संसद के भीतर और बाहर हंगामे के बीच मॉनसून सत्र के दौरान राज्यसभा और लोकसभा में कुल 23 विधेयक पारित हुए.
इनमें 'दिल्ली सेवा विधेयक' जैसा अहम बिल शामिल है जिस पर लोकसभा में लगभग पांच घंटे और राज्य सभा में करीब आठ घंटे लंबी चर्चा हुई.
इस विधेयक पर हुई चर्चा में दोनों सदनों में कुल 58 सांसदों ने हिस्सा लिया.
इस सत्र में दोनों सदनों में कुल 25 विधेयक पेश किए गए जिनमें से 20 विधेयक लोकसभा और पांच विधेयक राज्य सभा में पेश किए.
सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच टकराव जारी
शुक्रवार शाम मॉनसून सत्र ख़त्म होने के बाद केंद्रीय संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी ने विपक्षी दलों पर संसद की कार्यवाही में हिस्सा नहीं लेने का आरोप लगाया.
उन्होंने कहा, "इस सत्र में संसद के दोनों सदनों से 23 विधेयक पारित किये गये. ये काफ़ी अहम विधेयक थे लेकिन लगातार प्रयासों और आग्रह के बावजूद विपक्ष ने अपने राजनीतिक कारणों की वजह से चर्चा में हिस्सा नहीं लिया."
"विपक्ष ने सिर्फ एक विधेयक पर चर्चा के लिए सहमति जताई जो दिल्ली के अध्यादेश से जुड़ा था. क्योंकि ये उन लोगों की ओर से अपने गठबंधन में एकजुटता दिखाने का मौका था."
प्रह्लाद जोशी से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अविश्वास प्रस्ताव पर जवाब देते हुए विपक्ष पर चर्चा में शामिल नहीं होने का आरोप लगाया था.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने क्या कहा?
- बीते दिनों दोनों सदनों ने जन विश्वास बिल, मीडिएशन, डेंटल कमिशन बिल, आदिवासियों से जुड़े बिल, डिज़िटल डेटा प्रोटेक्शन बिल, नेशनल रिसर्च फाउंडेशन बिल, कोस्टल एक्वाकल्चर से जुड़े बिल समेत कई महत्वपूर्ण बिल पास किए हैं.
- ये ऐसे बिल थे जो हमारे मछुआरों के हक़ के लिए थे जिसका सबसे ज़्यादा लाभ केरल को होना था. केरल के सांसदों से ज़्यादा अपेक्षा थी कि वे ऐसे बिल पर तो अच्छे से चर्चा में हिस्सा लेते. लेकिन राजनीति उन पर ऐसे हावी हो चुकी है कि उन्हें मछुआरों की चिंता नहीं है.
- नेशनल रिसर्च फाउंडेशन बिल, युवा शक्ति की आशा और आकांक्षाओं के लिए एक नयी दिशा देने वाला बिल था. हिंदुस्तान एक साइंस पावर के रूप में कैसे उभरे, इस सोच के साथ ये बिल लाया गया था, उससे भी विपक्ष को एतराज़ था.
- डिजिटल डेटा प्रोटेक्शन बिल अपने आप में देश के युवाओं के जज़्बे में जो बात प्रमुखता से है, उससे जुड़ा है. आने वाला समय तकनीक से चलने वाला है. लेकिन राजनीति आपके लिए प्राथमिकता है.
- कई ऐसे बिल थे जो ग़रीब, आदिवासियों, दलितों, गांवों के कल्याण की चर्चा करने के लिए थे, उनके भविष्य के साथ जुड़े हुए थे. लेकिन इसमें इन्हें कोई रुचि नहीं है. देश की जनता ने जिस काम के लिए उन्हें यहां भेजा है, उस जनता से भी विश्वासघात किया गया है.
लेकिन जहां एक ओर विपक्षी दलों पर बीजेपी निशाना साध रही है. वहीं, विपक्षी दल केंद्र सरकार पर लोकतंत्र की हत्या करने का आरोप लगा रहे हैं.
