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Tuesday, January 31, 2023

Legendary Lawyer & Former Law Minister Shanti Bhushan Passes Away - Live Law - Indian Legal News

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सेना के अफसरों पर एडल्ट्री के तहत चल सकता है मुकदमा, SC का आदेश - Aaj Tak

सुप्रीम कोर्ट ने साल 2018 में एडल्ट्री कानून को असंवैधानिक करार देते हुए खत्म कर दिया था. तब के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा द्वारा वो ऐतिहासिक फैसला सुनाया गया था. लेकिन उस फैसले के बाद केंद्र सरकार द्वारा कोर्ट से एक स्पष्टीकरण मांगा गया था. जानने का प्रयास था कि क्या 2018 वाला फैसला सेनाओं पर भी लागू होता है क्योंकि उनका खुद आर्म्ड फोर्स एक्ट होता है जिसके तहत एडल्ट्री अभी भी जुर्म है.

अब जस्टिस केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान बेंच ने साफ कर दिया है कि 2018 वाला सुप्रीम कोर्ट का फैसला आर्म्ड फोर्सेस को लेकर नहीं था. बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा कि एडल्ट्री को लेकर जो पहले फैसला दिया गया था, उसमें सिर्फ IPC की धारा 497 और CrPC की धारा 198(2) पर फोकस किया गया था. कोर्ट को आर्म्ड फोर्सेस एक्ट के प्रावधानों पर चर्चा करने का कोई मौका नहीं मिला था. वैसे भी इस कोर्ट द्वारा एडल्ट्री का कोई समर्थन नहीं किया गया था. कोर्ट ने तो माना है कि वर्तमान समय में ये एक समस्या हो सकती है. यहां तक कहा गया है कि शादी तोड़ने का कारण एडल्ट्री हो सकता है.

सुनवाई के दौरान बेंच ने इस बात पर भी जोर दिया कि अभी तक कोर्ट द्वारा आर्टिकल 33 के प्रावधानों को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई है. अब कोर्ट ने ये सफाई उस समय दी है जब ASG माध्वी दिवान द्वारा कई बिंदुओं पर रोशनी डाली गई थी. उन्होंने सेना के अनुशासन को लेकर जानकारी दी थी, बताया था कि वहां पर जिस प्रकार का कल्चर है, सभी एक साथ रहते हैं, उनमें भाईचारे की भावना रहती है. अगर ये फीकी पड़ जाएगी तो इसे अनुशासनहीनता माना जाएगा. अब जानकारी के लिए बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के 2018 वाले आदेश के बाद देखा गया था कि आर्म्ड फोर्सज ट्रिब्यूनल ने एडल्ट्री को लेकर कुछ मामलों को रद्द कर दिया था. तब तर्क सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया आदेश बताया गया था. लेकिन केंद्र सरकार ने इसके बाद कोर्ट में याचिका डाल साफ किया था कि आर्म्स एक्ट के तहत सेना में एडल्ट्री के लिए अफसर को बर्खास्त किया जा सकता है. मंगलवार को उन्हीं सब तर्कों को समझते हुए कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि सेना में एडल्ट्री को लेकर जो भी कार्रवाई होती है, उसे जारी रखा जा सकता है.

वैसे एडल्ट्री का ये विवाद काफी पुराना है. असल में जो एडल्ट्री कानून था, उसके तहत अगर किसी महिला के शादी के बाद दूसरे पुरुष के साथ अवैध संबंध होते थे, उस स्थिति में महिला का पति उस पुरुष के खिलाफ शिकायत दर्ज करवा सकता था. बड़ी बात ये थी कि महिला पर कोई एक्शन नहीं होना था, उस पर कोई केस दर्ज नहीं करवाया जा सकता था. सिर्फ अवैध संबंध रखने वाले पुरुष पर ही कानूनी कार्रवाई संभव थी. लेकिन साल 2018 में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने उस कानून को ही असंवैधानिक बता दिया था. उस समय कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि एडल्ट्री को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता और इसे जुर्म भी नहीं मानना चाहिए.

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सेना के अफसरों पर एडल्ट्री के तहत चल सकता है मुकदमा, SC का आदेश - Aaj Tak
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Monday, January 30, 2023

Sunday, January 29, 2023

गांधी हत्याकांड की केस डायरी: पहली कोशिश फेल, गोडसे समेत 8 किरदार, 3 गोलियां... बापू के हत्यारों ने ऐसे की थी पूरी साजिश - Aaj Tak

30 जनवरी 1948... बिरला हाउस में महात्मा गांधी अपने कमरे में सरदार पटेल से चर्चा कर रहे थे. बातचीत गंभीर थी. समय का पता नहीं चला. 5 बजकर 10 मिनट पर बातचीत खत्म हुई. ये वो दिन था जब गांधीजी को प्रार्थना सभा पहुंचने में देर हो गई थी. 

आभाबेन और मनुबेन के कंधे पर हाथ रखकर नजर जमीन पर जमाए हुए गांधीजी चले आ रहे थे. उन्होंने उन्हें डांटा भी. बोले- 'मुझे देर हो गई है. मुझे ये अच्छा नहीं लगता.' मनुबेन ने जवाब दिया कि बातचीत को देखते हुए वो बीच में टोंकना नहीं चाहती थीं. इस पर गांधीजी ने कहा, 'नर्स का कर्तव्य है कि वो मरीज को सही वक्त पर दवाई दे. अगर देर होती है तो मरीज की जान जा सकती है.'

चुस्त चाल, सिर झुकाए और नजरें जमीन पर गड़ाए गांधीजी चले आ रहे थे. गांधीजी को आते देख इंतजार कर रही भीड़ अभिवादन करने लगी. भीड़ ने उन्हें रास्ता दिया ताकि वो प्रार्थना सभा में आसन तक पहुंच सकें. पर उसी भीड़ में रिवॉल्वर लिए नाथूराम गोडसे खड़ा था. गांधीजी को आता देख नाथूराम गोडसे भीड़ से बाहर आया, दोनों हथेलियों के बीच रिवॉल्वर छिपाए गांधीजी को प्रणाम किया और फिर एक के बाद एक तीन गोलियां सीने पर चला दीं. 

गांधीजी नीचे गिर पड़े. उनके घाव से खून तेजी से बह रहा था. भगदड़ में उनका चश्मा और खड़ाऊ... न जाने कहां छिटक गए. गांधीजी को जल्दी से कमरे में लाया गया, लेकिन उनका निधन हो चुका था. उनका पार्थिव शरीर चटाई पर रखा था. आसपास भीड़ जमा थी. रात आंसुओं में बीती. गोली लगने के बाद गांधीजी जिस जगह गिरे थे, लोग वहां की मिट्टी उठाकर ले जाने लगे. वहां गड्ढा बन चुका था. कुछ देर बाद वहां गार्ड भी तैनात कर दिया गया.

मनुबेन और आभाबेन के साथ महात्मा गांधी. (फाइल फोटो-Getty Images)

गांधीजी की हत्या करने वाले नाथूराम गोडसे को पुलिस ने उसी समय पकड़ लिया था. भीड़ ने भी उसके सिर पर डंडे मारे. गोडसे कह रहा था, 'मुझे जो करना था, वो कर दिया.' 

गांधीजी की हत्या 30 जनवरी 1948 को हुई थी. लेकिन इसकी साजिश आजादी के कुछ महीने बाद से ही शुरू हो गई थी. गांधीजी की हत्या की तारीख 20 जनवरी तय हुई थी. लेकिन उस दिन हत्यारे नाकाम हो गए थे. 10 फरवरी 1949 को लाल किले में चलने वाली अदालत ने गांधी हत्याकांड पर फैसला सुनाया था. उस फैसले से समझिए हत्यारों ने इस पूरे हत्याकांड को कैसे अंजाम दिया गया? कौन-कौन था इसमें शामिल? पढ़ें- गांधी हत्याकांड की साजिश की वो कहानी... जिसने देश ही नहीं पूरी दुनिया को हिलाकर रख किया था. 

कैसे रची साजिश?

- नवंबर-दिसंबर 1947: 17 नवंबर को पूना में नारायण आप्टे और दिगंबर बड़गे की मुलाकात होती है. आप्टे ने बड़गे से हथियारों का बंदोबस्त करने को कहा. दिसंबर के आखिर में बड़गे शस्त्र भंडार जाकर हथियार देखता है और कहता है कि कुछ दिन में विष्णु करकरे आएगा.

- 9 जनवरी 1948: शाम 6 बजकर 30 मिनट पर नारायण आप्टे दिगंबर बड़गे के पास जाता है और बताता है कि शाम को विष्णु करकरे के साथ कुछ लोग आएंगे और हथियार देखेंगे.

- 9 जनवरी 1948: उसी दिन रात 8 बजकर 30 मिनट पर विष्णु करकरे तीन लोगों के साथ शस्त्र भंडार में जाता है. इन तीन लोगों में से एक मदनलाल पहवा था. बड़गे उसे हथियार दिखाता है, जिसमें गन कॉटन स्लैब और हैंड ग्रेनेड थे.

- 10 जनवरी 1948: सुबह 10 बजे नारायण आप्टे फिर से शस्त्र भंडार आता है और दिगंबर बड़गे को हिंदू राष्ट्र के दफ्तर लेकर जाता है. यहां उससे कहता है कि वो दो रिवॉल्वर, दो गन कॉटन स्लैब और पांच हैंड ग्रेनेड का इंतजाम करे. बड़गे बताता है कि उसके पास रिवॉल्वर नहीं है, लेकिन गन कॉटन स्लैब और हैंड ग्रेनेड की व्यवस्था कर देगा.

नारायण आप्टे और दिगंबर बड़गे. (फाइल फोटो-Getty Images)

- 14 जनवरी 1948: शाम की ट्रेन से नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे पूना से बॉम्बे आ गए. उसी दिन दिगंबर बड़गे और उसका नौकर शंकर किस्तैया भी बॉम्बे पहुंचे. वो अपने साथ दो गन कॉटन स्लैब और पांच हैंड ग्रेनेड लेकर आए थे. चारों सावरकर सदन में मिलते हैं. यहां से हथियार लेकर दीक्षितजी महाराज के घर जाते हैं और सामान रखकर वापस सावरकर सदन लौटते हैं.

- 15 जनवरी 1948: सुबह सवा सात बजे नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे ने 17 तारीख की बॉम्बे से दिल्ली की फ्लाइट की टिकट बुक करवाई. गोडसे ने 'डीएन करमरकर' और आप्टे ने 'एस. मराठे' नाम से टिकट ली. उसी दिन नारायण आप्टे, नाथूराम गोडसे, विष्णु करकरे, मदनलाल पहवा और दिगंबर बड़गे कार से दीक्षितजी महाराज के घर पहुंचे. यहां नारायण आप्टे ने सामान लेकर विष्णु करकरे को दिया और उससे कहा कि वो शाम की ट्रेन से मदनलाल को साथ लेकर दिल्ली पहुंचे.

- 16 जनवरी 1948: दिगंबर बड़गे और शंकर किस्तैया पूना आ गए. नाथूराम गोडसे भी पूना आ गया. बड़गे और किस्तैया हिंदू राष्ट्र के दफ्तर में गोडसे से मिलने पहुंचे. गोडसे ने बड़गे को छोटी पिस्टल दी और कहा कि इसके बदले में रिवॉल्वर दे.

- 17 जनवरी 1948: दिगंबर बड़गे और शंकर किस्तैया सुबह-सुबह बॉम्बे पहुंचे. दोनों अलग-अलग स्टेशन पर उतरे. बड़गे जाकर नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे से मिला. तीनों ने तीन अलग-अलग लोगों से 2100 रुपये जुटाए. इसके बाद तीनों ने शंकर किस्तैया को हिंदू महासभा के दफ्तर से उठाया और चारों सावरकर सदन पहुंचे. उसी शाम विष्णु करकरे और मदनलाल पहवा दिल्ली पहुंचे. शाम को अलग-अलग फ्लाइट से नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे भी दिल्ली के लिए निकल गए. दिगंबर बड़गे और शंकर किस्तैया भी ट्रेन से दिल्ली के लिए रवाना हो गए.

