महाराष्ट्र में उद्धव गुट के नेताओं का शिंदे गुट में जाने का सिलसिला थमने का नाम ले रहा है. दो दिन के भीतर पूर्व विधायक व पार्टी उपनेता शिशिर शिंदे और प्रवक्ता मनीषा कायंदे ने पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का साथ छोड़ दिया. वहीं मनीषा ने देर शाम ठाकरे को झटका देते हुए मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिवसेना का दामन थाम लिया. सीएम शिंदे ने खुद मनीषा को पार्टी की सदस्यता दिलाई.
दरअसल, शनिवार को शिशिर शिंदे ने शिवसेना (यूबीटी) से इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने उद्धव ठाकरे को सौंपे अपने इस्तीफे में कहा कि पार्टी का उपनेता बने हुए उन्हें एक साल हो गया है, लेकिन अबतक कोई भी बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी गई है. इसके साथ ही उन्होंने नाराजगी जताते हुए कहा कि बीते छह महीने से उद्धव ठाकरे उनसे मिल ही नहीं रहे थे. उनका कहना है कि शिवसेना में उनके चार साल बर्बाद हो गए.
वहीं रविवार को उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना ने एमएलसी मनीषा कयांदे को पार्टी विरोधी गतिविधियों का आरोप लगाते हुए पार्टी प्रवक्ता के पद से बर्खास्त कर दिया था. इसके बाद उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दे दिया और देर शाम शिंदे गुट का दामन थाम लिया. दो दिनों में ये ठाकरे गुट के लिए दूसरा बड़ा झटका है.
बता दें कि मनीषा कायंदे 2018 से राज्य विधान परिषद की सदस्य हैं. उनका कार्यकाल 27 जुलाई, 2024 को खत्म होगा. वह विधान सभा कोटे से एमएलसी हैं. वह उद्धव खेमे की प्रवक्ता रहीं. इससे पहले वह भाजपा के साथ थीं और 2009 के विधानसभा चुनाव में सायन-कोलीवाड़ा सीट से हार गई थीं.
शिशिर शिंदे ने भारत-पाक मैच से पहले खोद दी थी पिच
साल 1991 में मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में भारत-पाकिस्तान का मैच होने वाला था. उस समय कुछ अन्य पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर यह क्रिकेट मैच रोकने के लिए शिशिर शिंदे ने स्टेडियम की पिच खोद दी थी. शिंदे इसके बाद देशभर में चर्चा का विषय बन गए थे. वहीं राज ठाकरे ने साल 2005 में शिवसेना छोड़ी थी तो शिशिर शिंदे ने उनका समर्थन करते हुए पार्टी छोड़ दी थी. करीब 13 साल बाद साल 2018 में उन्होंने शिवसेना में वापसी की थी, लेकिन 2022 तक उन्हें कोई खास जिम्मेदारी नहीं दी गई. जब एकनाथ शिंद ने शिवसेना में बगावत कर दी तब ठाकरे ने शिशिर शिंदे को शिवसेना के उपनेता की जिम्मेदारी सौंपी. हालांकि उनका कहना है कि पार्टी ने इस एक साल में कोई खास जिम्मेदारी नहीं दी, इसलिए वह पार्टी छोड़ रहे हैं.
दो फाड़ हो गई थी शिवसेना
गौरतलब है कि एकनाथ शिंदे और अन्य 39 विधायकों द्वारा महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के खिलाफ विद्रोह करने और शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की महा विकास अघाड़ी गठबंधन सरकार को गिराने के बाद पिछले साल जून में शिवसेना अलग हो गई थी. एकनाथ शिंदे बाद में बीजेपी के समर्थन से मुख्यमंत्री बने और भारत के चुनाव आयोग ने बाद में उनके गुट को मूल पार्टी का नाम और 'धनुष और तीर' का प्रतीक उन्हें दे दिया, जबकि ठाकरे समूह का नाम शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) रखा.
बीजेपी ने साधा निशाना
शिवसेना (यूबीटी) के नेताओं ने कायंदे पर निशाना साधते हुए कहा कि संगठन में सब कुछ होने के बावजूद उन्होंने इसे छोड़ने का फैसला किया है. शिवसेना (यूबीटी) के नेता विनायक राउत ने दावा किया, "वह भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) छोड़ने के बाद हमारे साथ शामिल हुईं, उन्हें सब कुछ मिला और अब चूंकि उन्हें विधान परिषद में फिर से नामित किए जाने की संभावना नहीं है, इसलिए उन्होंने पार्टी छोड़ना चुना है."
उद्धव ठाकरे को दो दिन में दो झटके, पार्टी उपनेता के बाद प्रवक्ता ने छोड़ा साथ, थामा शिंदे गुट का दामन - Aaj Tak
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