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने मॉनसून सत्र के आख़िरी दिन इंडिया गठबंधन के सांसदों के साथ मिलकर संसद परिसर में विरोध प्रदर्शन किया.
उन्होंने कहा, "आज संविधान की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं. मोदी जी संविधान के तहत सदन नहीं चलाना चाहते हैं. वो सदन के सदस्यों को धमकियां दे रहे हैं और उन्हें निष्कासित कर रहे हैं."
बीते गुरुवार कांग्रेस के लोकसभा सांसद अधीर रंजन चौधरी और आप सांसद राघव चड्ढा को संसद से निलंबित कर दिया गया है.
लेकिन विधेयकों का विस्तृत चर्चा के बिना पास हो जाना भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था और उसमें संसद की भूमिका के बारे में क्या बताता है.
भारत में लोकतांत्रिक सुधारों की दिशा में काम करने वाली संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के सह-संस्थापक जगदीप छोकर ने इस मुद्दे पर बीबीसी से बात की है.
वह कहते हैं, "ये सिलसिला 2011-12 से जारी है. संसद बस एक मुहर लगाने वाली संस्था रह गई है. क्योंकि अब संसद का काम अब वहां पास किए जाने वाले विधेयकों पर चर्चा करना नहीं रह गया है. संसद सदस्यों को विधेयक पढ़ने का वक़्त भी नहीं मिलता है. विधेयक संसद में पेश होने के कुछ मिनटों बाद ही पास कर दिए जाते हैं. मेरा मानना है कि सत्ता पक्ष से लेकर विपक्ष तक ज़्यादातर संसद सदस्यों को पता ही नहीं होता है कि विधेयकों में क्या है."
"सदस्यों का काम हां या ना में अपना मत देना रह गया है. जबकि होना ये चाहिए कि विधेयकों को पहले संसद सदस्यों के बीच वितरित किया जाए ताकि वो उन्हें पढ़ सकें. इसके बाद सदन में विधेयक को पढ़ा जाता है, उसके हर प्रावधान पर चर्चा होती है. लेकिन ये सब अब कहां होता है."
दिल्ली सेवा बिल पर दिखी सबसे ज़्यादा खींचतान
मॉनसून सत्र के दौरान मोदी सरकार के ख़िलाफ़ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव के बाद सबसे ज़्यादा चर्चा दिल्ली सेवा विधेयक पर हुई.
इस विधेयक के क़ानून बनने के साथ ही दिल्ली में अधिकारियों की नियुक्तियों और तबादलों पर अंतिम फ़ैसला करने की ताक़त मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के हाथ से निकलकर उप-राज्यपाल के हाथ में चली गयी है.
ये मुद्दा एक लंबे समय से दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच विवाद का विषय बना हुआ था. दिल्ली सरकार को हाल ही में इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली थी. लेकिन केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाकर दिल्ली सरकार को सुप्रीम कोर्ट से मिली राहत छीन ली. और अब इस विधेयक के क़ानून बनने के साथ दिल्ली में सत्ता का समीकरण बदल गया है.
इस विधेयक को क़ानून बनने से रोकने के लिए आम आदमी ने तमाम राजनीतिक प्रयास किए जिनकी वजह से इंडिया गठबंधन के तमाम सांसद उसके साथ खड़े दिखाई दिए.
राज्य सभा में जिस दिन ये विधेयक पास हुआ उस दिन पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी संसद में मौजूद थे जिनकी उम्र अब नब्बे वर्ष हो गयी है.
लेकिन आख़िरकार बीजेडी और वाईएसआर कांग्रेस के दम पर बीजेपी इस विधेयक को पास कराने में सफल हुई. इस मॉनसून सत्र में सबसे ज़्यादा राजनीतिक रस्साकसी इसी विधेयक को लेकर दिखी.
लेकिन केंद्र सरकार इस दौरान कई विधेयकों को लोकसभा और राज्यसभा में पास कराने में कामयाब हुई.
बीते दो ढाई दशकों से भारतीय संसद पर नज़र रखने वाली वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी इसे विपक्ष की कमज़ोरी के रूप में देखती हैं.