- 17 से 19 जनवरी 1948: दिल्ली पहुंचने के बाद विष्णु करकरे और मदनलाल पहवा शरीफ होटल में रुके. नाथूराम गोडसे ने 'एस. देशपांडे' और नारायण आप्टे ने 'एम. देशपांडे' के नाम से मरीना होटल में कमरा लिया. ट्रेन लेट होने की वजह से दिगंबर बड़गे और शंकर किस्तैया 19 जनवरी की रात दिल्ली पहुंचे. दोनों हिंदू महासभा के दफ्तर में रुके. वहां उनकी मुलाकात नाथूराम गोडसे के भाई गोपाल गोडसे से हुई.

महात्मा गांधी की हत्या की तारीख 20 जनवरी रखी गई थी. (फाइल फोटो- Getty Images)

20 जनवरी 1948 को क्या-क्या हुआ?

पहले बिरला हाउस की रेकी

- सुबह-सुबह नारायण आप्टे, विष्णु करकरे, दिगंबर बड़गे और शंकर किस्तैया बिरला हाउस पहुंचे. चारों ने बिरला हाउस की रेकी की और थोड़ी देर बाद बाहर आ गए.

- फिर पिछले गेट से अंदर घुसे. नारायण आप्टे ने उन्हें वो प्रार्थना स्थल दिखाया, जहां गांधीजी प्रार्थना करते थे. इसके अलावा खिड़की से वो जगह भी दिखाई जहां गांधीजी बैठा करते थे.

- फिर सब बाहर आ गए. नारायण आप्टे ने बिरला हाउस के दूसरे गेट की ओर इशारा कर कहा कि भीड़ का ध्यान भटकाने के लिए यहां पर गन कॉटन स्लैब से धमाका किया जाएगा. कुछ देर बाद चारों हिंदू महासभा भवन चले गए.

फिर रिवॉल्वर की टेस्टिंग

- हिंदू महासभा भवन पहुंचने के बाद नारायण आप्टे ने रिवॉल्वर की टेस्टिंग करने को कहा. ये दो रिवॉल्वर थीं. एक रिवॉल्वर गोपाल गोडसे से मिली थी और दूसरी का इंतजाम दिगंबर बड़गे ने किया था.

- इसके बाद नारायण आप्टे, गोपाल गोडसे, दिगंबर बड़गे और शंकर किस्तैया भवन के पीछे बने जंगल में गए. चारों ने बंदूक चलाकर देखी, लेकिन एक में दिक्कत आ रही थी.

- फिर चारों के साथ-साथ विष्णु करकरे और मदनलाल पहवा उस मरीना होटल पहुंचे, जहां नाथूराम गोडसे रुका था. यहां गोडसे ने कहा- 'ये आखिरी मौका है. काम पूरा होना चाहिए.' नाथूराम गोडसे के पास जाने से पहले उन्होंने गन कॉटन स्लैब और हैंड ग्रेनेड को फिट कर दिया था.

महात्मा गांधी हर रोज शाम पांच बजे प्रार्थना करने जाते थे. (Vani Gupta/India Today)

हथियारों का बंटवारा

- सारी प्लानिंग होने के बाद हथियारों का बंटवारा किया गया. दिगंबर बड़गे ने सुझाव दिया मदनलाल पहवा को एक गन कॉटन स्लैब और एक हैंड ग्रेनेड देना चाहिए.

- गोपाल गोडसे और विष्णु करकरे अपने पास एक-एक हैंड ग्रेनेड रखें. वहीं, उसने खुद और शंकर किस्तैया ने एक-एक रिवॉल्वर और हैंड ग्रेनेड रखा.

- बड़गे ने सुझाव दिया कि नारायण आप्टे और नाथूराम गोडसे सिग्नल दें. बड़गे के सुझाव को मान लिया गया.

- आप्टे ने सुझाव दिया कि सब एक-दूसरे को गलत नाम से पुकारेंगे. इस पर नाथूराम गोडसे ने 'देशपांडे', विष्णु करकरे ने 'ब्यास', नारायण आप्टे ने 'करमरकर', शंकर किस्तैया ने 'तुकाराम' और दिगंबर बड़गे ने 'बंडोपंत' नाम रखा.

हमले की वो नाकाम कोशिश...

- मरीना होटल से सबसे पहले विष्णु करकरे और मदनलाल पहवा निकले. थोड़ी देर बाद नारायण आप्टे, गोपाल गोडसे, शंकर किस्तैया और दिगंबर बड़गे निकले. आखिर में नाथूराम गोडसे निकला.

- विष्णु और मदनलाल बिरला हाउस पहुंच चुके थे. कुछ देर बाद वहां नारायण आप्टे, गोपाल गोडसे, दिगंबर बड़गे और शंकर किस्तैया भी पहुंच गए. वहां उन्हें पहले मदनलाल मिला. नारायण आप्टे ने मदनलाल से पूछा- 'तैयार है क्या?' इस पर उसने जवाब दिया कि वो तैयार है. मदनलाल ने बताया कि गन कॉटन स्लैब रख दिया गया है, बस उसे जलाना है. विष्णु करकरे प्रार्थना स्थल का जायजा ले रहा था. थोड़ी देर में नाथूराम गोडसे भी बिरला हाउस पहुंच गया.  

- बाद में नारायण आप्टे ने बड़गे से पूछा कि वो तैयार है? तो उसने कहा- हां वो तैयार है. आप्टे ने मदनलाल पहवा को कहा 'चलो' और वो वहां जाकर खड़ा हो गया जहां गन कॉटन स्लैब रखा था. विष्णु करकरे, दिगंबर बड़गे और शंकर किस्तैया प्रार्थना स्थल की ओर जाने लगे.

- बड़गे महात्मा गांधी के ठीक बगल में खड़ा हो गया. और उसके बगल में विष्णु और शंकर खड़े हो गए. तीन से चार मिनट बाद बिरला हाउस के पीछे जोरदार धमाका हुआ. धमाका होते ही नाथूराम गोडसे टैक्सी में बैठा और कहा- 'कार चालू करो.'

- कुछ देर बाद वहां भीड़ जमा हो गई, जहां धमाका हुआ था. एक व्यक्ति ने मदनलाल को पहचान लिया और पुलिस को बता दिया कि बम इसने ही लगाया था. मदनलाल पकड़ा गया. गांधीजी की हत्या की ये साजिश नाकाम हो गई.

बापू के हत्यारे. (फाइल फोटो- Getty Images)

20 से 30 जनवरी के बीच क्या-क्या हुआ?

- 21 जनवरी की सुबह नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे कानपुर पहुंचे. दोनों 22 तारीख तक रेलवे स्टेशन के रिटायरिंग रूम में ही ठहरे.

- 22 जनवरी को ही गोपाल गोडसे पूना पहुंचा और अपने दोस्त पांडुरंग गोडबोले को रिवॉल्वर और कारतूस छिपाने को दिए.

- 23 जनवरी को नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे बॉम्बे पहुंचे. यहां आर्यपथिक आश्रम में दोनों ने अलग-अलग कमरे लिए और अगले दिन तक रुके. 24 तारीख को दोनों एल्फिंस्टन होटल में शिफ्ट हो गए और 27 तक यहीं ठहरे.

- 25 जनवरी की सुबह गोडसे और आप्टे ने 27 तारीख की बॉम्बे से दिल्ली तक की फ्लाइट में टिकट बुक करवाई. इस बार भी गलत नाम बताए. गोडसे ने 'डी. नारायण' और आप्टे ने 'एन. विनायकराव' नाम से टिकट ली. 25 तारीख को ही किसी जीएम जोशी नाम के व्यक्ति के घर पर नारायण आप्टे, नाथूराम गोडसे, विष्णु करकरे और गोपाल गोडसे की मुलाकात हुई.

इसी रिवॉल्वर से महात्मा गांधी की हत्या की गई थी. (फाइल फोटो- Getty Images)

- 26 जनवरी की सुबह-सुबह नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे दादाजी महाराज और दीक्षितजी महाराज के घर पहुंचे. उन्होंने दोनों से रिवॉल्वर मांगी. हालांकि दादाजी महाराज और दीक्षितजी महाराज, दोनों ने उन्हें रिवॉल्वर देने से मना कर दिया.

- 27 जनवरी की सुबह नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे बॉम्बे से दिल्ली पहुंचे. उसी रात ट्रेन से ग्वालियर आए. 28 जनवरी की सुबह दोनों हिंदू महासभा के नेता डॉ. दत्तात्रेय परचुरे के घर गए. परचुरे के घर ही उनकी मुलाकात गंगाधर दंडवते से मुलाकात हुई, जिसने उन्हें रिवॉल्वर दिलाने में मदद की.

- 29 जनवरी की दोपहर को नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे दिल्ली पहुंचे. 30 जनवरी तक दोनों यही रुके रहे.

'गांधी हत्याकांड'

- 30 जनवरी 1948 को शाम पांच बज चुके थे. महात्मा गांधी अपने कमरे से निकलकर प्रार्थना स्थल जाने लगे. महात्मा गांधी हमेशा प्रार्थना स्थल पर समय से पहुंच जाते थे. लेकिन उस दिन थोड़ी देर हो गई थी.

- महात्मा गांधी आभाबेन और मनुबेन के कंधे पर हाथ रखकर तेजी से प्रार्थना स्थल की ओर बढ़ रहे थे. उनके साथ गुरबचन सिंह भी थे. रास्ते में गुरबचन सिंह किसी से बात करने में उलझ गए, लेकिन गांधीजी बढ़ते रहे.

उस दिन बापू प्रार्थना स्थल जाने में लेट हो गए थे. (फाइल फोटो-Getty Images)

- उस दिन एक और अजीब चीज हुई थी. आमतौर पर जब गांधीजी प्रार्थना स्थल जाते थे, तो एक-दो आदमी उनके आगे और एक-दो पीछे चलते थे. लेकिन उस दिन गांधीजी के आगे-पीछे कोई गार्ड नहीं था. गांधीजी जब प्रार्थना स्थल से थोड़ी दूरी पर थे तो भीड़ ने रास्ता दिया, ताकि वो वहां तक पहुंच सकें.

- गांधीजी आभाबेन और मनुबेन के कंधे पर हाथ रखकर चल ही रहे थे, तभी भीड़ से नाथूराम गोडसे निकला. उसने अपने दोनों हाथों में पिस्टल छिपा रखी थी. वो पैर छूने के बहाने गांधीजी के आगे झुका और फिर उठकर ताबड़तोड़ तीन गोलियां चला दीं. गांधीजी के मुंह से 'हे राम...' निकला और वो जमीन पर गिर पड़े.

- नाथूराम गोडसे को तुरंत पकड़ लिया गया. उसके पास से पिस्टल और कारतूस बरामद हुई. गंभीर रूप से घायल हो चुके गांधीजी को बिरला हाउस के एक कमरे में ले जाया गया, लेकिन वहां उनकी मौत हो गई.

महात्मा गांधी की पार्थिव देह. (फाइल फोटो- Getty Images)

नाथूराम गोडसे ने क्या कहा था?

