गंभीर आपराधिक आरोप भी लगे.
हत्यारों ने किया था सरेंडर
आपको बता दें कि अतीक अहमद और अशरफ अहमद की शनिवार रात करीब 10:37 बजे तीन बदमाशों ने गोली मारकर हत्या कर दी. हत्याकांड को अंजाम देने के बाद तीनों आरोपियों ने सरेंडर कर दिया था.अतीक और अशरफ की हत्या करने वाला लवलेश तिवारी बांदा का रहने वाला है, जबकि अरुण मौर्य कासगंज का निवासी है. वहीं तीसरा आरोपी सनी हमीरपुर जनपद से है. पूछताछ में तीनों आरोपियों ने अपना यही पता बताया है. पुलिस उनके बयानों को वेरिफाई कर रही है.
एनकाउंटर में मारा गया था बेटा
इससे दो दिन पहले झांसी में यूपी एसटीएफ ने अतीक अहमद के तीसरे नंबर के बेटे और उमेश पाल हत्याकांड के आरोपी असद के साथ शूटर गुलाम को एनकाउंटर में मार गिराया गया था. अतीक अपने बेटे के जनाजे में नहीं शामिल हो पाया था. वहीं एनकाउंटर पर सवाल उठने के बाद डीएम ने मजिस्ट्रियल जांच के आदेश दे दिए हैं. इस जांच के लिए सिटी मजिस्ट्रेट को जांच अधिकारी बनाया गया है. घटना के बारे में सिटी मजिस्ट्रेट के यहां बयान दर्ज कराए जा सकते हैं.
जब अतीक के वोट ने संकट में फंसी UPA सरकार को बचाने में की थी मदद - Aaj Tak
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