लोकसभा चुनाव से पहले राज्यों में संगठन के समीकरण दुरुस्त करने में जुटी कांग्रेस ने सीटों के लिहाज से सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश को लेकर अहम फैसला लिया है. कांग्रेस ने प्रदेश अध्यक्ष पद से बृजलाल खाबरी की छुट्टी कर कमान अजय राय को सौंपी है. निकाय चुनाव में कांग्रेस के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद से ही बृजलाल खाबरी की प्रदेश अध्यक्ष पद से छुट्टी तय मानी जा रही थी.
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अहम सवाल ये भी है कि खाबरी के बाद अजय राय ही क्यों? यूपी कांग्रेस की कमान अजय राय को सौंपने के पीछे पार्टी की रणनीति क्या है? कोई इसे नेतृत्व के स्तर पर संतुलन साधने की कवायद बता रहा है तो कोई पूर्वांचल में खिसका आधार मजबूत करने की कोशिश. प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद अजय राय ने कहा कि हमारा ध्यान संगठन को मजबूत करने पर रहेगा. हमारी कोशिश होगी कि लोकसभा चुनाव में सूबे से पार्टी की सीटें बढ़ें.
अजय राय को क्यों बनाया अध्यक्ष
वरिष्ठ पत्रकार डॉक्टर श्रीराम त्रिपाठी कहते हैं कि आज कांग्रेस की सबसे बड़ी समस्या कार्यकर्ता हैं. पूर्वांचल में अजय राय को हटा दें तो कांग्रेस के पास कोई ऐसा नेता नहीं है जो अपने बल-बूते बड़ी संख्या में लोगों को जुटा पाए. अजय राय के पास कार्यकर्ताओं की कमी नहीं है. दूसरी बात ये है कि अजय राय मुखर नेता हैं और तमाम मुद्दों पर लगातार लोगों के बीच अपनी बात पूरी मजबूती से रखते रहे हैं. वे जितनी पकड़ भूमिहार बिरादरी में रखते हैं, उतनी ही दूसरी जातियों में भी.
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उन्होंने आगे कहा कि अजय राय ने राजनीतिक सफर की शुरुआत बीजेपी से की थी. बीजेपी में वे लंबे समय तक रहे और इसके बाद सपा में भी. बाद में कांग्रेस में शामिल हुए. अजय राय बीजेपी और सपा की कार्यपद्धति के साथ ही रणनीति, मजबूती और कमजोरी, हर पहलू से वाकिफ हैं. संगठन के मामले में भी वे मजबूत नेता हैं. पूर्वांचल में कांग्रेस के लिए लॉबी भी समस्या रही है. औरंगाबाद हाउस (कमलापति त्रिपाठी लॉबी) हो या खजुरी हाउस (डॉक्टर राजेश मिश्रा लॉबी), इन दोनों ही लॉबी से न तो उनका कभी विरोध रहा है और ना ही ये उस लॉबी में रहे ही हैं.
कांग्रेस का फोकस पूर्वांचल पर
अजय राय वाराणसी से हैं जो पूर्वांचल में ही आता है. वे 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ कांग्रेस के उम्मीदवार भी रहे हैं. अजय को यूपी कांग्रेस का अध्यक्ष बनाए जाने के पीछे पार्टी का पूर्वांचल पर फोकस भी नजर आ रहा है. कांग्रेस पूर्वांचल को कितनी गंभीरता से लेती है, इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रियंका गांधी ने जब सियासत में कदम रखा तब उनको महासचिव बनाकर पूर्वी उत्तर प्रदेश की ही जिम्मेदारी दी गई थी.
यूपी कांग्रेस के प्रवक्ता रह चुके सुधांशु वाजपेयी ने कहा कि अजय राय संगठन के लिए बतौर प्रांतीय अध्यक्ष पहले से ही काम कर रहे हैं. वे अपने संगठन के साथ ही दूसरे दलों की मजबूत और कमजोर कड़ियों को अच्छे से समझते हैं. उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने से पार्टी मजबूत होगी. दलित को हटाकर सवर्ण अध्यक्ष बनाए जाने को लेकर सवाल पर सुधांशु ने कहा कि हमारे यहां संगठन के सबसे बड़े पद पर दलित बिरादरी से आने वाले मल्लिकार्जुन खड़गे हैं. ऐसे में ये कहना उचित नहीं है.
गठबंधन के लिहाज से समीकरणों पर फोकस
कांग्रेस का फोकस विपक्षी गठबंधन में शामिल दलों को देखते हुए जातीय और सामाजिक समीकरण साधने पर है. सपा के सहारे पार्टी की नजर ओबीसी वोट पर है तो वहीं जयंत चौधरी की पार्टी आरएलडी के सहारे पश्चिमी यूपी में जाट वोट मिलने की उम्मीद. कांग्रेस अजय राय के सहारे अपना परंपरागत वोट बैंक रहे सवर्णों को फिर से साथ लाने की कोशिश में है. दलित वोट के लिए कांग्रेस की रणनीति मल्लिकार्जुन खड़गे का चेहरा आगे करने की है. पार्टी की नजर मायावती पर भी है. सुधांशु वाजपेयी ने कहा भी कि अंतिम समय तक मायावती के लिए विपक्षी गठबंधन के दरवाजे खुले हैं.
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निकाय चुनाव के बाद ही तय हो गई थी खाबरी की छुट्टी
यूपी चुनाव के बाद अजय कुमार लल्लू की जगह बृजलाल खाबरी को यूपी कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था. खाबरी के प्रदेश अध्यक्ष रहते निकाय चुनाव में कांग्रेस ने निराशाजनक प्रदर्शन किया था. निकाय चुनाव के बाद खाबरी की कार्यप्रणाली और उम्मीदवार चयन की प्रक्रिया तक पर सवाल उठ रहे थे. मथुरा सीट पर दो उम्मीदवारों को कांग्रेस का सिंबल दे दिया गया था जिससे पार्टी की किरकिरी हुई थी. खाबरी को कांग्रेस नेतृत्व ने फटकार भी लगाई थी. निकाय चुनाव के बाद ही बृजलाल खाबरी की अध्यक्ष पद से छुट्टी तय हो गई थी.
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अजय राय को यूपी अध्यक्ष बनाने के पीछे कांग्रेस की रणनीति क्या है, क्यों हटा दिए गए खाबरी? - Aaj Tak
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