'हां. ये सही है कि मैंने ही महात्मा गांधी पर पिस्टल से गोलियां चलाईं. मैं महात्मा गांधी के सामने खड़ा था. मैं उन पर दो गोलियां चलाना चाहता था, ताकि कोई और जख्मी न हो. मैंने अपनी हथेलियों में पिस्टल रखी थी और उन्हें प्रणाम किया. मैंने अपनी जैकेट के अंदर से ही पिस्टल का सेफ्टी कैच निकाल दिया था. मुझे लगता है कि मैंने दो गोलियां चलाईं. हालांकि, पता चला है कि मैंने तीन गोलियां चलाई थीं. जैसे ही मैंने गोली चलाई, कुछ देर के लिए वहां सन्नाटा छा गया. मैं भी एक्साइटेड हो गया था. मैंने चिल्लाया- 'पुलिस, पुलिस, आओ.' अमरनाथ आया और उसने मुझे पीछे से पकड़ लिया. कुछ कॉन्स्टेबल ने भी मुझे पकड़ लिया. भीड़ से कुछ लोगों ने मेरे हाथ से पिस्टल छीन ली थी. कोई था जिसने मुझे पीछे से सिर पर लाठी मारी थी. उसने मुझे दो-तीन बार लाठी मारी. मेरे सिर से खून बह रहा था. मैंने उनसे कहा कि मैं कहीं नहीं भागने वाला, भले ही वो मेरी खोपड़ी फोड़ दें. मुझे जो करना था, वो कर चुका था.'

नाथूराम गोडसे (Vani Gupta/India Today)

'पुलिस ने मुझे भीड़ से दूर ले जाने की कोशिश की. तभी मैंने देखा कि किसी के पास मेरी पिस्टल है. मैंने उससे कहा कि सेफ्टी कैच लगा लो, वरना उससे उसे खुद गोली लग सकती है या वो दूसरों को घायल कर सकता है. तब उसने मुझसे कहा कि वो मुझे उसी पिस्टल से मार डालेगा. मैंने उससे कहा कि अगर वो मुझे मार भी डालेगा, तो भी मुझे बुरा नहीं लगेगा. पुलिस ने उससे पिस्टल ले ली. महात्मा गांधी की मौत इसलिए हुई क्योंकि वो मेरी पिस्टल से चली गोली से घायल हुए.'

फिर आया फैसले का दिन...

तारीख- 10 फरवरी 1949. दिन- गुरुवार. जगह- दिल्ली का लाल किला. सुबह से ही भारी भीड़ थी. सुरक्षा भी तगड़ी थी. इसी दिन महात्मा गांधी की हत्या पर फैसला आना था. लाल किले के अंदर ही स्पेशल कोर्ट बनाई गई थी. 

11 बजकर 20 मिनट पर नाथूराम गोडसे और बाकी आरोपी कोर्ट रूम पहुंचे. दस मिनट पर बाद जज आत्माचरण भी पहुंच गए. जज ने सबसे पहले नाथूराम गोडसे का नाम पुकारा, वो खड़े हो गए. फिर बारी-बारी से सभी आरोपियों का नाम लिया. 

गांधी हत्याकांड में कुल 9 लोगों को आरोपी बनाया गया था. इनमें नाथूराम गोडसे, नारायण आप्टे, गोपाल गोडसे, विष्णु करकरे, मदनलाल पहवा, दत्तात्रेय परचुरे, दिगंबर बड़गे और उसका नौकर शंकर किस्तैया थे. विनायक दामोदर सावरकर भी आरोपी थे.

जज आत्माचरण ने आठ आरोपियों को दोषी करार दिया. नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को फांसी की सजा हुई. गोपाल गोडसे, विष्णु करकरे, मदनलाल पहवा, दत्तात्रेय परचुरे, दिगंबर बड़गे और शंकर किस्तैया को उम्रकैद की सजा मिली. सावरकर को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया.

स्पेशल कोर्ट के इस फैसले को पंजाब हाईकोर्ट में चुनौती दी गई. 21 जून 1949 में हाईकोर्ट ने अपना फैसला दिया. हाईकोर्ट ने शंकर किस्तैया और दत्तात्रेय परचुरे को रिहा कर दिया. नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे की फांसी की सजा बरकरार रखी. बाकी आरोपियों की उम्रकैद की सजा भी बरकरार रही.

नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को 15 नवंबर 1949 को अम्बाला की सेंट्रल जेल में फांसी दी गई. ये आजाद भारत की पहली फांसी थी.

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राजधानी दिल्ली के कई इलाकों में तेज बारिश, जानें आज कैसा रहेगा मौसम - NBT नवभारत टाइम्स (Navbharat Times)

थ्री-इडियट्स के 'रेंचो' हड्डियां गला देने वाली ठंड में अनशन पर बैठे, पुलिस पर लगाया नजरबंद करने का आरोप - Aaj Tak

लद्दाख के जिन सोनम वांगचुक के जीवन से प्रेरित होकर बॉलीवुड ने थ्री-इडियट्स जैसी सुपरहिट फिल्म बनाई. वह सोनम वांगचुक इन दिनों हड्डियां गला देने वाली ठंड में अनशन पर बैठे हुए हैं. अपने अनशन के दौरान उन्होंने पुलिस पर उन्हें नजरबंद करने का आरोप भी लगाया है. वांगचुक ने अपने अनशन की शुरुआत 26 जनवरी को की थी. पहले उन्होंने 18,380 फीट ऊंचे खारदुंग ला में भूख हड़ताल करने का ऐलान किया था. लेकिन उन्हें वहां अनशन करने की इजाजत नहीं दी गई.

वांगचुक ने ट्वीट कर एक बॉन्ड की कॉपी शेयर की. इसमें उनसे यह कहा गया है कि वह लेह में हाल की घटनाओं से संबंधित कोई टिप्पणी, बयान, सार्वजनिक भाषण, सार्वजनिक सभाओं में भाग नहीं लेंगे. उन्होंने आगे कहा कि लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश का प्रशासन चाहता है कि मैं इस बॉन्ड पर तब भी हस्ताक्षर करूं, जब मैं सिर्फ उपवास और प्रार्थना कर रहा हूं. उन्होंने लोगों से कहा कि वे उन्हें सलाह दें कि प्रशासन का ऐसा करना किस हद तक सही है? उन्होंने सोशल मीडिया पर दावा किया कि उन्हें नजरबंद किया गया और सही मायने में उनकी हालत नजरबंद से भी ज्यादा बद्तर है.

सोनम वांगचुक के आरोपों पर लेह के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक पी डी नित्या का बयान आया है. उन्होंने कहा कि वांगचुक खारदुंग ला दर्रे पर 5 दिन का उपवास रखने की अनुमति मांग रहे थे, लेकिन उन्हें अनुमति नहीं दी गई, क्योंकि वहां तापमान शून्य से 40 डिग्री सेल्सियस नीचे चला गया था. वांगचुक और उनके समर्थकों के लिए वहां जाना जोखिम भरा था. इसलिए पुलिस ने उनसे उनके इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव्स लद्दाख (एचआईएएल) परिसर में अनशन करने का अनुरोध किया गया.

बता दें कि सोनम वांगचुक ने मांग की है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भूमि, पारिस्थितिकी, संस्कृति और रोजगार की रक्षा के लिए उनकी मांगों पर चर्चा करने के लिए तुरंत लद्दाख के नेताओं की एक बैठक बुलाएं. सोनम ने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो शेयर कर अपना दर्द बयां किया. सोनम ने लद्दाख के लेफ्टिनेंट गवर्नर पर बड़े आरोप लगाए हैं. उनका दावा है कि प्रशासन के खिलाफ आवाज उठाने को लेकर उन्हें नजरबंद कर दिया गया है. वीडियो में वो आरोप लगा रहे हैं कि लद्दाख में सिर्फ एलजी की मनमानी चल रही है और पिछले तीन साल से कोई काम नहीं हो रहा है.

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थ्री-इडियट्स के 'रेंचो' हड्डियां गला देने वाली ठंड में अनशन पर बैठे, पुलिस पर लगाया नजरबंद करने का आरोप - Aaj Tak
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Arif Mohammad Khan: केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान की शिकायत, कहा- 'लोग मुझे हिन्दू क्यों - ABP न्यूज़

Arif Mohammad Khan: केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को बेबाकी से जवाब देने के लिए जाना जाता है. उन्होंने कहा है कि मुझे शिकायत है कि लोग मुझे हिंदू क्यों नहीं कहते हैं. दरअसल, वो तिरुवनंतपुरम में हिंदू कॉन्क्लेव में हिस्सा लेने के पहुंचे थे. इसी दौरान उन्होंने ये बात कही है. आर्य समाज के लोगों ने उनका सम्मान किया तो उन्होंने कहा कि वो आभारी हैं कि वो उनके योगदान का सम्मान करते हैं, लेकिन उनकी शिकायत है कि लोग उन्हें हिंदू क्यों नहीं कहते हैं.

हिंदी न्यूज वेबसाइट 'आज तक' की खबर के मुताबिक, इस दौरान हिंदू शब्द पर बात करते हुए उन्होंने ये भी कहा, “मुझे नहीं लगता कि हिंदू एक धार्मिक शब्द है, बल्कि ये एक भौगौलिक शब्द है. कोई भी जो भारत में पैदा हुआ है, कोई भी जो भारत में पैदा हुए अन्न का सेवन करता है, कोई भी जो भारत की नदियों का पानी पीता है, वो खुद को हिंदू कहने का हकदार है.” उन्होंने कहा कि लोगों को उनको हिंदू कहना चाहिए.

बीबीसी डॉक्यूमेंट्री पर आरिफ मोहम्मद खान

इसके अलावा, बीबीसी डॉक्यूमेंट्री विवाद को लेकर केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने प्रदर्शन कर रहे लोगों पर निशाना साधा है. उन्होंने कहा कि भारत दुनिया भर में अच्छा कर रहा है, इसलिए ये लोग निराशा महसूस कर रहे हैं. डॉक्यूमेंट्री बनाने वालों पर निशाना साधते हुए केरल के राज्यपाल ने कहा, “उन लोगों की मानसिकता निराशाजनक है, जो भविष्यवाणी कर रहे थे कि भारत टूट जाएगा लेकिन इसके विपरीत भारत दुनिया में अच्छा कर रहा है.”

आरिफ मोहम्मद खान ने आगे कहा “उन्होंने ब्रिटिश अत्याचारों पर कोई डॉक्यूमेंट्री क्यों नहीं बनाई. ब्रिटिश शासन पर कोई डॉक्यूमेंट्री क्यों नहीं बनाई गई? जब कलाकारों के हाथ काटे गए तो उन्होंने डॉक्यूमेंट्री क्यों नहीं बनाई? बीबीसी कहां था जब भारी-भारी टैक्स लगाए गए.”

बीबीसी डॉक्यूमेंट्री पर विवाद

बीबीसी की "इंडिया: द मोदी क्वेश्चन" डॉक्यूमेंट्री को लेकर बवाल मचा हुआ है. यह डॉक्यूमेंट्री गुजरात दंगा 2002 पर आधारित है. बीबीसी ने इसको लेकर एक सीरीज तैयार की है. इसका पहला और दूसरा पार्ट शेयर किया गया था. डॉक्यूमेंट्री में 2002 के गुजरात दंगे के समय की सरकार पर सवार खड़े किए गए हैं.

ये भी पढ़ें: 'हिंदी बोलने पर भी मिल जाता था फतवा, इस्लाम में इनकी...', केरल गवर्नर आरिफ मोहम्मद खान भड़के

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Saturday, January 28, 2023

Arif Mohammad Khan: केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान की शिकायत, कहा- 'लोग मुझे हिन्दू क्यों - ABP न्यूज़

Arif Mohammad Khan: केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को बेबाकी से जवाब देने के लिए जाना जाता है. उन्होंने कहा है कि मुझे शिकायत है कि लोग मुझे हिंदू क्यों नहीं कहते हैं. दरअसल, वो तिरुवनंतपुरम में हिंदू कॉन्क्लेव में हिस्सा लेने के पहुंचे थे. इसी दौरान उन्होंने ये बात कही है. आर्य समाज के लोगों ने उनका सम्मान किया तो उन्होंने कहा कि वो आभारी हैं कि वो उनके योगदान का सम्मान करते हैं, लेकिन उनकी शिकायत है कि लोग उन्हें हिंदू क्यों नहीं कहते हैं.