वह कहती हैं, "इस सत्र के दौरान 23 विधेयक पारित हुए हैं जिसमें कई अहम विधेयक हैं. डेटा प्रोटेक्शन विधेयक की निंदा सोशल मीडिया तक पर हो रही है. जंगलों में रहने वाले लोगों के अधिकारों से लेकर नकली दवाओं के लिए सज़ा तय करने वाले कई विधेयक लाखों लोगों को प्रभावित करने जा रहे हैं. ऐसे में इस सत्र के दौरान विपक्षी दलों की ओर से हल्ला-गुल्ला में पूरा सत्र गंवा देना, प्रधानमंत्री की ओर से बयान नहीं दिए जाने को मुख्य और एकमात्र मुद्दा बना देना, मेरे मुताबिक़ अति-प्रतिक्रिया है. इस बारे में विपक्ष को सोचना होगा कि क्या ये सही रणनीति है."
"मुझे याद है कि भाजपा नेता अरुण जेटली और सुषमा स्वराज कहते थे कि सदन न चलने देना भी संसदीय लोकतंत्र का हिस्सा है. ये बात ठीक है लेकिन इसका इस्तेमाल कभी-कभी किया जाना चाहिए. ये एक अपवाद होना चाहिए, न कि नियम. क्योंकि आप अगर संसद पर चर्चा करने की जगह टीवी पर बोलेंगे तो कल संसद की अहमियत पर सवाल उठेंगे. ऐसे में विपक्ष को ये सोचने की ज़रूरत है कि सरकार को किस तरह बेहतर तैयारी के साथ घेरा जाए."
बिना चर्चा और विपक्ष के पास हुए तमाम विधेयक
इस सत्र में जहां दिल्ली सर्विस विधेयक और अविश्वास प्रस्ताव पर कई घंटों लंबी चर्चा देखने को मिली, वहीं, कई विधेयक कुछ मिनटों की चर्चा के बाद पास होते देखे गए.
भारतीय संसद से जुड़े आंकड़ों का अध्ययन करने वाली संस्था पीआरएस के मुताबिक़, मॉनसून सत्र के दौरान लोकसभा में पारित हुए कुल 22 विधेयकों में से 20 विधेयकों पर एक घंटे से भी कम समय तक चर्चा हुई.
लोकसभा में नौ विधेयक 20 मिनट से भी कम समय की चर्चा में पारित हुए. इनमें आईआईएम संशोधन जैसे विधेयक शामिल थे.
यही नहीं, राष्ट्रीय नर्सिंग एवं मिडवाइफ़री आयोग और राष्ट्रीय डेंटल आयोग गठित करने के लिए लाए गए विधेयक तीन मिनट के अंदर पारित हुए.
डिज़िटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन जैसे अहम विधेयक जिसका ज़िक्र पीएम मोदी ने किया था, उसे पारित करने में लोकसभा और राज्य सभा मिलाकर 14 सदस्यों ने हिस्सा लिया. और इस विधेयक को पास होने में दोनों सदनों में मिलाकर मात्र 125 मिनट का वक़्त लगा.
राज्य सभा में तीन दिनों के अंदर दस विधेयक पारित किए गए. इस सत्र के दौरान राज्य सभा में आठ दिन विपक्ष की ग़ैर-मौजूदगी में विधेयक पारित किए गए.
पीएम मोदी ने अपने जवाब में कहा था कि एक ज़िम्मेदार विपक्ष सवाल पूछता है लेकिन इस मॉनसून सत्र में सिर्फ नौ फ़ीसद सवालों के मौखिक जवाब दिए गए. वहीं, राज्यसभा में 28 फ़ीसद ज़वाब मौखिक रूप से दिए गए.
और हर सवाल पर लोकसभा में औसतन 10 मिनट और राज्य सभा में 17 मिनट ख़र्च किए गए. इस पूरे सत्र के दौरान लोकसभा में सिर्फ़ एक मौके पर प्रश्नकाल को 30 मिनट से ज़्यादा समय दिया गया.
