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Sunday, January 9, 2022

दिल्ली की मजदूर बस्ती से रिपोर्ट: वीकेंड लॉकडाउन ने बढ़ाई प्रवासी मजदूरों की चिंता, ‘अब कोरोना का नहीं, रोज... - Dainik Bhaskar

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एक घंटा पहलेलेखक: वैभव पलनीटकर

8 जनवरी को जब मोहम्मद हारुन अपने घर से रिक्शा लेकर निकले तो सड़कें सूनी दिखीं और पता लगा कि सरकार ने वीकेंड लॉकडाउन लगाया है। कुछ घंटे इंतजार करने के बाद वो पूर्वी दिल्ली में पड़ने वाली दल्लूपुरा की अपनी मजदूर बस्ती में लौट आए। चार साल पहले हारुन बिहार के अररिया से 1300 किलोमीटर दूर राजधानी दिल्ली चार पैसे कमाने के लिए आए और अब वो रिक्शा चलाकर 300-400 रुपए दिहाड़ी बना पाते हैं। इसी में उन्हें अपना परिवार चलाना होता है, घर पैसे भी भेजने होते हैं और कर्ज भी चुकाना होता है।

हारुन पर उनके मकान मालिक का ही 20,000 रुपए का कर्ज है, ये कर्ज पहली और दूसरी लहर में लगे लॉकडाउन के दौर वाले किराए का ही है। हारुन अपने बच्चों के साथ जिस माचिसनुमा कमरे में रहते हैं, उसका किराया 3000 रुपए है।

वीकेंड लॉकडाउन ने दिलाई पहली-दूसरी लहर की याद
कोरोना की पहली और दूसरी लहर के लॉकडाउन के दौरान जो सूनी सड़कें, खाली बाजार, गलियों में सन्नाटा दिखा करता था, अब देश की राजधानी दिल्ली में फिर से वही नजारा दिखने लगा है। ये तीसरी लहर का पहला वीकेंड लॉकडाउन है और जरूरी सेवाओं के अलावा राजधानी में सब कुछ तालाबंद है। इस लॉकडाउन में सबसे ज्यादा अगर कोई डरा हुआ है तो वो हैं बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों से आकर राजधानी में काम करने वाले प्रवासी मजदूर।

रिक्शा चलाने वाले मोहम्मद हारुन से लेकर फेरी लगाने वाले लक्ष्मीनारायण और उनके साथी मजदूर लॉकडाउन की आहट सुनकर डर गए हैं। हमने दिल्ली NCR की कुछ मजदूर बस्तियों और लेबर चौक जाकर प्रवासी मजदूरों से बात की।

बिहार के अररिया जिले के प्रवासी मजदूर मोहम्मद हारुन अपने बच्चों के साथ दल्लूपुरा के इसी कमरे में रहते हैं।

बिहार के अररिया जिले के प्रवासी मजदूर मोहम्मद हारुन अपने बच्चों के साथ दल्लूपुरा के इसी कमरे में रहते हैं।

‘अगर लॉकडाउन और सख्ती बढ़ेगी तो पहले ही अपने गांव लौट जाऊंगा’
बिहार के मधुबनी के रहने वाले लक्ष्मीनारायण पूर्वी दिल्ली की मजदूर बस्ती में रहते हैं और कॉस्मेटिक सामानों की फेरी लगाते हैं। लक्ष्मीनारायण अपनी बस्ती से निकलकर मेन रोड पर ये देखने के लिए आए हैं कि वीकेंड लॉकडाउन का क्या हालचाल है। वो कहते हैं, ‘कॉस्मेटिक की फेरी में ज्यादा बिक्री शनिवार, रविवार को ही हुआ करती थी, लेकिन अब वीकेंड लॉकडाउन की वजह से धंधा ठप हो गया है। अगर फेरी लगाने निकलूंगा तो हजारों रुपए का फाइन देना होगा। अगर कोरोना के केस और ज्यादा तेजी से बढ़ेंगे और लॉकडाउन लगेगा तो फिर से गांव जाना होगा। जब पहली बार कोरोना आया था और लॉकडाउन लगा था तो हालत खराब हो गई थी। इस बार अगर लॉकडाउन लगने की संभावना बनेगी तो पहले ही घर निकल जाऊंगा।’

नारायण पूर्वी दिल्ली की मजदूर बस्ती में रहते हैं और कॉस्मेटिक सामानों की फेरी लगाते हैं।

नारायण पूर्वी दिल्ली की मजदूर बस्ती में रहते हैं और कॉस्मेटिक सामानों की फेरी लगाते हैं।