हिंदी न्यूज वेबसाइट 'आज तक' की खबर के मुताबिक, इस दौरान हिंदू शब्द पर बात करते हुए उन्होंने ये भी कहा, “मुझे नहीं लगता कि हिंदू एक धार्मिक शब्द है, बल्कि ये एक भौगौलिक शब्द है. कोई भी जो भारत में पैदा हुआ है, कोई भी जो भारत में पैदा हुए अन्न का सेवन करता है, कोई भी जो भारत की नदियों का पानी पीता है, वो खुद को हिंदू कहने का हकदार है.” उन्होंने कहा कि लोगों को उनको हिंदू कहना चाहिए.

बीबीसी डॉक्यूमेंट्री पर आरिफ मोहम्मद खान

इसके अलावा, बीबीसी डॉक्यूमेंट्री विवाद को लेकर केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने प्रदर्शन कर रहे लोगों पर निशाना साधा है. उन्होंने कहा कि भारत दुनिया भर में अच्छा कर रहा है, इसलिए ये लोग निराशा महसूस कर रहे हैं. डॉक्यूमेंट्री बनाने वालों पर निशाना साधते हुए केरल के राज्यपाल ने कहा, “उन लोगों की मानसिकता निराशाजनक है, जो भविष्यवाणी कर रहे थे कि भारत टूट जाएगा लेकिन इसके विपरीत भारत दुनिया में अच्छा कर रहा है.”

आरिफ मोहम्मद खान ने आगे कहा “उन्होंने ब्रिटिश अत्याचारों पर कोई डॉक्यूमेंट्री क्यों नहीं बनाई. ब्रिटिश शासन पर कोई डॉक्यूमेंट्री क्यों नहीं बनाई गई? जब कलाकारों के हाथ काटे गए तो उन्होंने डॉक्यूमेंट्री क्यों नहीं बनाई? बीबीसी कहां था जब भारी-भारी टैक्स लगाए गए.”

बीबीसी डॉक्यूमेंट्री पर विवाद

बीबीसी की "इंडिया: द मोदी क्वेश्चन" डॉक्यूमेंट्री को लेकर बवाल मचा हुआ है. यह डॉक्यूमेंट्री गुजरात दंगा 2002 पर आधारित है. बीबीसी ने इसको लेकर एक सीरीज तैयार की है. इसका पहला और दूसरा पार्ट शेयर किया गया था. डॉक्यूमेंट्री में 2002 के गुजरात दंगे के समय की सरकार पर सवार खड़े किए गए हैं.

ये भी पढ़ें: 'हिंदी बोलने पर भी मिल जाता था फतवा, इस्लाम में इनकी...', केरल गवर्नर आरिफ मोहम्मद खान भड़के

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Gauhati High Court 'Decourts' Lawyer Outside HC Premises Who Came To Court Wearing 'Jeans-Pant' - Live Law - Indian Legal News

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Friday, January 27, 2023

Adani Group Share Fall: सिर्फ एक रिपोर्ट से डूबे अडानी के अरबों रुपए, निवेशकों में मचा हाहाकार! - Zee News

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Wednesday, January 25, 2023

6 जांबाजों को कीर्ति चक्र, 15 को शौर्य सम्मान... गणतंत्र दिवस पर 412 वीरता पुरस्कारों का ऐलान - Aaj Tak

गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर वीरता पुरुस्कार का ऐलान कर दिया गया है. 412 जाबाजों को सम्मानित किया गया है. 6 जांबाजों को कीर्ति चक्र, 15 को शौर्य चक्र दिया गया है. हर साल इसी तरह गणतंत्र दिवस से पहले राष्ट्रपति द्वारा वीरता पुरुस्कार दिए जाते हैं. जिन्हें इस बार वीरता पुरुस्कार से सम्मानित किया गया है, वो नाम इस प्रकार से हैं-

कीर्ति चक्र

1. मेजर शुभांग, डोगरा

2. एनके जितेंद्र सिंह, राजपूत

शौर्य चक्र

1. मेजर अदित्य भदौरिया, कुमाऊं

2. कैप्टन अरुण कुमार, कुमाऊं

3. युद्धवीर सिंह, मेकेनिकल INF

4. कैप्टन राजेश टीआर, पैरा (SF)

5. एनके जसबीर सिंह, JAK RIF (POSTHUMOUS)

6. विकास चौधरी, JAK RIF

जानकारी के लिए बता दें कि इस साल CRPF के जांबाजों को सबसे ज्यादा वीरता पुरुस्कार मिले हैं. 48 पुलिस मेडल CRPF जवानों को दिए गए हैं. इसके अलावा 14 पुलिस मेडल ऑफ गैलेंट्री भी बांटे गए हैं. वहीं इन पुरस्कारों के साथ 29 परम विशिष्ट सेवा मेडल दिए गए हैं, 3 उत्तम युद्ध सेवा मेडल, 32 अति विशिष्ट सेवा मेडल, 8 युवा सेवा मेडल, 92 सेना मेडल, 79 विशिष्ट सेवा मेडल दिए गए हैं. बार टू विशिष्ट सेवा मेडल भी 2 जांबाजों को दिया गया है. दिवंगत कमांडर निशांत सिंह को नवंबर 2020 में मिग-29के विमान दुर्घटना में अपने प्रशिक्षु पायलट की जान बचाने के लिए नौसेना पदक (शौर्य) (मरणोपरांत) से सम्मानित किया गया.

अब हर सम्मान का अपना महत्व है, अपनी कहानी है. शौर्य चक्र की बात करें तो दुश्मन का डंट कर सामना करने के लिए यह सम्मान जीवित या मृत योद्धा को दिया जाता है. यह सम्मान थल, वायु या नौसेना के किसी भी पुरुष या महिला को, या फिर किसी रिजर्व बल, टेरिटोरियल आर्मी के जवान को उसकी बहादुरी के लिए मिल सकता है. इसके अलावा आर्म्ड फोर्सेस की नर्सिंग सर्विस को भी यह सम्मान दिया जाता है.

कीर्ति चक्र तीनों सेनाओं के उन जवानों, आर्म्ड फोर्सेस की मेडिकल टीम या रिजर्व बल, टेरिटोरियल आर्मी आदि के जवानों को दिया जाता है जो जब दुश्मन के सामने बहादुरी दिखाते हैं. वहीं बहादुरी की सारी सीमाएं पार करके दुश्मन को मौत के घाट उतारने वाले या फिर किसी युद्ध का दिशा बदलने वाले 'परमवीर' योद्धाओं को यह सम्मान दिया जाता है. इस मेडल पर चार 'इंद्र के वज्र' बने होते हैं.

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Tuesday, January 24, 2023

Monday, January 23, 2023

महाराष्ट्र: भगत सिंह कोश्यारी ने राज्यपाल पद से हटने की इच्छा जताई, पीएम मोदी से कही ये बात - Aaj Tak

महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी जल्द ही अपने पद से इस्तीफा दे सकते हैं. उनकी तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने ये इच्छा जाहिर कर दी गई है. उन्होंने कहा है कि वे अपनी आगे की जिंदगी पढ़ने, लिखने में लगाना चाहते हैं. वे हर तरह की राजनीतिक जिम्मेदारियों से मुक्ति चाहते हैं. 

जारी बयान में भगत सिंह कोश्यारी ने कहा है कि ये बहुत सम्मान की बात थी कि मुझे महाराष्ट्र के राज्यपाल के तौर पर सेवा करने का मौका मिला. उस महाराष्ट्र का जो संतों, सामाजिक कार्यकर्ताओं की भूमि है. पिछले तीन सालों में मुझे महाराष्ट्र की जनता से जो प्यार मिला है, मैं वो कभी नहीं भूल सकता हूं. कोश्यारी ने इस बात की भी जानकारी दी कि वे अपनी इन इच्छाओं के बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात कर चुके हैं. जब पीएम मोदी मुंबई दौरे पर आए थे, उनकी तरफ से साफ कहा गया था कि वे राजनीतिक जिम्मेदारियों से मुक्त होना चाहते हैं. 

कोश्यारी की इस इच्छा पर उद्धव गुट की शिवसेना की तरफ से प्रतिक्रिया आ गई है. सांसद विनायक राउत ने कहा है कि कोश्यारी को पीएम के बजाय राष्ट्रपति को अपना इस्तीफा भेजना चाहिए था. अच्छी बात है कि उन्हें खुद इस बात का अहसास हो गया है.

विवादों से पुराना नाता, कई बार लाए सियासी भूचाल

अब राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी का यूं इस्तीफा देने की बात करना कई लोगों को हैरान कर गया है. महाराष्ट्र की वर्तमान राजनीति जिस तरह की चल रही है, भगत सिंह कोश्यारी का विवादों से नाता मजबूत होता गया है. इन विवादों की शुरुआत सवित्रि बाई फुले पुणे यूनिवर्सिटी में हुए एक कार्यक्रम से शुरू हो गई थी. उस कार्यक्रम में कोश्यारी ने महात्मा ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले के बाल विवाह को लेकर एक विवादित बयान दिया था. उसके बाद छत्रपति शिवाजी महाराज को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी गई थी. इसके अलावा गुजराती और मराठी समुदाय को लेकर भी उन्होंने अजीबोगरीब बात कह दी थी.

इन्हीं सब बयानों की वजह से उद्धव ठाकरे और दूसरी विपक्षी पार्टियां तो लगातार राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी का इस्तीफा चाहती थीं. बीजेपी की तरफ से खुलकर इस पर कुछ नहीं कहा गया, लेकिन जमीन पर चुनौती बढ़ती जा रही थी. अब उस चुनौती के बीच ही खुद भगत सिंह कोश्यारी ने इस्तीफा देने की बात कर दी है. अब सरकार इस पर क्या रुख रखती है, शिंदे सरकार क्या प्रतिक्रिया देती है, इस पर नजर रहेगी. वैसे बयानों के अलावा भगत सिंह कोश्यारी के कुछ फैसलों ने भी सियासी भूचाल लाने का काम किया था.

कई फैसलों पर बवाल, बयान भी विवादित

फिर चाहे 2019 में देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार को शपथ दिलवाना रहा हो या फिर हर बार महा विकास अघाड़ी की सरकार के साथ उनकी तकरार. कोरोना काल में जब मंदिरों को खोलने का मुद्दा गरमाया था तब राज्यपाल ने खुद उद्धव को चिट्ठी लिख एक नया विवाद खड़ा कर दिया था. कहा गया था कि क्या उद्धव सेकुलर बन गए हैं? उनकी उस प्रकार की बयानबाजी ने हर बार नए विवाद को जन्म दिया था. अब भगत सिंह कोश्यारी क्या सही में इस्तीफा देते हैं या नहीं, ये आने वाले दिनों में साफ हो जाएगा.

 

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महाराष्ट्र: भगत सिंह कोश्यारी ने राज्यपाल पद से हटने की इच्छा जताई, पीएम मोदी से कही ये बात - Aaj Tak
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Breaking News Live: असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा बोले- राज्य में जल्द बाल विवाह के खिलाफ बड़े पैमाने प - ABP न्यूज़

Breaking News Live Updates 23 January' 2023: बागेश्वर बाबा धीरेंद्र शास्त्री पर छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल ने कहा कि ऐसे चमत्कार नहीं दिखाना चाहिए, यह जादूगरों का काम है. ऋषि-मुनियों ने इससे रोका है. शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का बागेश्वर बाबा पर एक बार फिर हमला बोला है, अगर इतने ही चमत्कारी हैं बाबा तो हमारे मकान मठ में दरार आ गई है उसे जोड़ दें.

दरअसल, धीरेंद्र शास्त्री को लगातार विरोधियों का सामना करना पड़ रहा है. एक के बाद एक लोग उन्हें खुली चुनौती दे रहे हैं. तो वहीं, कई लोग उन्हें ढोंगी बता रहे हैं. इसी कड़ी में कांग्रेस नेता गोविंद सिंह ने बागेश्वर बाबा पर निशाना साधते हुए कहा, बाबा अगर वाकई में चमत्कारी हैं तो मध्यप्रदेश के ऊपर जो साढ़े चार लाख करोड़ का कर्जा है उसे कागजों में समाप्त कर दें.