नीरजा चौधरी कहती हैं, "टेक्नोलॉजी समेत दूसरे कारणों की वजह से हमारी शासन व्यवस्था काफ़ी जटिल होती जा रही है. ऐसे में सांसदों की भूमिका ये है कि वे विधेयकों का गहराई से अध्ययन करें ताकि उनसे जुड़े हर पहलू को देश के सामने रख सकें और इनकी सरल ढंग से व्याख्या करें ताकि जनता उन्हें समझ सके."
"इस समय संसद में बहुत कम सांसद ऐसे हैं जो ऐसा करने में सक्षम हैं. ऐसे में सत्र को हल्ले-गुल्ले में गंवा देना विपक्ष का आलस भी है. मुझे लगता है कि ये बहुत आसान तरीका है कि आपने विरोध भी कर दिया और आपको होमवर्क भी नहीं करना पड़ा कि कैसे किसी विधेयक की आलोचना की जाए जो आम लोगों को समझ आए."
"ऐसे में हम इस मोड़ पर आ गए हैं कि सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच कटुता संभवत: अपने चरम पर है. पहले इतनी नहीं होती थी. मुझे याद है कि वाजपेयी सरकार के दौरान प्रमोद महाजन संसदीय कार्यमंत्री थे तो उन्होंने एक बार सेंट्रल हॉल में विपक्ष से कहा कि ‘भाई अब हो गया हल्ला-गुल्ला, आपने जनता और अपनी पार्टी नेताओं को जो संदेश देना था, वो दे दिया, अब बात करते हैं कि कैसे सदन चलेगा.’ और फिर रास्ता निकला. अब क्या है कि संवाद ही ख़त्म हो गया है. और लोकतंत्र में जब संवाद बंद हो जाता है तो ये ख़तरे की घंटी है."
कौन से विधेयक हुए पारित
बीती 20 जुलाई से शुरू होकर 11 अगस्त को ख़त्म हुए संसद के मॉनसून सत्र में केंद्र सरकार की ओर से कुल 25 विधेयक पेश किए गए हैं.
इनमें से 20 विधेयक लोकसभा में पेश किए गए हैं. वहीं, 5 विधेयक राज्य सभा में पेश किए गए.
इसके साथ ही पिछले सत्रों के दौरान पेश किए गए आठ विधेयक लोकसभा में पास किए गए. और पिछले सत्रों में पेश किए गए सात विधेयक राज्य सभा में पेश किए गए.
इस तरह पिछले सत्रों और इस सत्र में पेश होकर दोनों सदनों में पास हुए कुल विधेयकों की संख्या 23 रही.
मॉनसून सत्र में पास होने वाले विधेयक –
राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन विधेयक, 2023
4 अगस्त को लोकसभा में पेश किया गया ये विधेयक 7 अगस्त को लोकसभा और 9 अगस्त को राज्य सभा में पारित किया गया है. इसका उद्देश्य गणित, इंजीनियरिंग, टेक्नोलॉजी, पर्यावरण और भू-विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान, इन्नोवेशन और उद्यमिता के लिए एक उच्च स्तरीय राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन की स्थापना करना है.
फार्मेसी (संशोधन) विधेयक, 2023
3 अगस्त को लोकसभा में पेश किया गया ये विधेयक 7 अगस्त को लोकसभा और 10 अगस्त को राज्य सभा में पारित किया गया. इसका मकसद भारत में फार्मेसी प्रेक्टिस करने के लिए इस क़ानून के तहत पंजीकरण को अनिवार्य करना है. इस क़ानून में जम्मू-कश्मीर फार्मेसी अधिनियम के तहत पंजीकृत शख़्स को फार्मेसी अधिनियम 1948 के तहत पंजीकृत माना जाएगा. हालांकि, उसे क़ानून संशोधित होने के एक साल के अंदर पंजीकरण के लिए आवेदन करने और शुल्क जमा करना होगा.
डिज़िटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल, 2023
इस विधेयक को तीन अगस्त को लोकसभा में पेश किया गया था जिसके बाद 7 अगस्त को लोकसभा और 9 अगस्त को राज्य सभा में पारित कर दिया गया.