‘हमें कोरोना वायरस का नहीं, लॉकडाउन का ज्यादा डर है’
बरेली (यूपी) के रहने वाले मोहम्मद आरिफ पूर्वी दिल्ली में कारपेंटर का काम करते हैं और दिन का 300 रुपए कमाते हैं। आरिफ पहली और दूसरी लहर वाले लॉकडाउन को याद करते ही सिहर उठते हैं, उन्हें फिक्र है कि कहीं कोरोना के केस इसी तरह बढ़ते रहे तो लॉकडाउन न लग जाए। आरिफ कहते हैं- ‘अमीर लोग कोरोना के बारे में सुनते ही अपने घरों में बंद हो जाते हैं। हम रोज कमाने और रोज खाने वाले लोग हैं। अब हमें कोरोना का डर नहीं रहा, अब हमें अपनी रोजी-रोटी छिनने का डर है’।

आरिफ बताते हैं कि पिछले एक हफ्ते से ग्राहकी कम हो गई है और काम धंधा भी मंदा पड़ गया है। अभी तक हम पहले लॉकडाउन के भयानक मंजर को नहीं भूले हैं। कई दिन तक अपने कमरों में बंद रहे, कभी खाना मिला कभी भूखे सो गए। सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर घर जाना पड़ा। कमाई नहीं हुई तो भी मकान मालिक को हजारों रुपए किराया चुकाना पड़ा। इस बार ऐसी नौबत नहीं आने देंगे, पहले ही घर चले जाएंगे।

मोहम्मद आरिफ पूर्वी दिल्ली में कारपेंटर का काम करते हैं।

मोहम्मद आरिफ पूर्वी दिल्ली में कारपेंटर का काम करते हैं।

‘जेब में सिर्फ 10 रुपए पड़े हैं, मास्क खरीदूं या खाना खाऊं?’
वीकेंड लॉकडाउन के एक दिन पहले हमने हमने दिल्ली और आसपास के इलाकों के लेबर मार्केट का भी दौरा किया और वहां खड़े प्रवासी मजदूरों का हाल-चाल लिया। दिल्ली से सटे नोएडा के सेक्टर 58 लेबर मार्केट में भी सुबह-सुबह काम की तलाश में मजदूरों की भीड़ लगी रहती है। मजदूरों ने बताया कि पिछले करीब एक हफ्ते से काम मिलना कम हो गया है। कोविड संक्रमण के डर की वजह से लोगों ने अभी अपने छोटे-मोटे काम को टालना शुरू कर दिया है, इसलिए काम मिलने में दिक्कत आ रही है।

कासगंज के रहने वाले गोविंद दिहाड़ी मजदूरी करते हैं। जब हम लेबर चौक पहुंचे तो वो हमारा माइक देखकर करीब आ गए। कहने लगे कि लगातार एक हफ्ते से इसी लेबर चौक पर आ रहे हैं, पर काम नहीं मिल रहा। भावुक होकर वो अपनी जेब से 10 रुपए का सिक्का निकालते हैं और कहते हैं, ‘मेरे पास अब यही 10 रुपए का सिक्का बचा है। चाहे तो मेरी जेब चेक कर लीजिए।’

लेबर चौक पर काम की चाह में खड़ी किरणदेवी बेलदारी करती हैं। वह कहती हैं, ‘जब मर्दों को ही काम नहीं मिल रहा तो हम महिलाओं को कैसे मिलेगा? मुझे एक महीना हो गया जब मैं आखिरी बार काम पर गई थी। उसके बाद से हर सुबह लेबर चौक पर आकर खड़ी होती हूं और 10-11 बजे खाली हाथ अपने घर लौट जाती हूं।’

लेबर चौक पर काम मिलने के इंतजार में खड़ीं किरणदेवी।

लेबर चौक पर काम मिलने के इंतजार में खड़ीं किरणदेवी।

दूसरी लहर में दिल्ली से 13 लाख प्रवासी मजदूरों का हुआ था पलायन
दिल्ली सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक कोविड की दूसरी लहर के बाद अप्रैल-मई में लगे लॉकडाउन के बाद सिर्फ बसों के जरिए 8 लाख से ज्यादा मजदूर दिल्ली से अपने घरों को गए थे। वहीं केंद्रीय श्रम मंत्रालय के मुताबिक कोरोना की दूसरी लहर में रेलवे के जरिए 5 लाख लोग अपने घरों को लौटे थे। इस तरह दूसरी लहर के दौरान करीब 13 लाख प्रवासी मजदूर दिल्ली छोड़कर अपने घरों को लौटे थे

दिल्ली में पॉजिटिविटी रेट 15% के पार
दिल्ली में 8-9 जनवरी को पहला वीकेंड लॉकडाउन लगा है। इस सख्ती के पीछे वजह है कि राजधानी में डेली कोविड केस का आंकड़ा 20,000 के पार जा चुका है। वहीं पॉजिटिविटी रेट 17% के पार छलांग मार चुकी है। डेल्टा के मुकाबले कई गुना तेजी से फैलने वाले ओमिक्रॉन के दिल्ली में 513 केस आ चुके हैं। और अभी भी ये नहीं पता है कि इस लहर का पीक कब बनेगा।

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