आज जम्मू पहुंचेगी भारत जोड़ो यात्रा

कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा आज जम्मू जिले में प्रवेश करेगी. राहुल गांधी जम्मू के सतवारी इलाके में एक जनसभा को संबोधित करेंगे. राहुल आज नरवाल से होते हुए जाएंगे जहां शनिवार को दो धमाके हुए थे. इसके साथ ही राहुल गांधी सिद्धरा इलाके में रात गुजारेंगे जहां 28 दिसंबर को चार आतंकियों को ट्रक में मार गिराया गया था. 

जोशीमठ संकट

उत्तराखंड के जोशीमठ में दरार वाले मकानों की संख्या बढ़कर 863 हुई अब 181 घर असुरक्षित घोषित हुए. कुछ इमारतों के ध्वस्तीकरण का काम जारी है. वहीं, टिहरी में घरों में दरारें आईं हैं. लैणीं भिलंग गांव के 70 परिवारों पर संकट मंडरा रहा है. कई परिवार पलायन, ग्रामीणों ने सरकार पर सर्वे के बाद भी विस्थापन ना करवाने का आरोप लगा चुके हैं.

सुभाष चंद्र बोस की जयंती

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आज 126वीं जयंती है. इस मौके पर आज पीएम मोदी नेताजी को श्रद्धांजलि देंगे. सुबह साढ़े 10 बजे संसद भवन में कार्यक्रम होगा. लोकसभा अध्यक्ष ओमबिरला समेत दोनों सदनों के कई सांसद मौजूद रहेंगे.

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Sunday, January 22, 2023

लखनऊ-कानपुर हाइवे पर बड़ा हादसा, कार के ऊपर पलटा डंपर, अब तक तीन की मौत - Aaj Tak

उत्तर प्रदेश के लखनऊ-कानपुर हाइवे पर एक दिल दहला देने वाली घटना हुई है. तेज रफ्तार डंपर ने कार को टक्कर मारते हुए हाइवे किनारे खड़े 6 राहगीरों को रौंद दिया. इस हादसे में तीन लोगों की मौत हो गई जबकि 6 से ज्यादा लोगों की हालत गंभीर है. 

कार से टक्कर के बाद डंपर कार के ऊपर ही पलट गया जिससे वहां चीख पुकार मच गई. राहगीर घायलों की मदद के लिए दौड़े लेकिन तब तक तीन लोग अपनी जान गंवा चुके थे. हादसे की सूचना मिलने पर पुलिस क्रेन के साथ मौके पर पहुंची.

अभी भी कार में 4 से 5 लोग फंसे हुए हैं जिन्हें क्रेन की मदद से बाहर निकालने की कोशिश हो रही है. मौके पर भारी पुलिस बल मौजूद है. पुलिस ने घायलों को इलाज के लिए जिला अस्पताल भेजा है.

ASP शशिशेखर सिंह खुद घटनास्थल पर मौजूद हैं और  रेस्क्यू ऑपरेशन का जायजा ले रहे हैं. यह घटना उन्नाव के अचलगंज थाना क्षेत्र के लखनऊ- कानपुर हाईवे पर आजाद मार्ग चौराहे के पास हुई.
 

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लखनऊ-कानपुर हाइवे पर बड़ा हादसा, कार के ऊपर पलटा डंपर, अब तक तीन की मौत - Aaj Tak
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सुप्रीम कोर्ट के फैसलों की कॉपी हिंदी में भी: CJI बोले- जल्द ही दूसरी भाषाओं में भी कोर्ट के फैसले मिलेंगे;... - Dainik Bhaskar

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नई दिल्लीएक घंटा पहले

चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि AI ट्रांसलेशन के इस्तेमाल से गांवों के लोगों को कोर्ट के फैसले समझने में आसानी होगी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने CJI डीवाई चंद्रचूड़ की सराहना की है। CJI ने कहा था कि जल्द ही सुप्रीम कोर्ट के फैसलों की कॉपी हिंदी समेत देश की अन्य भाषाओं में मिलने लगेंगी। इसे लेकर पीएम मोदी ने कहा कि यह बहुत अच्छा विचार है, जिससे खासतौर पर युवाओं समेत कई लोगों को मदद मिलेगी।

शनिवार को मुंबई में काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र एंड गोवा (BCMG) के कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचे CJI ने कोर्ट के फैसलों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के जरिए दूसरी भाषाओं में ट्रांसलेट करने के संकेत दिए थे। उन्होंने कहा कि इससे गांवों में रहने वाले लोगों को उनकी भाषा में फैसलों की जानकारी आसानी से मिल सकेगी। उन्होंने पहले कहा था- कोर्ट पेपरलेस हो, यह मेरा मिशन है।

सिस्टम की खामियां ढंकें नहीं, सामने लाएं- CJI
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हमें अपने सिस्टम की खामियों को ढंकने की जरूरत नहीं है। हमें इसे सामने लाकर इसकी मरम्मत करने की कोशिश करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि कोर्ट से जुड़ी सूचनाएं मिलने में आने वाली परेशानियां दूर करने के लिए तकनीक के इस्तेमाल पर जोर दिया।

चीफ जस्टिस ने कोर्ट की कार्यवाही की लाइव-स्ट्रीमिंग पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि कानून में रुचि रखने वाले टीचर्स और स्टूडेंट्स लाइव-स्ट्रीमिंग के जरिए कोई भी केस देख सकते हैं, उसे समझ सकते हैं और उस पर चर्चा कर सकते हैं। जब आप लाइव किसी मुद्दे पर चर्चा करते हैं, तो पता चलता है कि समाज में कितना अन्याय हो रहा है।

अदालती सिस्टम लोगों के लिए, यह उनसे ऊपर नहीं
CJI ने कहा कि देश का अदालती सिस्टम लोगों के लिए बनाया गया है और सिस्टम व्यक्ति के ऊपर नहीं हो सकता है। उन्होंने कार्यक्रम में पहुंचे युवा वकीलों को संबोधित करते हुए कहा कि मैं कामना करूंगा आप ऊंची उड़ान भरें और अपने सपने साकार करें।

अवसर खास लोगों के लिए न हों, सबको मौका देना जरूरी
कोर्ट में सोशल गैदरिंग पर जोर देते हुए CJI ने कहा- युवा और नए वकीलों को जितने ज्यादा मौके दिए जाएंगे, वकालत का पेशा उतना ही समृद्ध होगा। हमें अवसर को कुछ खास लोगों तक ही सीमित नहीं रखना चाहिए, इसके लिए हाशिए पर पड़े समुदाय के वकीलों को मौका देना जरूरी है। उन्होंने कहा- मैं सुप्रीम कोर्ट में रोज आधा घंटा युवा वकीलों को सुनता हूं, इससे देश की नब्ज का पता चलता है।

CJI ने बार के न्यूज-व्यूज चैनल की शुरुआत की
जस्टिस चंद्रचूड BCMG के न्यूज-व्यूज चैनल की भी शुरुआत की। न्यूज-व्यूज देश का पहला बार काउंसिल न्यूज चैनल है। उन्होंने युवा वकीलों के लिए BCMG की तरफ से तैयार सिविल और क्रिमिनल प्रैक्टिस हैंडबुक का भी विमोचन किया। 50 हजार युवा वकीलों को इस हैंडबुक की कॉपी फ्री में उपलब्ध कराई जाएगी।

CJI डीवाई चंद्रचूड़ से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें...

लोकतंत्र में कोई भी संस्था परफेक्ट नहीं:कानून मंत्री के सामने कॉलेजियम पर बोले CJI चंद्रचूड़

कॉलेजियम सिस्टम पर उठ रहे सवालों के बीच चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि लोकतंत्र में कोई भी संस्था परफेक्ट नहीं होती। हमें मौजूदा व्यवस्था के भीतर ही काम करना पड़ता है। न्यायाधीश वफादार सैनिक होते हैं जो संविधान लागू करते हैं। यह बातें उन्होंने पिछले साल संविधान दिवस की पूर्व संध्या पर कही थी। जस्टिस चंद्रचूड़ जब कॉलेजियम को लेकर अपनी बात रख रहे थे, तब कानून मंत्री किरेन रिजिजू भी वहां मौजूद थे। पूरी खबर यहां पढ़ें...

POCSO एक्ट के तहत सहमति की उम्र पर चर्चा जरूरी:CJI चंद्रचूड़ बोले- कानून मानता है नाबालिगों के बीच रजामंदी नहीं हो सकती

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायपालिका को POCSO एक्ट के तहत कंसेंट (सहमति) की उम्र कम करने को लेकर चल रही बहस पर ध्यान देना चाहिए। नई दिल्ली में प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफेन्सेस (POCSO) एक्ट पर हुए कार्यक्रम में उन्होंने यह बात कही। पूरी खबर यहां पढ़ें...

CJI बोले- मैंने भी मूनलाइटिंग की:20-22 साल की उम्र में रेडियो शो होस्ट किया, तब वकील भी था

देश में मूनलाइटिंग को लेकर चल रही बहस के बीच CJI जस्टिस चंद्रचूड़ ने भी मूनलाइटिंग करने की बात स्वीकार की है। पिछले हफ्ते गोवा को एक कार्यक्रम में देश के मुख्य न्यायाधीश ने बताया कि 20-22 साल की उम्र में वे मूनलाइटिंग करते थे। पूरी खबर यहां पढ़ें...

CJI चंद्रचूड़ का अहम बयान:कहा- गंभीर अपराधों में जमानत देने से हिचकते हैं डिस्ट्रिक्ट जज, इनको टारगेट किए जाने का डर

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया​​​ डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि डिस्ट्रिक्ट जज हीनियस क्राइम (जघन्य अपराध) में जमानत देने से हिचकते हैं। यही वजह है कि हाईकोर्ट्स में जमानत याचिकाओं की बाढ़ आ रही है। यह बात उन्होंने बार काउंसिल ऑफ इंडिया की तरफ से किए सम्मान समारोह के दौरान कही। इस दौरान कानून मंत्री किरेन रिजिजू भी मौजूद थे। पूरी खबर यहां पढ़ें...

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सुप्रीम कोर्ट के फैसलों की कॉपी हिंदी में भी: CJI बोले- जल्द ही दूसरी भाषाओं में भी कोर्ट के फैसले मिलेंगे;... - Dainik Bhaskar
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Saturday, January 21, 2023

Wrestlers Protest: एक्शन में खेल मंत्रालय, WFI के कामकाज पर लगाई रोक, अतिरिक्त सचिव भी सस्पेंड - ABP न्यूज़

"छिपा हुआ एजेंडा" : पहलवानों के #MeToo आरोपों पर कुश्ती संघ का पलटवार - NDTV India

नई दिल्ली:

ओलंपिक पदक विजेता बजरंग पुनिया समेत देश कई पहलवानों का दिल्ली के जंतर-मंतर पर चल रहा धरना प्रदर्शन अब खत्म हो गया है. पहलवानों ने खेल मंत्री अनुराग ठाकुर से मिले आश्वासन के बाद अपना धरना खत्म किया है. धरने पर बैठे पहलवानों का आरोप था कि WFI ने अपने मनमानें नियमों से पहलवानों का उत्पड़ीन कर रहा है. कुछ पहलवानों ने WFI के अध्यक्ष पर #Meetoo का आरोप भी लगाया है. अब इन सब के बीच WFI ने पलटवार किया है. शनिवार को WFI की तरफ से खेल मंत्री लिखे पत्र में पहलवानों द्वार लगाए गए #MeToo के आरोपों को छिपा हुआ एजेंडा और व्यक्तिगत रंजिश बताया है. 