ये बिल भारत के अंदर डिजिटल पर्सनल डेटा इकट्ठा करने की प्रक्रिया पर लागू होता है. डेटा या तो ऑनलाइन लिया जाता है या फिर ऑफलाइन लेकर उसका डिजिटलीकरण किया जाता है. यह भारत से बाहर पर्सनल डेटा प्रोसेसिंग पर भी लागू होगा, अगर इस डेटा के जरिए भारत में वस्तुओं और सेवाओं को इस्तेमाल करने दिया जाता है.
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक, 2023
ये विधेयक लोकसभा में 1 अगस्त को पेश किया गया था जिसे 3 अगस्त को लोकसभा और 7 अगस्त को राज्यसभा में पारित किया गया है. इस विधेयक को ही आम भाषा में दिल्ली सेवा बिल कहा जा रहा है जिसे लेकर आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच सदन में टकराव देखने को मिला था.
आईआईएम (संशोधन) बिल, 2023
ये विधेयक लोकसभा में 28 जुलाई को पेश किया गया था जिसके बाद इसे 4 अगस्त को लोकसभा और 8 अगस्त को राज्य सभा में पारित किया गया. इस अधिनियम का मकसद आईआईएम के कामकाज का नियमन करना है.
अपतटीय क्षेत्र खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन विधेयक, 2023
ये विधेयक लोकसभा में 27 जुलाई को पेश किया गया था जिसके बाद इसे 1 अगस्त को लोकसभा और 3 अगस्त को राज्य सभा में पारित किया गया. ये अधिनियम साल 2002 के क़ानून में संशोधन लाते हुए भारत के समुद्री क्षेत्रों में खनन को रेगुलेट करता है.
जन्म और मृत्यु पंजीकरण (संशोधन) विधेयक-2023
इस विधेयक को लोकसभा में 26 जुलाई को पेश किया गया था जिसके 1 अगस्त को लोकसभा और 7 अगस्त को राज्य सभा में पारित किया गया. इसका मकसद साल 1969 में पारित किए गए अधिनियम को संशोधित करता है. इस विधेयक में रजिस्ट्रार जनरल पंजीकृत जन्म और मृत्यु का एक राष्ट्रीय डेटाबेस बनाएगा.
खान और खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन विधेयक, 2023
इस विधेयक को लोकसभा में 26 जुलाई को पेश किया गया था जिसके 2 अगस्त को लोकसभा और 2 अगस्त को राज्य सभा में पारित किया गया. इसका मकसद खनिजों की खोज और खनन के क्षेत्र में सुधार लाना है.
राष्ट्रीय नर्सिंग और मिडवाइफरी आयोग (एनएनएमसी) विधेयक, 2023
इस विधेयक को लोकसभा में 24 जुलाई को पेश करके 28 जुलाई को पारित कराया गया जिसके बाद 8 अगस्त को ये विधेयक राज्य सभा में पारित हुआ. इसका मकसद नर्सिंग शिक्षा और प्रैक्टिस के क्षेत्र में परिवर्तनकारी बदलाव लाने के लिए राष्ट्रीय नर्सिंग और मिडवाइफरी आयोग बनाना है.
राष्ट्रीय दंत चिकित्सा आयोग विधेयक, 2023
इस विधेयक को 24 जुलाई को लोकसभा में पेश किया गया था जिसके बाद 28 जुलाई को लोकसभा और 8 अगस्त को राज्य सभा में पारित किया गया. ये विधेयक साल 1948 में पारित हुए डेंटिस्ट एक्ट को निरस्त करते हुए नेशनल डेंटल कमिशन का गठन करता है.
संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश संशोधन विधेयक 2023
ये विधेयक 24 जुलाई को लोकसभा में पारित किया गया था. इसके बाद 1 अगस्त को लोकसभा और 9 अगस्त को राज्य सभा में पारित किया गया. इस विधेयक में छत्तीसगढ़ में मेहरा, महरा और मेहर समुदायों के पर्यायवाची के रूप में महारा और महरा समुदायों को शामिल किया गया है.
