मध्यप्रदेश7 घंटे पहलेलेखक: राजेश शर्मा
मध्यप्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में मादा चीता 'साशा' की मौत हो गई। वह किडनी की बीमारी से पीड़ित थी। 'साशा' नामीबिया से लाए गए 8 चीतों में शामिल थी। दैनिक भास्कर ने साउथ अफ्रीका में प्रिटोरिया यूनिवर्सिटी के वन्यजीव चिकित्सा विशेषज्ञ एड्रियन टॉर्डिफ से बात की। उन्होंने चीते की मौत की असल वजह बताई। टॉर्डिफ के मुताबिक मादा चीता की मौत दो महीने पहले से तय थी। चिंता वाली बात ये है कि कूनो में मौजूद 19 चीतों में से दो और चीतों पर भी खतरा मंडरा रहा है। उन्हें भी किडनी की बीमारी की आशंका है।
करीब 70 साल बाद विदेशी सरजमीं से 8 चीते भारत लाए गए थे। नामीबिया ने ये चीते भारत को तोहफे में दिए थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 17 सितंबर को अपने बर्थडे पर इन्हें कूनो नेशनल पार्क में छोड़ा था। हाल ही में दक्षिण अफ्रीका से 12 चीतों की दूसरी खेप कूनो लाई गई थी।
मादा चीता की किडनी हुई फेल
एड्रियन टॉर्डिफ ने बताया कि मादा चीता की मौत क्रोनिक किडनी फेलियर की वजह से हुई। यह रोग नामीबिया में डेढ़ महीने बड़े पिंजरे में कैद रहने के कारण हुआ है। यह बिल्कुल भी अप्रत्याशित नहीं है। जब वह बीमार हुई थी, तब मैंने फॉरेस्ट अफसरों से कहा था कि वह कुछ महीनों से ज्यादा जीवित नहीं रह पाएगी।
'साशा' की मौत से जुड़े सवालों में पूरी वजह...
दैनिक भास्कर- मादा चीता को किडनी की बीमारी पहले हुई या बाद में?
कूनो नेशनल पार्क के अफसरों का कहना है कि जिस मादा चीते की मौत हुई है, उसे भारत लाने के पहले से ही किडनी (गुर्दे) की बीमारी थी। इसके जवाब में डॉ. एड्रियन टॉर्डिफ ने कहा- हां, इसकी बहुत संभावना है। चीतों में किडनी की बीमारी पुरानी समस्या है। आशंका है कि जब वह नामीबिया में थी, तब उसे एक समस्या थी। भारत स्थानांतरण से पहले इसका पता नहीं चला था। हालांकि, उसकी पुष्टि के लिए पोस्टमॉर्टम किया जाना चाहिए।
भास्कर- क्या साउथ आफ्रीका और नामीबिया में चीतों की ऐसी बीमारी से मौतें होती हैं?
एड्रियन टॉर्डिफ- इस तरह की बीमारी हो सकती है। नामीबिया में पिंजरे में काफी समय बिताया है। ऐसे 2 चीते और हैं, जिन्हें यह बीमारी हो सकती है। मुझे नहीं लगता कि नामीबिया या दक्षिण अफ्रीका के किसी भी अन्य जंगली चीते को इस बीमारी का खतरा है। क्योंकि यह बीमारी सामान्यत: उन बिल्लियों व चीतों में होती है, जिन्होंने कैद में वर्षों बिताए हैं।
भास्कर- अन्य 2 चीतों को भी यही बीमारी होने की कितनी आशंका है? उन्हें बचाने के लिए क्या इलाज है?
एड्रियन टॉर्डिफ - मुझे लगता है कि अन्य दो चीतों के लिए जोखिम अपेक्षाकृत कम है। क्योंकि वे दोनों शिकार कर रहे हैं। शवों को (सभी हड्डियों और त्वचा, आंतरिक अंगों और रक्त के साथ) खा रहे हैं। जो इस बीमारी के जोखिम को कम कर देंगे, लेकिन इसे दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि यदि पहले से ही उनकी किडनी डैमेज हों।
इन्हें बचाने के लिए कुछ विशेष परीक्षण होते हैं, जो जानवरों में लक्षण विकसित होने से पहले समस्या का पता लगाने के लिए किए जा सकते हैं। अब समस्या यह है कि ऐसा कुछ भी नहीं किया जा सकता है, जो एक बार किडनी को हुए नुकसान को ठीक करने के लिए किया जा सके।
नामीबिया से 17 सितंबर को कूनो में 8 चीते लाए गए थे।
भास्कर- कैद में रहने वाले चीतों को ही यह बीमारी क्यों होती है?