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WFI की तरफ से खेल एवं युवा मामले के मंत्रालय को लिखे पत्र में कहा है कि ये प्रदर्शन पहलवानों की बेहतरी के लिए नहीं हो रहा है. ये सिर्फ इसलिए किया जा रहा है क्योंकि इसके पीछे एक छिपी हुई मंशा है. और ये सब सिर्फ WFI के ऊपर प्रेशर बनाने के लिए किया जा रहा है. बता दें कि WFI के खिलाफ दिल्ली में जंतर-मंतर पर बीते तीन दिनों से विनेश फोगाट, बजरंग पुनिया, रवि दहिया, दीपक पुनिया और साक्षी मलिक धरना दे रहे हैं. 

गौरतलब है कि भारतीय कुश्ती महासंघ (WFI) के चीफ बृजभूषण सिंह और पहलवानों के बीच जारी विवाद के बीच शुक्रवार को खेल मंत्री अनुराग ठाकुर के सरकारी आवास पर 7 घंटे तक मीटिंग हुई. इस मीटिंग में पूरे मामले की जांच के लिए एक कमेटी बनाने का फैसला लिया गया है. ये कमेटी 4 हफ्ते में जांच करके रिपोर्ट देगी. जब तक कमेटी की जांच पूरी नहीं होती, तब तक बृजभूषण सिंह कुश्ती संघ के अध्यक्ष के तौर पर दैनिक कार्यों से खुद को अलग रखेंगे. अनुराग ठाकुर के आश्वासन के बाद पहलवानों की तरफ से बजरंग पुनिया ने जंतर-मंतर पर धरना खत्म करने का ऐलान किया.

अनुराग ठाकुर के आश्वासन के बाद बजरंग पुनिया ने कहा कि हम खेल मंत्री का शुक्रिया करते हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने भी हमारे खेल का बहुत साथ दिया है. हमने मजबूरी में ये कदम उठाया है. हमें कमिटी पर भरोसा है. कमेटी की रिपोर्ट आने तक खिलाड़ी जंतर-मंतर पर धरने पर नहीं बैठेंगे.

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IMD Weather Alert: पहाड़ों पर बर्फबारी, दिल्ली-पंजाब में बारिश... गणतंत्र दिवस से पहले फिर बदलेगा मौसम - Aaj Tak

पहाड़ों पर बर्फबारी का दौर शुरू होने के साथ ही पर्यटक भारी तादात में बर्फ का आनंद लेने पहुंच रहे हैं. पहाड़ों की रानी शिमला समेत कुफरी, फागू, नारकंडा, खड़ा पत्थर, चौपाल में बर्फबारी का सिलसिला जारी है. ताजा बर्फबारी के बाद तापमान में भी भारी गिरावट दर्ज की जा रही है. शिमला का न्यूनतम तापमान शून्य के आस-पास बना हुआ है. दरअसल, पश्चिमी विक्षोभ यानी वेस्टर्न डिस्टर्बेंस के सक्रिय होने की वजह से मौसम का मिजाज बदला है. जिसका असर आगामी 26 जनवरी तक देखने को मिलेगा.

उत्तर भारत को अगले एक हफ्ते तक शीतलहर से राहत रहने वाली है. हालांकि, इस बीच उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में बारिश और पहाड़ी राज्यों में बर्फबारी देखने को मिलेगी. वहीं, 23 और 24 जनवरी, 2023 को पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र में छिटपुट ओलावृष्टि की भी संभावना है. इसके अलावा 23 से 26 जनवरी के बीच पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़, उत्तरी राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी बारिश होने के आसार नजर आ रहे हैं.

दिल्ली के मौसम पर क्या है अपेडट? 
देश की राजधानी दिल्ली में आज यानी 21 जनवरी को न्यूनतम तापमान 10 डिग्री और अधिकतम तापमान 23 डिग्री तक दर्ज किया जा सकता है. IMD की मानें तो दिल्ली में सोमवार से बारिश का दौर जारी हो जाएगा. सोमवार और मंगलवार को दिल्ली में हल्की बारिश रहेगी, लेकिन, बुधवार और गुरुवार को ठीक-ठाक बारिश होने का पूर्वानुमान है. 

कितना रहेगा दिल्ली का तापमान?

Delhi Weather Update
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उत्तर प्रदेश में कैसा रहेगा मौसम? 
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में न्यूनतम तापमान 10 डिग्री और अधिकतम तापमान 23 डिग्री दर्ज किया जा सकता है. वहीं, यहां सुबह और शाम के वक्त कोहरा रहने के आसार हैं. लखनऊ में 24 जनवरी से बारिश की गतिविधियां देखी जा सकती हैं. गाजियाबाद की बात करें तो यहां आज न्यूनतम तापमान 9 डिग्री और अधिकतम तापमान 22 डिग्री दर्ज किया जा सकता है. हालांकि, गाजियाबाद को आज कोहरे से राहत रहेगी. 

पहाड़ों पर बर्फबारी
उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, लद्दाख में बर्फबारी देखने को मिल रही है. मौसम विभाग की मानें तो अभी इस बर्फबारी का दौर जारी रहेगा. मौसम विभाग ने जो जानकारी दी है, उसके मुताबिक, उत्तराखंड में 23 जनवरी को  कई इलाकों में हल्की बारिश हो सकती है. वहीं, 24 जनवरी को राज्य के कई इलाकों में हल्की से मध्यम बारिश या बर्फबारी हो सकती है और 25 जनवरी को इसमें फिर कमी दर्ज हो सकती है. 

जम्मू-कश्मीर में 21 जनवरी को कुछ इलाकों में हल्की बारिश या बर्फबारी की संभावना है. वहीं, 22 जनवरी को अधिकतर जगहों पर हल्की बारिश या बर्फबारी हो सकती है. 23 और 24 जनवरी से ये गतिविधियां तेज हो सकती हैं. IMD की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक, 22 जनवरी से पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय हो रहा है, जिससे हिमाचल प्रदेश में भारी बर्फबारी होने की आशंका जताई गई है.


 

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IMD Weather Alert: पहाड़ों पर बर्फबारी, दिल्ली-पंजाब में बारिश... गणतंत्र दिवस से पहले फिर बदलेगा मौसम - Aaj Tak
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Nettaru Murder Case: भारत को 24 साल में इस्लामिक मुल्क बनाने का खतरनाक प्लान! PFI का भंडाफोड़; नेत्तारू क... - Zee News Hindi

NIA Investigation: कर्नाटक (Karnataka) के प्रवीण नेत्तारू मर्डर केस (Praveen Nettaru Murder Case) में एनआईए (NIA) ने बड़ी कार्रवाई की है. एनआईए ने इस मामले में 20 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दायर कर दी है. 26 जुलाई, 2022 को दक्षिण कन्नड़ के बेल्लारे में बीजेपी युवा मोर्चा (BJYM) के कार्यकर्ता प्रवीण नेत्तारू की उनकी ही दुकान के सामने हत्या कर दी गई थी. बाइक सवारों ने प्रवीण नेत्तारू पर चाकुओं से हमला किया था. प्रवीण नेत्तारू मर्डर केस की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) कर रही है और अब तक कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं.

2047 तक भारत में इस्लामिक शासन का एजेंडा!

बता दें कि प्रवीण नेत्तारू मर्डर मामले की जांच में इस हत्या के पीछे पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (Popular Front of India) का हाथ होने की बात सामने आई. एनआईए ने इस केस में फरार आरोपियों के सिर पर ईनाम की घोषणा भी की है. एनआईए की जांच में पीएफआई का एजेंडा भी सामने आया, जिसमें भारत को अगले 24 साल यानी 2047 तक इस्लामिक मुल्क बनाने की बात भी शामिल है.

पीएफआई ने बनाया किलर स्क्वॉड!

जांच में पता चला कि पीएफआई ने आतंक फैलाने, सांप्रदायिक नफरत और अशांति पैदा करने के अपने एजेंडे के तहत व 2047 तक भारत में इस्लामिक शासन स्थापित करने के अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए, दुश्मनों की हत्याओं को अंजाम देने के लिए सर्विस टीम या किलर स्क्वॉड नामक गुप्त टीमों का गठन किया.

आरोपियों के सिर पर इनाम घोषित

गौरतलब है कि हाल ही में प्रवीण नेत्तारू मर्डर केस के दो आरोपियों के सिर पर एनआईए ने 5-5 लाख रुपये इनाम की घोषणा की. एनआईए ने इस केस में आरोपी 53 साल के मोहम्मद शरीफ और 40 साल के मसूद के बारे में सूचना देने वाले 5 लाख रुपये इनाम में देने का ऐलान किया. जानकारी के मुताबिक, इन दोनों आरोपियों का संबंध प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) के सदस्य थे.

बता दें कि इससे पहले नवंबर, 2022 में एनआईए ने 4 संदिग्ध कोडागु के मडिकेरी के एमएच तुफैल, बेल्लारे के एस. मोहम्मद मुस्तफा, बेल्लारे के अबूबकर सिद्दीक और कल्लुमुत्लुमाने के एमआर उमर फारूक पर कुल 14 लाख के इनाम का ऐलान किया था.

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Friday, January 20, 2023

फ्लाइट में पेशाब केस-एअर इंडिया पर 30 लाख जुर्माना: पायलट 3 महीने के लिए सस्पेंड, आरोपी के वकील बोले- 4 मही... - Dainik Bhaskar

नई दिल्लीएक घंटा पहले

आरोपी शंकर मिश्रा को एयरलाइन ने दोषी पाया और उस पर भी 4 महीने का बैन लगाया गया है। - फाइल फोटो

एअर इंडिया की फ्लाइट में हुए पेशाब कांड में DGCA ने एयरलाइंस पर 30 लाख का जुर्माना लगाया है। न्यूज एजेंसी ANI के मुताबिक, DGCA ने पायलट का लाइसेंस 3 महीने के लिए सस्पेंड कर दिया है। इस बीच आरोपी शंकर मिश्रा के वकील ने कहा कि उनके मुअक्किल पर लगाया गया 4 महीने का बैन गलत है।

दरअसल, इस मामले की जांच के लिए एअर इंडिया ने एक कमेटी बनाई थी, जिसने शंकर के एयरलाइंस में ट्रैवल करने पर 4 महीने के लिए बैन लगा दिया था।

कमेटी के फैसले के खिलाफ एक्शन लेंगे- आरोपी के वकील
आरोपी शंकर मिश्रा के वकील अक्षत बाजपेई ने एयरलाइंस के इस फैसले पर नाराजगी जताई है। अक्षत ने कहा कि उनके मुअक्किल शंकर कमेटी के फैसले से असहमत है। हम इसके खिलाफ एक्शन लेंगे। जांच कमेटी ने गलती से मान लिया कि बिजनेस क्लास में सीट 9B थी, जबकि क्राफ्ट के बिजनेस क्लास में कोई सीट 9B ही नहीं है। फ्लाइट में सिर्फ 9A और 9C सीट हैं। हो सकता है कि समिति ने उस सीट की कल्पना की हो और ये मान लिया हो कि हमारे मुअक्किल ने वहां पेशाब की।

इस मामले में अब तक क्या हुआ?