सिनेमैटोग्राफ (संशोधन) विधेयक, 2023
ये विधेयक 20 जुलाई को लोकसभा में पेश किया गया जिसके बाद 27 जुलाई को लोकसभा और 31 जुलाई को राज्य सभा में पारित किया गया. इसका मकसद पायरेसी के ख़तरों से निपटना है.
तटीय जलकृषि प्राधिकरण (संशोधन) विधेयक, 2023
ये विधेयक 5 अप्रैल, 2023 को लोकसभा में पेश किया गया जिसके बाद 7 अगस्त को लोकसभा और 9 अगस्त को राज्य सभा में पारित किया गया. इस विधेयक के तहत कोस्टल एक्वाकल्चर अथॉरिटी की स्थापना की जाएगी.
वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2023
ये विधेयक 29 मार्च, 2023 को लोकसभा में पेश किया गया जिसके बाद 26 जुलाई को लोकसभा और 2 अगस्त को राज्य सभा में पारित किया गया. इस विधेयक को जंगलों के बाहर हरित क्षेत्रों का विस्तार करने और वनों को अधिक उत्पादक बनाने की दिशा में अवसर पैदा करने के मकसद से लाया गया है.
अंतर-सेवा संगठन (कमांड, नियंत्रण और अनुशासन) विधेयक – 2023
इस विधेयक को 15 मार्च, 2023 को लोकसभा में पेश किया गया था जिसके बाद 4 अगस्त को लोकसभा और 8 अगस्त को राज्य सभा में पारित किया गया. ये विधेयक इंटर-सर्विसेज़ ऑर्गनाइज़ेशन के तहत आने वाले कमांडर-इन-चीफ़ या ऑफिसर-इन-कमांड को उनकी कमान के तहत आने वाले कर्मचारियों पर अनुशासनात्मक या प्रशासनिक नियंत्रण रखने की क्षमता देता है.
जन विश्वास (प्रावधानों का संशोधन) विधेयक, 2023
इस विधेयक को लोकसभा में 22 दिसंबर, 2022 को पेश किया गया था जिसके 27 जुलाई, 2023 को पारित कराया गया. वहीं, राज्य सभा में इस विधेयक को 2 अगस्त को पारित किया गया. इसका मकसद निजी व्यक्तियों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों के कामकाज को सरल बनाने के लिए 42 कानूनों में संशोधन लाना है.
बहु-राज्य सहकारी सोसायटी (संशोधन) विधेयक, 2023
ये विधेयक 7 दिसंबर, 2022 को लोकसभा में पेश किया गया था. इसके बाद 25 जुलाई, 2023 को लोकसभा और 1 अगस्त, 2023 को राज्य सभा में पारित किया गया. इसके तहत सहकारी निर्वाचन प्राधिकरण की स्थापना की जाएगी.
मध्यस्थता विधेयक, 2021
ये विधेयक 20 दिसंबर, 2021 में राज्यसभा में पेश किया गया था जिसके बाद 1 अगस्त, 2023 को राज्य सभा और 7 अगस्त, 2023 को लोकसभा में पारित किया गया. इसके ज़रिए भारतीय मध्यस्थता परिषद का गठन किया जाएगा.
जैव विविधता (संशोधन) विधेयक, 2021
इस विधेयक को लोकसभा में 16 दिसंबर, 2021 को पेश किया गया था जिसके 25 जुलाई, 2023 को पारित कराया गया. इसके बाद इसे 1 अगस्त, 2023 को राज्य सभा में पारित किया गया. इसका मकसद साल 2002 में लाए गए जैव विविधता क़ानून में संशोधन लाना है.
इन तमाम विधेयकों के साथ ही एकीकृत वस्तु और सेवा कर (संशोधन) बिल, केंद्रीय वस्तु और सेवा कर (संशोधन) बिल, संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश (पांचवां संशोधन) बिल और संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश (तीसरा संशोधन) बिल समेत कुल 23 विधेयक पारित किए गए हैं.
संसद का मॉनसून सत्र: 23 विधेयक हुए पास, 20 पर एक घंटे भी नहीं हुई चर्चा - BBC हिंदी
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