एड्रियन टॉर्डिफ - यह बीमारी समय से अधिक कैद में भोजन देने से संबंधित है। पिंजरे में कैद चीतों को अक्सर बिना त्वचा, हड्डियों और आंतरिक अंगों का ज्यादा मांस खिलाया जाता है। इससे कई तरह की समस्याएं होती हैं।
भास्कर- क्या चीतों की बीमारी के लिए विशेषज्ञ चिकित्सक होते हैं। भारत में एक्सपर्ट हैं?
एड्रियन टॉर्डिफ - डॉ. सनथ मुलिया हैं, जिन्हें भारत में चीता प्रोजेक्ट के लिए अनुबंधित किया गया था, उन्हें बड़ी बिल्लियों का काफी अनुभव है। दक्षिण अफ्रीका में कुछ विशेषज्ञ हैं। फिर दुनियाभर के चिड़ियाघरों में कुछ पशु चिकित्सक हैं, जिन्हें इस स्थिति का अनुभव है। क्या चीतों की देखभाल के लिए आपको भारत फिर से बुलाया गया है? इस पर वे कहते हैं कि मुझे भारत जाने के लिए नहीं कहा गया है। हां, अफ्रीकी चीतों को बाड़े से जंगल में छोड़ा जाएगा, तब मुझे या डॉ. माइक टॉफ्ट को भारत आने के लिए कह सकते हैं।
सीसीएफ के 58 हजार हेक्टेयर के प्राइवेट रिजर्व में थी 'साशा'
भारत आई मादा चीता नामीबिया के आउटजो शहर के सीसीएफ के 58 हजार हेक्टेयर के प्राइवेट रिजर्व में पल रही थी। उसे नामीबिया के गोबाबिस में साल 2017 में कुछ किसानों ने एक खेत के पास पाया था। जिसे 2018 में चीता कंजर्वेशन फंड के सेंटर में लाया गया।
चीतों की पहली पीढ़ी के जीवनकाल पर नजर रखने की जरूरत
चीता कंजर्वेशन फंड (CCF) लॉरी मार्कर ने 'साशा' की मौत पर दुख जताया है। दैनिक भास्कर से बात करते हुए मार्कर ने कहा- यह खबर दुखद है। हालांकि, वह दो महीने से ठीक नहीं थी। गुर्दा रोग सामान्य रूप से सभी बिल्लियों और चीतों के लिए समस्या है। पशु चिकित्सक और प्रोजेक्ट चीता टीम ने उसकी सहायता के लिए 24 घंटे काम किया है, लेकिन हम जानते थे कि ज्यादा समय तक जीवित नहीं रह पाएगी। मार्कर के मुताबिक देश में सात दशक बाद चीतों की पहली पीढ़ी के पूरे जीवनकाल पर नजर रखनी पड़ सकती है। आमतौर पर फिर से बसाए जा रहे जंतुओं की पहली पीढ़ी के लिए ऐसा किया जाता है, ताकि उनके बारे में सब कुछ जाना जाए।
भारत लाए जाने से पहले से थी किडनी की बीमारी
वन विभाग ने एक बयान जारी कर बताया कि 15 अगस्त 2022 को नामीबिया में साशा का ब्लड टेस्ट किया गया था, जिसमें क्रियेटिनिन का स्तर 400 से ज्यादा था। इससे ये पुष्टि होती है कि साशा को किडनी की बीमारी भारत में लाने से पहले ही थी। कूनो में 22 जनवरी को डॉक्टरों के दल ने साशा को डेली मॉनिटरिंग के दौरान सुस्त पाया था।
वेटरनरी डॉक्टरों ने मेडिकल जांच के बाद रिपोर्ट दी थी कि उसे इलाज की जरूरत है। उसी दिन उसे क्वारैंटाइन बाड़े में लाया गया। इस दौरान उसका ब्लड सैंपल भी लिया गया। टेस्ट वन विहार राष्ट्रीय उद्यान की लैब में किया गया था। इसकी रिपोर्ट के आधार पर तत्काल भोपाल से एक दल पोर्टेबल अल्ट्रासाउंड मशीन के साथ कूनो राष्ट्रीय उद्यान भेजा गया था।
कूनो नेशनल पार्क के बड़े बाड़े के कम्पार्टमेंट नंबर-5 में पिछले साल 28 नवंबर को तीन मादा चीता सवाना, साशा और सियाया को छोड़ा गया था। तीनों मादा चीता एक साथ ही कम्पार्टमेंट में रहकर शिकार भी कर रही थीं।