26 नवंबर: एअर इंडिया की न्यूयॉर्क-दिल्ली फ्लाइट में आरोपी ने बुजुर्ग महिला के ऊपर पेशाब की। इस घटना पर एयरलाइन ने कोई एक्शन नहीं लिया।

28 दिसंबर: एयरलाइन ने दिल्ली पुलिस में FIR कराई। यह कार्रवाई तब हुई जब पीड़ित बुजुर्ग महिला ने टाटा ग्रुप के चेयरमैन से शिकायत की। हालांकि यह सामने नहीं आया कि पीड़ित ने टाटा ग्रुप के चेयरमैन को पत्र लिखा।

28 दिसंबर से 4 जनवरी: इस दौरान पुलिस आरोपी को तलाशती रही, लेकिन कामयाबी नहीं मिली।

4 जनवरी: यह खबर मीडिया और सोशल मीडिया में वायरल हुई।

5 जनवरी: मुंबई में कुर्ला स्थित आरोपी के घर पर दिल्ली पुलिस पहुंची। यहां पुलिस को आरोपी और उसका परिवार नहीं मिला। घर पर काम करने वाली मेड संगीता मिली। उसने बताया कि इस घर में 3 बच्चे एक महिला के साथ रहते हैं। वह परिवार के सदस्यों का नाम नहीं जानती, लेकिन लास्ट नेम मिश्रा है।

6 जनवरी: आरोपी शंकर मिश्रा वेल्स फार्गो एंड कंपनी में काम करता था। कंपनी ने नौकरी से निकाल दिया। कंपनी ने कहा- हम प्रोफेशनल बिहेवियर के हायर स्टैंडर्ड पर काम करते हैं। हमारे कर्मचारी की ऐसी हरकत माफी के काबिल नहीं है। दिल्ली पुलिस ने आरोपी के खिलाफ लुक आउट सर्कुलर (LOC) जारी किया था और उसके गायब होने की जानकारी वेल्स फार्गो कंपनी के अमेरिका स्थित कानूनी विभाग को भेजी थी। आरोपी को बेंगलुरु से गिरफ्तार किया गया।

7 जनवरी: आरोपी शंकर मिश्रा को बेंगलुरु से दिल्ली लाया गया। उसे कोर्ट में पेश किया गया, जहां से कोर्ट ने उसे 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।

आरोपी के पिता ने भी कहा था- बेटा थका हुआ था

यह तस्वीर आरोपी शंकर मिश्रा के पिता श्याम मिश्रा की है। उन्होंने बेटे पर लगे आरोपों पर सफाई देते हुए कहा कि मुमकिन है उसे ब्लैकमेल किया जा रहा हो।

यह तस्वीर आरोपी शंकर मिश्रा के पिता श्याम मिश्रा की है। उन्होंने बेटे पर लगे आरोपों पर सफाई देते हुए कहा कि मुमकिन है उसे ब्लैकमेल किया जा रहा हो।

उधर, आरोपी शंकर मिश्रा के पिता श्याम मिश्रा भी बेटे पर लगे आरोपों पर सफाई दे चुके हैं। उन्होंने कहा था कि मेरे बेटे पर लगाए गए सभी आरोप फर्जी हैं। पीड़ित ने मुआवजा मांगा था, हमने वो भी दे दिया, फिर पता नहीं क्या हुआ। शायद महिला की मांग कुछ और रही होगी जो पूरी नहीं हो सकी, इसीलिए वह नाराज है। मुमकिन है कि उसे ब्लैकमेल करने के लिए ऐसा किया जा रहा हो।

आरोपी के पिता ने कहा कि शंकर थका हुआ था। वह दो दिनों से सोया नहीं था। फ्लाइट में उसे ड्रिंक दी गई थी, जिसे पीकर वह सो गया। जब वह जागा तो एयरलाइन स्टाफ ने उससे पूछताछ की। मेरा बेटा सभ्य है और ऐसा कुछ नहीं कर सकता।

फ्लाइट में महिला पर पेशाब करने के मामले से जुड़ी अन्य खबरें भी पढ़ें...
एअर इंडिया पेशाब कांड में आरोपी को न्यायिक हिरासत, 14 दिन के लिए जेल भेजा

एयर इंडिया के क्रू मेंबर्स पूछताछ के लिए IGI थाने पहुंच चुके हैं।

एयर इंडिया के क्रू मेंबर्स पूछताछ के लिए IGI थाने पहुंच चुके हैं।

एअर इंडिया की फ्लाइट में बुजुर्ग महिला पर दूसरे यात्री के पेशाब करने के मामले में एयरलाइंस के CEO कैंपबेल विल्सन ने माफी मांगी है। कैंपबेल ने बयान जारी करते हुए उन्होंने कहा- एअर इंडिया ऐसे मामलों को लेकर चिंतित है, जहां यात्रियों को उनके सहयात्रियों की बुरी हरकत के कारण परेशान होना पड़े। हमें इन घटनाओं पर पछतावा और दुख है। पढ़ें पूरी खबर...

एअर इंडिया फ्लाइट में महिला पर पेशाब की दूसरी घटना, पेरिस-दिल्ली उड़ान में नशे में था आरोपी

एअर इंडिया की एक और फ्लाइट में महिला यात्री के ऊपर पेशाब करने का मामला सामने आया है। यह घटना पहले वाली घटना के 10 दिन बाद 6 दिसंबर को हुई थी। मामला अब सामने आया है। यह फ्लाइट पेरिस से दिल्ली आ रही थी। एयरलाइन का कहना है कि आरोपी ने लिखित माफी मांग ली थी, इसलिए उस पर एक्शन नहीं लिया गया। पूरी खबर पढ़ें....

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Thursday, January 19, 2023

जातिगत जनगणना: संविधान का उल्लंघन या वक़्त की ज़रूरत, जानिए अहम सवालों के जवाब - BBC हिंदी

  • राघवेंद्र राव
  • बीबीसी संवाददाता

बिहार जातिगत जनगणना सुप्रीम कोर्ट

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बिहार में जातिगत सर्वेक्षण कराने का फ़ैसला पिछले साल जून में में हुआ था. इसके बाद इस साल 7 जनवरी को बिहार सरकार ने राज्य में सर्वे की प्रक्रिया की शुरुआत कर दी.

दो चरणों में की जा रही इस प्रक्रिया का पहला चरण 31 मई तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है. इसके दूसरे चरण में बिहार में रहने वाले लोगों की जाति, उप-जाति और सामाजिक-आर्थिक स्थिति से जुड़ी जानकारियाँ जुटाई जाएँगी.

लेकिन बिहार में की जा रही जातिगत सर्वे को चुनौती देती हुई एक जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई है जिस पर पहली सुनवाई 20 जनवरी को मुक़र्रर की गई है.

इस जनहित याचिका में बिहार में की जा रही जातिगत सर्वे को रद्द करने की मांग की गई है.

याचिकाकर्ता का कहना है कि बिहार में हो रही ये प्रक्रिया संविधान के मूल ढाँचे का उल्लंघन है क्योंकि जनगणना का विषय संविधान की सातवीं अनुसूची की पहली सूची में आता है और इसलिए इस तरह की जनगणना को कराने का अधिकार केवल केंद्र सरकार को है.

इस जनहित याचिका में ये भी कहा गया है कि 1948 के जनगणना क़ानून में जातिगत जनगणना करवाने का कोई प्रावधान नहीं है.

बिहार जातिगत जनगणना सुप्रीम कोर्ट

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जातिगत जनगणना का इतिहास

भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान जनगणना करने की शुरुआत साल 1872 में की गई थी. अंग्रेज़ों ने साल 1931 तक जितनी बार भी भारत की जनगणना कराई, उसमें जाति से जुड़ी जानकारी को भी दर्ज़ किया गया.

आज़ादी हासिल करने के बाद भारत ने जब साल 1951 में पहली बार जनगणना की, तो केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से जुड़े लोगों को जाति के नाम पर वर्गीकृत किया गया.

तब से लेकर भारत सरकार ने एक नीतिगत फ़ैसले के तहत जातिगत जनगणना से परहेज़ किया और सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मसले से जुड़े मामलों में दोहराया कि क़ानून के हिसाब से जातिगत जनगणना नहीं की जा सकती, क्योंकि संविधान जनसंख्या को मानता है, जाति या धर्म को नहीं.

हालात तब बदले जब 1980 के दशक में कई क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का उदय हुआ जिनकी राजनीति जाति पर आधारित थी.

इन दलों ने राजनीति में तथाकथित ऊंची जातियों के वर्चस्व को चुनौती देने के साथ-साथ तथाकथित निचली जातियों को सरकारी शिक्षण संस्थानों और नौकरियों में आरक्षण दिए जाने को लेकर अभियान शुरू किया.

साल 1979 में भारत सरकार ने सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ी जातियों को आरक्षण देने के मसले पर मंडल कमीशन का गठन किया था.

मंडल कमीशन ने ओबीसी श्रेणी के लोगों को आरक्षण देने की सिफ़ारिश की. लेकिन इस सिफ़ारिश को 1990 में ही जाकर लागू किया जा सका. इसके बाद देश भर में सामान्य श्रेणी के छात्रों ने उग्र विरोध प्रदर्शन किए.

चूंकि जातिगत जनगणना का मामला आरक्षण से जुड़ चुका था, इसलिए समय-समय पर राजनीतिक दल इसकी मांग उठाने लग गए. आख़िरकार साल 2010 में जब एक बड़ी संख्या में सांसदों ने जातिगत जनगणना की मांग की, तो तत्कालीन कांग्रेस सरकार को इसके लिए राज़ी होना पड़ा.

2011 में सामाजिक आर्थिक जातिगत जनगणना करवाई तो गई, लेकिन इस प्रक्रिया में हासिल किए गए जाति से जुड़े आंकड़े कभी सार्वजानिक नहीं किए गए.

इसी तरह साल 2015 में कर्नाटक में जातिगत जनगणना करवाई गई. लेकिन इसमें हासिल किए गए आंकड़े भी कभी सार्वजानिक

नहीं किए गए.

बिहार जातिगत जनगणना सुप्रीम कोर्ट

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2011 की जातिगत जनगणना के आँकड़े सार्वजानिक क्यों नहीं?

जुलाई 2022 में केंद्र सरकार ने संसद में बताया कि 2011 में की गई सामाजिक आर्थिक जातिगत जनगणना में हासिल किए गए जातिगत आंकड़ों को जारी करने की कोई योजना नहीं है.

इसके कुछ ही महीने पहले साल 2021 में एक अन्य मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में दायर एक शपथ पत्र में केंद्र ने कहा था कि 'साल 2011 में जो सामाजिक आर्थिक और जातिगत जनगणना करवाई गई, उसमें कई कमियां थीं. इसमें जो आंकड़े हासिल हुए थे वे ग़लतियों से भरे और अनुपयोगी थे.'

केंद्र का कहना था कि जहां भारत में 1931 में हुई पहली जनगणना में देश में कुल जातियों की संख्या 4,147 थी वहीं 2011 में हुई जाति जनगणना के बाद देश में जो कुल जातियों की संख्या निकली वो 46 लाख से भी ज़्यादा थी.

2011 में की गई जातिगत जनगणना में मिले आंकड़ों में से महाराष्ट्र की मिसाल देते हुए केंद्र ने कहा कि जहां महाराष्ट्र में आधिकारिक तौर पर अधिसूचित जाति, जनजाति और ओबीसी में आने वाली जातियों कि संख्या 494 थी, वहीं 2011 में हुई जातिगत जनगणना में इस राज्य में कुल जातियों की संख्या 4,28,677 पाई गई.

साथ ही केंद्र सरकार का कहना था कि जातिगत जनगणना करवाना प्रशासनिक रूप से कठिन है.

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प्रोफ़ेसर सतीश देशपांडे दिल्ली विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र पढ़ाते हैं और एक जाने माने समाजशास्त्री हैं.

सतीश देशपांडे बताते हैं, "राष्ट्रीय स्तर पर जातिगत जनगणना तो देर सवेर होनी ही है, लेकिन सवाल ये है कि इसे कब तक रोका जा सकता है. राज्य कई तरह की अपेक्षाओं के साथ ये जातिगत जनगणना कर रहे हैं. कभी-कभी जब उनकी राजनीतिक अपेक्षाएं सही नहीं उतरती हैं, तो कई बार इस तरह की जनगणना से मिले आंकड़ों को सार्वजानिक नहीं किया जाता है."

कर्नाटक में की गई जातिगत जनगणना का उदाहरण देते हुए वे कहते हैं, "ये जातिगत जनगणना काफी शिद्दत से की गई. तकनीकी तौर पर ये अच्छी जनगणना थी. लेकिन उसके आंकड़े अभी तक सार्वजानिक नहीं हुए हैं. ये मामला राजनीतिक दांव-पेंच में अटक गया. किसी गुट को लगता है उसे फ़ायदा होगा और किसी अन्य गुट को लगता है कि उनका नुक़सान हो जाएगा."

इलाहाबाद स्थित गोविंद बल्लभ पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान में कार्यरत प्रोफ़ेसर बद्रीनारायण कहते हैं, "जो पार्टियां जातिगत जनगणना करके भी उसके आंकड़े सामने नहीं लाती हैं, तो उसकी वजह या तो कोई भय होगा या आंकड़ों में रहा कोई अधूरापन होगा. बहुत सारी जातियों ने जो सोशल मोबिलिटी ने हासिल की है, उनकी श्रेणियों को निर्धारित करना इतना आसान भी नहीं है. बहुत सारे विवादों से बचने के लिए भी शायद आंकड़े सामने नहीं लाये जाते होंगे."

प्रोफ़ेसर देशपांडे के मुताबिक़, ये कहना मुश्किल है कि आगे क्या होगा "लेकिन जातिगत जनगणना की मांग एक जायज़ मांग है और इस पर अमल किया जाना चाहिए".

वे कहते हैं, "जातिगत जनगणना करवाने में जो तकनीकी अवरोध बताये जाते हैं वो सिर्फ़ अटकलबाज़ी है. जटिल चीज़ों की गणना हमारे सेन्सस के लिए कोई नई बात नहीं है. तकनीकी तौर पर ये पूरी तरह से संभव है. साल 2001 में सेन्सस कमिश्नर रहे डॉक्टर विजयानून्नी ने बड़े साफ़ तौर पर कहा है कि जो जनगणना करने का तंत्र है वो इस तरह की जनगणना करने में सक्षम है."

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क्या होंगे जातिगत जनगणना के लाभ?

जातिगत जनगणना के पक्ष में और उसके ख़िलाफ़ कई तरह के तर्क दिए जाते रहे हैं.

इसके पक्ष में सबसे बड़ा तर्क ये दिया जाता है कि इस तरह की जनगणना करवाने से जो आंकड़े मिलेंगे उन्हें आधार बना कर सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ समाज के उन तबक़ों तक पहुँचाया जा सकेगा, जिन्हें उनकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है.

प्रोफ़ेसर देशपांडे कहते हैं, "एक तर्क ये है कि जातिगत जनगणना का फ़ायदा ये होगा कि कल्याणकारी योजनाओं के लिए आंकड़े उपलब्ध होंगे तो उनके लिए तैयारी बेहतर तरीक़े से की जा सकती है. ये तर्क कहाँ तक कारगर होगा ये देखना पड़ेगा क्योंकि ये लाज़िमी नहीं है कि आंकड़ों का होना कल्याणकारी कार्यक्रमों में इज़ाफ़ा करता है या उनके क्रियान्वयन को बेहतर बनाता है."

प्रोफ़ेसर देशपांडे के मुताबिक़, जातिगत जनगणना होने से जो आंकड़े सामने आएंगे उनसे "ये तथ्य सामने आएंगे कि किसकी कितनी संख्या है और समाज के संसाधनों में किसकी कितनी हिस्सेदारी है".

वे कहते हैं, "तो इसमें अगर विषमता सामने आती है तो इसका सामने आना हमारे समाज के लिए अच्छा है. भले ही फ़ौरी तौर पर हमारी समस्याएं बढ़ेंगी और राजनीतिक असंतोष फ़ैल सकता है, लेकिन लम्बे दौर में ये समाज के स्वास्थ्य के लिए बहुत ज़रूरी है. जितनी जल्दी हम इसका सामना करते हैं उतना हमारे समाज के लिए अच्छा होगा."

प्रोफ़ेसर देशपांडे का ये भी कहना है कि आज जाति को लेकर दो बड़ी समस्याएँ हैं जो एक-दूसरे से जुड़ी हैं.

वे कहते हैं, "एक तो ये कि जिन जातियों को जाति व्यवस्था से सबसे अधिक फ़ायदा हुआ है, यानी कथित ऊँची जातियाँ, उनकी गिनती नहीं हुई है. इन्हें आंकडों के मामले में गुमनामी का वरदान मिला हुआ है. दूसरी समस्या यह है कि इसी तबक़े के सबसे संपन्न और दबंग यह ख़ुशफ़हमी पाले हुए हैं कि उनकी कोई जाति नहीं है, और वह अब जाति से ऊपर उठ चुके हैं."

वे कहते हैं कि "जब जनगणना जैसे औपचारिक और राजतंत्र के ज़रिये किए गए सर्वेक्षण में सबसे पूछा जाएगा कि आपकी जाति क्या है, तो ये धारणा लोगों के मन में आएगी कि समाज की नज़रों में सबकी जाति होती है".

उनके मुताबिक़ "मनोवैज्ञानिक या सांस्कृतिक ही सही, ये एक बहुत बड़ा फ़ायदा होगा. साथ ही यह भी साफ़ दिख पड़ेगा कि उच्च-जातीय तबक़ा वास्तव में अल्पसंख्यक तबक़ा है."

बिहार जातिगत जनगणना सुप्रीम कोर्ट

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जातिगत जनगणना से क्या है डर?

अगस्त 2018 में केंद्र सरकार ने 2021 में की जाने वाली जनगणना की तैयारियों का विवरण देते हुए कहा था, कि इस जनगणना में "पहली बार ओबीसी पर डेटा एकत्र करने की भी परिकल्पना की गई है".

लेकिन बाद में केंद्र सरकार ने इस बात से किनारा कर लिया.

प्रोफ़ेसर देशपांडे कहते हैं, "केंद्र में जब भी कोई सरकार आती है, तो वो अपना हाथ खींच लेती है. और जब वो विपक्ष में होती है तो वो जातिगत जनगणना के पक्ष में बोलती है. ऐसा बीजेपी के साथ भी हुआ और कांग्रेस के साथ भी हुआ."

जातिगत जनगणना की बात आते ही अक्सर बहुत सी चिंताएं और सवाल भी उठे खड़े होते हैं. इनमें से एक बड़ी चिंता ये है कि जातिगत जनगणना से जो आंकड़े मिलेंगे उनके आधार पर देश भर में आरक्षण की नई मांगें उठनी शुरू हो जाएँगी.

हालाँकि विश्लेषकों का ये भी कहना है कि आरक्षण की जो पचास प्रतिशत की सीमा तय की गई है, उसे सुप्रीम कोर्ट ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण के मामले में सुनाये गए फ़ैसले में दरकिनार कर दिया है.

प्रोफ़ेसर बद्री नारायण कहते हैं "अगर जातिगत जनगणना करवाने के पक्ष में ये तर्क दिया जाता है कि इससे सामाजिक लोकतंत्र मज़बूत होगा, तो ये सवाल भी उठाया जाता है कि इस तरह की जनगणना करवाने से जो सामाजिक विभाजन होगा, उनसे कैसे निपटा जायेगा?

विपक्ष का तर्क ये है कि जातिगत जनगणना से एकजुटता मज़बूत होगी और लोगों को लोकतंत्र में हिस्सेदारी मिलेगी. लेकिन इस बात का डर सबको है कि इससे समाज में एक जातिगत ध्रुवीकरण बढ़ सकता है. इससे समाज में लोगों के आपसी सम्बन्ध प्रभावित हो सकते हैं."

जातिगत जनगणना को लेकर क्या है बीजेपी की बड़ी चिंता?

विश्लेषकों की मानें तो जातिगत जनगणना में जहाँ क्षेत्रीय राजनीतिक दलों को राजनीतिक फ़ायदा नज़र आ रहा है वहीं बीजेपी को उतना ही नुक़सान.

प्रोफ़ेसर बद्री नारायण कहते हैं, "बीजेपी ख़ुद को सबको साथ लेकर चलने वाली पार्टी के रूप में पेश करती है. ऐसे में वो हर ऐसे मुद्दे को नहीं उठाना चाहेगी, जिससे समाज का कोई भी वर्ग उसके ख़िलाफ़ हो जाये. बीजेपी इस मुद्दे को सीधी तरह नकार भी नहीं सकती. इसलिए वो एक बीच का रास्ता अपनाती है."

उनके मुताबिक़, बीजेपी की चिंता ये है कि अगर जातिगत जनगणना की वजह से हिन्दू समाज और ज़्यादा जातियों में बंट जाता है तो इसका उसे घाटा होगा.

वे कहते हैं, "वहीं दूसरी तरफ क्षेत्रीय दलों की पूरी राजनीति ही जातिगत ध्रुवीकरण पर आधारित होती है. उन्हें लगता है कि अगर जातिगत जनगणना की वजह से समाज और ज़्यादा जातियों में बंटता है तो इसका उन्हें राजनीतिक फ़ायदा मिलेगा."

बिहार जातिगत जनगणना सुप्रीम कोर्ट

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प्रोफ़ेसर सतीश देशपांडे का भी कुछ ऐसा ही मानना है.

वे कहते हैं, "बीजेपी का सारा कार्यक्रम हिन्दू एकता पर निर्भर है. इसलिए हिन्दू एकता पर ज़ोर देना उनके लिए लाज़िमी है. वो हिन्दू नामक एकमुश्त पहचान जो वो बनाना चाहते हैं, उसमें जाति दरार पैदा करेगी और इससे उन्हें नुक़सान होगा."

लेकिन प्रोफ़ेसर देशपांडे का ये भी कहना है कि जिस तरह की मज़बूत स्थिति में बीजेपी इस समय है, उसके चलते वो जातिगत जनगणना करवाने का फ़ैसला ले भी सकती है.

वे कहते हैं, "मेरे ख़्याल से बीजेपी को असुविधा तो ज़रूर होगी, लेकिन मौजूदा हालात में उनके सामने जब कोई प्रतिद्वंद्वी नहीं है तो उनका आत्मविश्वास शायद चरम सीमा पर हो. और इसी तरह के समय में वो इस तरह का जोख़िम उठा सकती है. अगर बीजेपी दूरदर्शिता दिखाए तो वो ये जोख़िम उठा सकती है."

क्या भारत को जातिगत जनगणना की ज़रूरत है?

तो बड़ा सवाल यही है कि क्या भारत को जातिगत जनगणना करवाने की ज़रूरत है?

कई समाजशास्त्री और राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि समाज में जाति को अगर ख़त्म करना है, तो जाति की वजह से मिल रहे विशेषाधिकारों को पहले ख़त्म करना होगा. साथ ही वंचित वर्गों की भी पहचान करनी होगी.

ये तभी किया जा सकता है जब सभी जातियों के बारे में सटीक जानकारी और आंकड़े उपलब्ध हों. ये सिर्फ़ एक जातिगत जनगणना से ही हासिल हो पाएगा.

दूसरी तरफ़ ये तर्क तो है ही कि सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का असल फ़ायदा उन लोगों तक पहुँचाना ज़रूरी है, जो अब तक इससे वंचित हैं. जातिगत जनगणना ही एक ऐसा ज़रिया है, जो ये सुनिश्चित करने में मदद कर सकता है.

तीसरी बात है शिक्षण संस्थानों और नौकरियों में दिए जा रहे आरक्षण का दायरा और बढ़ाने की. ये काम करने के लिए भी जाति से जुड़े विश्वसनीय आंकड़ों की ज़रूरत है, जो सिर्फ़ एक जातिगत जनगणना ही उपलब्ध करवा सकती है.

प्रोफ़ेसर देशपांडे कहते हैं कि "जातिगत जनगणना का होना लाज़िमी है, क्योंकि जाति के आंकड़े सामने आने ही चाहिए."

वहीं दूसरे तरफ प्रोफ़ेसर बद्री नारायण का मानना है कि इस तरह की जनगणना करवाना एक सही क़दम नहीं होगा.

वे कहते हैं, "भारत का लोकतंत्र इतना आगे पहुँच चुका है कि मुझे नहीं लगता कि जातिगत जनगणना जैसी क़वायद करके उसे फिर से पीछे ले जाने की ज़रूरत है."

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