22 जनवरी से लगातार चल रहा था इलाज
22 जनवरी को सुस्त पाए जाने के बाद से ही कूनो राष्ट्रीय उद्यान के सभी वन्यप्राणी चिकित्सक और नामीबियाई विशेषज्ञ डॉ. इलाई वॉकर साशा का लगातार इलाज कर रहे थे। इस दौरान चीता कंजर्वेशन फाउंडेशन नामीबिया और प्रिटोरिया यूनिवर्सिटी दक्षिण अफ्रीका के विशेषज्ञ डॉ. एड्रियन टोर्डिफ भी लगातार वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग और फोन के जरिए संपर्क में रहे।
जानिए, चीतों को भारत शिफ्ट करने से पहले क्या हुआ
नामीबिया में कई दिन पहले ही चीतों को लंबे सफर के लिए तैयार करने की मुहिम शुरू हो गई थी। भारत लाए जाने वाले 8 चीतों (5 मादा और 3 नर) को पहले डेढ़ माह तक क्वारैंटाइन किया गया। खास तौर पर बनाए गए बाड़े में, जहां मध्यप्रदेश जैसा तापमान और वातावरण बनाया गया, ताकि कूनो आने के बाद खुद को यहां की आबोहवा में ढालने में मदद मिल सके।
वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट की टीम की निगरानी में हर दिन लगातार इनका हेल्थ चेकअप भी होता रहा। करीब एक महीने तक इन पर नजर रखने के बाद वह दिन भी आया, जब इन्हें बाड़े से निकालकर भारत के लिए रवाना किया गया। सफर से पहले मेडिकल टीम ने चीतों की जांच की।
तेंदुआ व टाइगर से हो सकती है चीतों की मौत
रिटायर्ड आईएफएस अधिकारी एमके रणजीत सिंह के मुताबिक कूनो के अलावा दो अभयारण्य नौरादेही और गांधी सागर चीतों को बसाने के लिए उपयुक्त हैं।
कूनो के जंगल को सेंचुरी बनाने की पहल करने वाले रिटायर्ड आईएफएस अधिकारी एमके रणजीत सिंह कहते हैं कि कूनो में जगह पर्याप्त नहीं है। उन्हें किस जंगल में छोड़ेंगे। क्या मादा चीता ब्रीडिंग नहीं करेगी? हम भविष्य में अफ्रीका पर निर्भर क्यों रहें? इसके लिए बेस्ट सेंटर मुकुंदरा है। एक चीते की मौत बीमारी से हुई। तेंदुआ और टाइगर के हमले से भी चीतों की मौत से इनकार नहीं किया जा सकता। यह सर्व विदित है। सिर्फ कूनो समस्या का हल नहीं है। नौरादेही और गांधी सागर को चीतों के लिए तैयार किया जा रहा है, लेकिन उसमें समय लगेगा, जबकि मुकुंदरा एक साल से तैयार है।
एमके रणजीत सिंह ने कहा है कि कूनो के अलावा दो अभयारण्य नौरादेही और गांधी सागर चीतों को बसाने के लिए उपयुक्त हैं। ऐसे में यहां चीतों के हिसाब से नेचर डेवलप करने की जरूरत है। इस पर सरकार को तेजी से काम करना चाहिए। इसके अलावा, कूनो में नील गाय को भी बसाने की जरूरत है।
कूनो में नामीबिया से लाए चीते की मौत
कूनो नेशनल पार्क में नामीबिया से लाए गए चीतों में से 4 साल की मादा चीता साशा की सोमवार को मौत हो गई। नामीबिया से 17 सितंबर को 8 चीतों को लाया गया था। इन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बाड़े में रिलीज किया था। इनमें साशा भी शामिल थी। हाल ही में दक्षिण अफ्रीका से 12 चीतों की दूसरी खेप कूनो लाई गई थी। पूरी खबर यहां पढ़ें।
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